हालात

वादों पर ही दौड़ रहीं यूपी की सड़कें, 2017 से गड्ढे तो भरे नहीं, सड़कें जरूर गड्ढा बन गईं, फिर वादों की नई दौड़

बीते 16 नवम्बर को पीएम मोदी ने जिस पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उदघाटन किया था, वह हालिया बारिश में फिर हलियापुर के पास धंस गई। एक्सप्रेस-वे के निर्माण पर उस वक्त भी सवाल खड़े हुए थे, अब एक बार फिर खस्ता हालत होने से सरकार के दावों पर सवाल खड़े हो गए हैं।

फोटोः वीडियोग्रैब
फोटोः वीडियोग्रैब 

साल 2017 में सत्ता में आने के ठीक बाद योगी सरकार ने प्रदेश की सभी सड़कों को 15 जून तक गड्ढा मुक्त करने का दावा किया था। बीते वर्ष 15 नवम्बर को भी ऐसा ही दावा किया गया। हुआ कुछ खास नहीं! अब एक बार फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य की सभी सड़कों को 15 नवम्बर तक गड्ढा मुक्त करने का आदेश दिया है। पर जमीनी तस्वीर सरकारी दावों और आदेशों की हकीकत का कोई और ही रूप बयां कर रही है। अभी-अभी सीतापुर में यात्रियों से भरा एक ई-रिक्शा सड़क पर पानी-कीचड़ से भरे गड्ढे में पलट गया। जिस वक्त यह हादसा हुआ, डीएम और एसपी का काफिला उसी सड़क से निकल रहा था। सब ने देखा, पर अफसरों ने रूककर संवेदना जताना भी उचित नहीं समझा। सहयोग तो दूर की बात है। सरकार के चहेते अफसरों की यही संवदेनहीनता आम जनता पर भारी पड़ रही है। यह तो बानगी भर है।

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पूर्वांचल एक्सप्रेस वे तो उदघाटन के बाद ही बैठ गई

बीते 16 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उदघाटन किया। पर उसके कुछ ही दिन बाद हुई बरसात में सड़क सुल्तानपुर के हलियापुर में बैठ गई। पांच फीट गहरा और 15 फीट लंबा गड्ढा हो गया। इस एक्सप्रेस वे पर सड़क में गडढे बनने का यह पहला मामला नहीं है। मई 2021 में भी बरसात में कुवांसी-हलियापुर के बीच बने अंडर पास की बीम दरक गई थी और सड़क भी टूट गई थी। बीते दिनों हुई दो दिन की बारिश भी 22 हजार करोड़ की लागत से बना यह एक्सप्रेस वे नहीं झेल सका। हलियापुर के पास फिर एक बार सड़क धंस गयी। एक्सप्रेस-वे के निर्माण पर उस वक्त भी सवाल खड़े हुए थे, अब प्रदेश भर की सड़कों की खस्ता हालत से बढ़ी दुर्घटनाओं का ग्राफ एक बार फिर सरकार के दावों की हकीकत पर उठे सवालों को जिंदा कर रहा है।

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अखिलेश की तरह केंद्र से पैसे नहीं मिलने का बहाना भी नहीं बना सकते योगी

सरकार के कामकाज को नजदीक से देखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि पूर्व की एसपी सरकार और योगी सरकार में अंतर सिर्फ इतना भर है कि आठ वर्ष पूर्व तत्कालीन अखिलेश सरकार ने गड्ढायुक्त सड़कों का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ा था। तब दावा किया गया था कि सड़कों की मरम्मत के लिए केंद्र की तरफ से मिलने वाली धनराशि अपर्याप्त है। वर्तमान में केंद्र और राज्य में बीजेपी सरकार है। ऐसे में प्रदेश सरकार धन की कमी के लिए केंद्र सरकार को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती। जबकि लोक निर्माण विभाग बांदा के अधिकारी खुद स्वीकारते हैं कि बजट के अभाव में सड़कों की मरम्मत नहीं कराई जा सकी है। इस बाबत 55.09 करोड़ का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। पर अब तक धनराशि उपलब्ध नहीं हो सकी है। उसकी वजह से बांदा और चित्रकूट की गड्ढों में तब्दील 234 मुख्य सड़कों पर बने गडढों का आकार बढता जा रहा है। उनसे बचने में असंतुलित होकर वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। यह सच सरकार की कथनी और करनी का अंतर समझने के लिए काफी है।

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अयोध्या के विकास की हकीकत शहर की सड़कें कर रही हैं बयान

बहुप्रचारित रामनगरी अयोध्या के विकास की हकीकत शहर की सड़कें उजागर कर रही हैं। गड्ढों से छलनी सड़कें राहगीरों को मुसीबत में डाल रही हैं। रीडगंज-देवकाली रोड, नाका चुंगी, फतेहगंज की सड़कों पर गड्ढों का आकार लगातार बढता जा रहा है, रोज हादसे भी होते हैं। स्थानीय निवासी संदीप तिवारी कहते हैं कि जनप्रतिनिधियों ने इस सिलसिले में अफसरों से शिकायत भी की पर सड़कों की सेहत नहीं सुधर रही है। प्रयागराज की बात करें तो शहर हो या गांव, हर जगह की सड़कें टूटी पड़ी हैं। जनता को अपने रोजमर्रा के जीवन में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

मेरठ के गड्ढे बने जानलेवा

बीते दिन ही मेरठ के शास्त्रीनगर में सड़कों में गड्ढों की वजह से हुए हादसे में स्पोर्ट्स कारोबारी पंकज मेहता के बेटे की मौत हो गई। स्थानीय निवासियों का कहना है कि सड़कों के गड्ढे जानलेवा हैं। अधिकारी इन सड़कों पर आंख मूंदकर चलते हैं, तभी उन्हें गड्ढे नहीं दिखाई देते और उनकी मरम्मत भी नहीं होती है। बीते दिन हुई बारिश में दिल्ली रोड पर पैदल चलना आसान नहीं रह गया है। सड़क के एक हिस्से पर बैरिकेड लगा है, दूसरी तरफ सड़क पर सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे हैं। गढ़ रोड पर गांधी आश्रम चौराहे, कैलाशपुरी के मुख्य मार्ग, बच्चा पार्क चौराहे और बुढ़ाना गेट क्षेत्र की सड़कें बदहाल हैं।

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सहारनपुर में जनप्रतिनिधि भी शिकायत करके थक चुके

सहारनपुर जिले में बारिश के बाद सड़कों की परत उखड़ गई है, उनमें गड्ढे बन गए हैं। उन गड्ढों में वाहन चालक गिर रहे हैं और चोटिल हो रहे हैं। निर्माणाधीन सड़कें भी अधर मे हैं। स्थानीय निवासी टूटी सड़कों की हालत सुधारने के लिए अफसरों से शिकायत दर शिकायत कर थक चुके हैं। जिले का नानौता-गंगोह मार्ग टिकरौल तक खस्ता हालत में है। सड़कों पर जगह-जगह बने गड्ढों में अक्सर ई रिक्शा गिर जाते हैं, यात्री भी घायल होते हैं। हिमामपुर, लंढोरा, बरसा, जानखेड़ी, नूरपुर आदि गांवों के स्कूली छात्रों को भी रोज दुर्घटना रहित यात्रा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। रामपुर मनिहारान बाईपास मार्ग पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। अक्सर बाइक सवार इन गड्ढों में गिरकर चोटिल हो रहे हैं। उधर गंगोह-करनाल हाईवे का निर्माण एक साल से लंबित है। देवबंद के तलहेड़ी-शाहपुर मार्ग पर महज 500 मीटर सड़क का टुकड़ा पिछले करीब डेढ़ साल से क्षतिग्रस्त है। स्थानीय निवासी इसकी शिकायत जनप्रतिनिधि से भी कर चुके हैं। पर हालात जस के तस हैं।

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ऐसे में यह मानना कि 15 नवम्बर तक यूपी की सभी सड़कें गड्ढा मुक्त हो जाएंगी, संदेहास्पद है। असल में सीएम योगी का आदेश जमीन पर उतरता नहीं दिख रहा है। यह हकीकत सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रही है। राजधानी लखनऊ की बदहाल सड़कों से ही जब अफसरों ने इस तरह आंख मूंद रखी हों कि उन्हें सबसे पॉश इलाके जनेश्वर मिश्र पार्क के आसपास की कॉलोनियों की सड़कों के छोटे-मोटे पहाड़नुमा गड्ढे नजर न आते हों, शहीद पथ सहित शहर के तमाम पुल बेज़ार नज़र आते हों, लगता तो नहीं कि यह वादा भी इतनी आसानी से पूरा हो पाएगा।

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