
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने सोमवार को मोदी सरकार द्वारा ग्रामीण रोजगार योजना ‘मनरेगा’ की जगह लाए गए नए ‘विकसित भारत गारंटी रोजगार एवं आजीविका मिशन-ग्रामीण’ (वीबी-जी राम जी) कानून के विरोध में 16 जनवरी को अखिल भारतीय विरोध दिवस की घोषणा की। एसकेएम नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन में मांग की कि वीबी-जी राम जी अधिनियम को निरस्त किया जाए।
एसकेएम नेताओं ने सरकार से नयी श्रम संहिता, बीज विधेयक 2025 और बिजली विधेयक 2025 को भी वापस लेने का आग्रह किया और स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाला कानून लाने की अपनी मांग को दोहराया।
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एसकेएम नेताओं ने कहा कि बीमा विधेयक 2025 इस क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रावधान करता है और सतत परमाणु ऊर्जा दोहन एवं विकास के लिए भारत का रूपांतरण (शांति) विधेयक 2025 भारतीय कॉरपोरेट तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों के अनुसार बड़े पैमाने पर निजी और विदेशी भागीदारी की अनुमति देता है।
किसान संगठन ने कहा, ‘‘ये हमले जनविरोधी कार्रवाइयों को थोपने की कड़ी में किए गए हैं, जैसे कि अमेरिकी दबाव के आगे झुककर किए गए मुक्त व्यापार समझौते, बीज विधेयक, बिजली विधेयक, चार श्रम संहिताएं, और प्रत्येक कदम ने मेहनतकश जनता के विशाल जनसमूह को एनडीए सरकार से अलग कर दिया है।’’ इसने मजदूर-किसान एकता पर जोर देते हुए कहा, ‘‘एसकेएम की राष्ट्रीय समन्वय समिति ने 16 जनवरी, 2026 को अखिल भारतीय विरोध दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।’’
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एसकेएम ने किसानों और ग्रामीण श्रमिकों से ग्राम ‘महापंचायत’ आयोजित करने और बीज विधेयक 2025, विद्युत विधेयक 2025, वीबी-जी राम जी अधिनियम 2025, श्रम संहिता को निरस्त करने के खिलाफ संघर्ष में शामिल होने और किसान आत्महत्याओं तथा शहरी पलायन को समाप्त करने के लिए एमएसपी गारंटी एवं व्यापक ऋण माफी पर कानून के लिए लड़ने का नववर्ष में संकल्प लेने की अपील की। किसान नेताओं ने बताया कि आगे की कार्रवाई तय करने के लिए एसकेएम की राष्ट्रीय परिषद की बैठक 11 जनवरी को दिल्ली में होगी।
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संसद से पारित हुए वीबी-जी राम जी विधेयक को गत रविवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही यह अब ‘विकसित भारत -जी राम जी’ अधिनियम, 2025 बन गया है और इस संबंध में एक अधिसूचना भारत के राजपत्र में प्रकाशित की गई है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसे भारत के ग्रामीण रोजगार और विकास ढांचे में एक निर्णायक सुधार बताया है, जबकि विपक्ष समेत सामाजिक कार्यकर्ता इस कानून को गरीबों, मजदूरों के हक पर हमला बता रहे हैं।
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