शाहीन बाग मेट्रो स्टेशन से उतरने के बाद प्रदर्शन की जगह पहुंचने के लिए ई-रिक्शा में बैठते ही शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन का महत्व समझ आ गया। ई-रिक्शा में पहले से ही दो महिलाएं बैठी थीं जो प्रदर्शन में शामिल होने जा रही थीं। उनकी आपस की बातचीत से अंदाज़ा लगा कि कैसे वह घर के कामकाज के बीच प्रदर्शन में शामिल होने का वक्त निकालती हैं, घर की चाबी किसे देकर आती हैं, खाने में क्या बनाया है आदि आदि। इस बातचीत में सबसे अहम बात यह थी कि दोनों को ही यह स्पष्ट था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, एनआरसी आदि क्या है और इसके विरोध के पीछे उद्देश क्या है और विरोध आखिर क्यों है। प्रधानमंत्री मोदी और मीडिया के खिलाफ उनका गुस्सा उनकी बातों में झलकता था। वह इस बात से भी नाराज़ थीं कि मीडिया यह झूठ फैला रहा है कि विरोध करने आने वाली महिलाओं को 500 रुपये देकर बुलाया जाता है।
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ई-रिक्शा वाला इस बात से खुश था कि प्रदर्शन के कारण उसका काम बढ़ गया था, लेकिन वह ट्रैफिक जाम से चिंतित था। कई स्थानों पर तीन या चार मिनट के ट्रैफिक जाम के बाद, ई रिक्शा वाला हमें प्रदर्शन स्थल के पास ले जाकर उतार दिया। प्रदर्शन स्थल पर एक बहुत बड़े जनसमूह ने हमारा स्वागत किया। एक अस्थाई तंबू के नीचे सैकड़ों महिलाएं धरने पर बैठी थीं। वहीं कुछ दूर पीछे की तरफ युवाओं का एक समूह तिरंगे हाथ में लिए आजादी के नारे लगा रहा था।
धरना स्थल के दाईं ओर बंद दुकानों के आगे बनी सीढ़ियों पर कुछ बच्चे पेंटिंग सीखने और पेंटिंग्स बनाने में व्यस्त दिखे। इन बच्चों को एक युवा लड़की बच्चों को पेंटिंग के लिए कागज़ और क्रेयॉन और रंग आदि दे रही है। पता चला कि वह एक छात्रा है और अंग्रेजी में पीएचडी कर रही है। वह बच्चों की पेंटिंग में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करती भी दिखी। उसका कहना था कि, "प्रदर्शन में आने वाली बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जो अपने बच्चों को घर पर नहीं छोड़ सकतीं, ऐसे में हम इन बच्चों को यहां पेंटिंग सिखाते हैं। पेंटिंग को लेकर बच्चों में जबरदस्त उत्साह है।"
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धरना स्थल के दूसरी तरफ प्रदर्शनकारियों ने शाहीन बाग के डीटीसी बस स्टॉप को एक लाइब्रेरी में बदल दिया है। यहां बहुत सारी किताबें हैं, जिन्हें हर उम्र के लोग आकर यहीं बैठकर पढ़ते हैं। जिन बच्चों को अंदर बैठने की जगह नहीं मिल रही है वे बाहर ही किताबें पढ़ने में मशगूल रहते हैं।
थोड़ा आगे जाने पर आपको 50-60 युवाओं का एक समूह नारे लगाता दिख जाएगा। यहीं पास में इंडिया गेट की प्रतिमूर्ति है, जिस पर उन लोगों के नाम लिखे हैं, जिनकी सीएए विरोध के दौरान हुई हिंसा में मौत हुई है। इसके थोड़ा आगे एक और समूह नारे लगाता हुआ दिखाई देगा, जो इस बीच मोदी और अमित शाह के खिलाफ भी नारे लगा रहा था।
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इसी के पास में एलईडी लाइट से जगमगाता भारत का बड़ा सा नक्शा है। इस नक्शे के एक तरफ हिंदी में और दूसरी तरफ अंग्रेजी में लिखा है, "हम सीएए और एनआरसी को खारिज करते हैं।"
शाहीन बाग में तीन जगहे ऐसी हैं जहां निश्चित रूप से लोग तिरंगे के साथ तस्वीरें लेते हैं। ये हैं भारत का नक्शा, इंडिया गेट की प्रतिमूर्ति और डिटेंशन सेंटर का प्रतीक। धरना स्थल पर एक अस्थाई मंच है, इसके पीछे दूर-दराज़ से आने वाले प्रदर्शनकारियों के लिए नाश्ते आदि का सामान रखा हुआ है। यहीं करीब में ही एक नि: शुल्क चिकित्सा केंद्र भी है, ताकि जरूरत पड़ने पर किसी को भी तुरंत चिकित्सा सहायता दी जा सके।
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शाहीन बाग, दरअसल नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का केंद्र ही नहीं, बल्कि प्रतीक भी बन गया है। और आज पूरे देश में कई शहरों में शाहीन बाग की तरज पर कई शाहीन बाग अस्तित्व में आ चुके हैं। खुद शाहीन बाग में भी छोटे-छोटे शाहीन बाग नजर आते हैं, क्योंकि यहां आने वाले हर शख्स को अपने तरीके से विरोध जताने और प्रदर्शन करने की छूट है।
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शाहीन बाग ने युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण का काम भी किया है। युवाओं में अब जनसमूह सामने खड़े होर अपनी बात कहने का संकोच खत्म हो गया है। इसके अलावा शाहीन बाग ने कई छोटे-छोटे व्यवसायों को भी बढ़ावा दिया है। जा रहा है। धरना स्थल के नजदीक ही कई जगह चाय, मूंगफली, ग्रेवी, उबले अंडे आदि की अस्थाई दुकानें लगीं हैं। चाय की दुकानों पर खासी भीड़ रहती है। सर्दी के कपड़े बेचने वाले अस्थाई स्टॉल्स पर काफी भीड़ दिखती है।
कुछ भी कहें, लेकिन शाहीन बाग में स्वतंत्रता और गणतंत्र का ज्यादा एहसास होता है, क्योंकि यह आजादी ही है और देश को लोकतांत्रिक करार देने वाला संविधान ही है जिसने नागरिकों को सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का अधिकार और साहस दिया है।
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