जहांगीरपुरी में एमसीडी की कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील दुष्यंत दवे ने दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। दवे ने कोर्ट से कहा, दिल्ली पुलिस ने एफआईआर में कहा है कि बिना अनुमति के जुलूस निकाला गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया। यह मुद्दा नहीं है। दवे ने इस पर कहा कि ये दोनों बातें आपस में जुड़ी हैं।दवे ने कहा, बिना अनुमति के जुलूस निकाले गए।इसके बाद दंगा हुआ।इसके बाद पुलिस ने एक विशेष समुदाय के लोगों को आरोपी बनाया।इसके बाद एमसीडी ने कार्रवाई की।
वकील ने एमसीडी की कार्रवाई पर भी सवाल उठाते हुए कहा, उन्हें पता था कि हम सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं। ऐसे में जो कार्रवाई 2 बजे शुरू होनी थी, उसे 9 बजे शुरू कर दिया गया। यहां तक कि कोर्ट के आदेश के बाद भी तोड़फोड़ जारी रखी। उन्होंने सवाल उठाया कि कैसे बीजेपी अध्यक्ष के पत्र के बाद एमसीडी यह अभियान चला सकती है। एमसीडी को कार्रवाई करने से पहले नोटिस देना चाहिए था।
दवे ने आगे कहा, दिल्ली में 1731 अनधिकृत कॉलोनी है।लगभग 50 लाख लोग रहते हैं। लेकिन एक ही कॉलोनी को निशाना बनाया जा रहा है। आपने घरों को बर्बाद किया।आपने गरीबों को टारगेट किया।आपको साउथ दिल्ली या पॉश कॉलोनियों में कार्रवाई करनी चाहिए।
वकील दवे ने कोर्ट से कहा कि कृपया दिल्ली नगर पालिका अधिनियम की प्रस्तावना देखें, जहां यह नोट किया गया है कि कैसे दिल्ली में अत्यधिक प्रवासन हुआ है और दिल्ली मास्टर प्लान से परे कैसे परिवर्तन हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने वकील दवे से कहा, “अभी आप जो पढ़ रहे है वह नियमितीकरण के बारे मे है। अब अतिक्रमण पर आओ। अधिनियम में कौन सा प्रावधान है जो नोटिस प्रदान करता है?”
वकील दवे ने कहा, “कृपया एमसीडी एक्ट की धारा 343 देखें। अन्यथा भी इस न्यायालय द्वारा यह माना गया है कि जीवन के अधिकार में आश्रय का अधिकार शामिल है। हमें पहले रिकॉर्ड में सुधार करने का अधिकार है और फिर यह कहता है कि कोई भी विध्वंस नहीं होगा जब तक कि व्यक्ति को उचित अवसर नहीं दिया जाता है।
वहीं, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, “अतिक्रमण पूरे भारत मे एक गंभीर समस्या है, लेकिन मुद्दा यह है कि मुसलमानो को अतिक्रमण से जोड़ा जा रहा है। मेरी दलील है कि ऐसे मामले दूसरे राज्यों में भी हो रहे हैं। जब जुलूस निकाले जाते हैं और झगड़े होते हैं, केवल एक समुदाय के घरों में बुलडोजर चला जाता है और सत्ता में राजनीति जज करती है कि क्या होता है या नहीं होता है।”
वकील सिब्बल ने आगे कहा, “समध्य प्रदेश को देखिए जहां मंत्री कहते हैं कि अगर मुसलमान ऐसा करता है तो वे न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते। यह कौन तय करता है? किसने उसे वह शक्ति दी। कोई जेल में है उसका घर गिरा दिया गया, कोई जिसने रेप किया उसका घर भी टूट गया।”
उन्होंने कहा, “दिल्ली में भी कुछ इलाकों में समुदाय मे गेट और बंद कर दिया गया था। वे क्या चाहते हैं? डर पैदा करना या उन्हें दूर करना? अतिक्रमण 'ए' समुदाय और बी समुदाय तक सीमित नहीं है, आप उनके घरों को तोड़कर यह नहीं कह सकते कि उन्होंने अतिक्रमण किया है। यह राजनीति का मंच नहीं है और यह मंच यह दिखाने के लिए है कि कानून का शासन कायम है।”
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