पिछले साल अक्टूबर में यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी। इसी क्रम में 20 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 260 करोड़ रुपए से तैयार कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का लोकार्पण किया था। तब पूर्वर्ती सरकारों की नीतियों को कोसते हुए पीएम ने कहा था कि ‘डबल इंजन के दमदार कार्यों का नतीजा है कि कुशीनगर आज दुनिया से जुड़ गया है। एयरपोर्ट से सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिलेगा, इससे किसान, पशुपालकों, छोटे बिजनेसमेन को भी फायदा होगा। यहां टूरिस्ट आएंगे, तो रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।’ पीएम का यह भी दावा था कि थाईलैंड, जापान, चीन, श्रीलंका, म्याांमार-जैसे देशों से यहां के लिए जल्द उड़ानें शुरू होंगी।
अब लोकार्पण को आठ महीने परे हो गए हैं लेकिन दुनिया तो दूर अभी देश के चार प्रमुख शहरों के लिए भी उड़ान नहीं शुरू हो सकी है। अभी सिर्फ दिल्ली के लिए सिंगल उड़ान ही इंटरनेशनल एयरपोर्ट से शिड्यूल है। मुंबई के लिए प्राइवेट एयरलाइंस की तरफ से शेड्यूल जारी तो हुआ लेकिन सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया। कोलकाता के लिए चार दिन फ्लाइट उड़ी लेकिन सवारी नहीं मिलने से इसे स्थायी रूप से बंद कर दिया गया।
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यहां से नेपाल के सोनौली बार्डर से चंद किलोमीटर दूर भैरहवा में इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। कुशीनगर से यहां की दूरी लगभग 140 किलोमीटर है। वहां इस एयरपोर्ट को बनाने की कवायद 5 साल पहले शुरू हुई थी। आज यहां से कतर के लिए उड़ानें शुरू हो गईं। बौद्ध स्थल के रूप में महत्वपूर्ण गया और वाराणसी के लिए भी जल्द सेवाएं शुरू होने जा रही हैं। सवाल उठ रहा है कि गोरखपुर एयरपोर्ट से जहां 9 बड़े शहरों के लिए उड़ानें हैं, वहीं कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट से सिर्फ दिल्ली के लिए ही उड़ान क्यों?
कुशीनगर एयरपोर्ट से उड़ानें नहीं शुरू होने की राजनीतिक वजहें हैं या फिर सुविधाओं का रोड़ा ही कारण है? एयरपोर्ट अथॉरिटी के जिम्मेदारों की मानें तो जब तक एयरपोर्ट विस्तार के लिए 34 एकड़ जमीन का अधिग्रहण पूरा नहीं हो जाता है, इंटरनेशनल उड़ानें नहीं शुरू हो सकती हैं। इसी जमीन पर इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आईएलएस) लगाया जाना है जिससे रात में और कोहरे के बीच भी विमान की सुरक्षित लैंडिंग हो सके।
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यहां भूमि अधिग्रहण को लेकर काफी दिक्कतें हैं। दरअसल, जो जमीन अधिग्रहण के लिए चिह्नित की गई है, उन पर 20 से अधिक पक्के मकान बने हुए हैं। ध्वस्त कराने के नोटिस पर भवन स्वामी कोर्ट जाने की चेतावनी दे रहे हैं। कुशीनगर के जिलाधिकारी एस.राज लिंगम स्थानीय लोगों को चेतावनी के साथ हाथ जोड़कर निर्माण ध्वस्त कर मुआवजे का ऑफर दे चुके हैं। वैसे, खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कुशीनगर के विरोधी दलों के नेता उपेक्षा का आरोप लगाते रहे हैं। योगी के इशारे पर ही प्रशासन ने गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन पर एयरपोर्ट को जमीन भी चिह्नित किया था।
सपा सरकार में मंत्री रहे राधेश्याम सिंह का कहना है कि ‘पीएम मोदी ने खामियों को जानते हुए इंटरनेशनल एयरपोर्ट का लोकार्पण ही नहीं किया, देश-दुनिया से कुशीनगर को जोड़ने का झूठा भरोसा भी दिया। डबल इंजन की सरकार ने पूर्वांचल ही नहीं, पड़ोसी बिहार के लाखोों लोगों की उम्मीदों के साथ धोखा किया है।’ ट्रैवेल एजेंट बासुकी नाथ कहते हैं कि ‘पूर्वांचल ही हीं, सीमावर्ती बिहार के हजारों लोग रोज खाड़ी देश जाते हैं। कुशीनगर एयरपोर्ट से उड़ानें शुरू होतीं, तो लोगों को लखनऊ नहीं जाना पड़ता। तमाम लोग नेपाल के भैरहवा से कतर के लिए फ्लाइट पकड़ रहे हैं।’
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वैसे तो सामरिक महत्व को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने ही 1945-46 में कुशीनगर में हवाई पट्टी का निर्माण करा दिया था लेकिन एयरपोर्ट की कवायद 5 सितंबर, 1995 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के शिलान्यास से शुरू हुई। तत्कालीन केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री गुलाम नबी आजाद ने उसी साल 10 अक्तूबर को टर्मिनल का शिलान्यास किया जो तीन साल में बनकर तैयार भी हो गया। ठंडे बस्ते में जा चुके एयरपोर्ट को लेकर मार्च, 2010 में 163 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई। 2014 में सपा सरकार ने जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को पूरा कर मई, 2015 में इसे एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को दे दिया।
योगी कैबिनेट ने 24 जून, 2020 को इसे इंटरनेशनल एयरपोर्ट घोषित किया और 22 फरवरी, 2021 को डीजीसीए ने लाइसेंस भी दे दिया। लेकिन स्थिति कुल मिलाकर ढाक के तीन पात वाली ही है।
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