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देश में घरेलू कामगारों के लिए नहीं कोई संतोषजनक कानून, सुप्रीम कोर्ट ने जगाई न्याय की उम्मीद

अधिकांश घरेलू कामगारों को न्यूनतम मजदूरी कानूनों में तय कानूनों से कम मजदूरी मिलती है। अनेक घरेलू कामगार अनेक घरों में पार्ट-टाईम कार्य करती हैं और यदि इन सब कार्यों को जोड़कर देखा जाए तो उनके कार्य के घंटे अधिक होते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो: सोशल मीडिया

सुप्रीम कोर्ट ने 29 जनवरी को कहा कि देश में घरेलू कामगारों का शोषण हो रहा है। उनकी काम के बदले उचित वेतन नहीं मिल रहा है। इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को घ्रेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने और इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश दिया।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि घरेलू कामगार अक्सर हाशिए पर रहने वाले समुदायों जैसे कि अनुसूचित जाति/जनजाति, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणी से आते हैं।

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हाल के आंकड़ों और अध्ययनों के अनुसार भारत में घरेलू कामगारों की संख्या 5 करोड़ से अधिक बताई जा रही है। इनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के बताया है कि वर्ष 1999-2000 और 2008-09 के बीच भारत में घरेलू कामगारों की संख्या में 222 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

जब घरेलू कामगारों की संख्या इतनी अधिक हो और इतनी तेजी से बढ़ रही हो तो जरूरी बात है कि उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए और उनकी स्थिति सुधारने के लिए मजबूत कानून अब तक बन जाना चाहिए था। पर दुख की बात है कि इस दिशा में कई प्रयास होने के बावजूद अभी तक घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई समग्र और संतोषजनक कानून नहीं बना है।

ऐसे किसी कानून के अभाव में समय-समय पर घरेलू कामगारों के शोषण और उनपर अत्याचार के त्रासद मामले सामने आते रहते हैं।

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इन अत्याचार की घटनाओं के अतिरिक्त कई मामले ऐसे भी हैं जिनमें दूर-दूर के गांवों से निर्धन परिवारों द्वारा अपनी बेटियों को घरेलू कामगार के रोजगार के लिए बिचैलियों के माध्यम से भेजने के बाद इन परिवारों को यह पता ही नहीं चल सका कि उनकी बेटी कहां गई और उससे कैसा व्यवहार हुआ।

इस तरह की अनेक दर्दनाक घटनाएं से काफी हद तक बचा जा सकता था यदि उचित समय पर घरेलू कामगारों के रोजगार के नियमन और अधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत कानून राष्ट्रीय स्तर पर बना दिया जाता। ऐसा कानून दैनिक जीवन में घरेलू कामगारों को कई तरह के अन्याय से बचाने के लिए भी जरूरी है।

अधिकांश घरेलू कामगारों को न्यूनतम मजदूरी कानूनों में तय कानूनों से कम मजदूरी मिलती है। अनेक घरेलू कामगार अनेक घरों में पार्ट-टाईम कार्य करती हैं और यदि इन सब कार्यों को जोड़कर देखा जाए तो उनके कार्य के घंटे अधिक होते हैं और मजदूरी कानूनी तौर पर तय न्यूनतम मजदूरी से कम मिलती है। अनेक घरों का कार्य हो या पूर्णकालीन एक घर का, प्रायः घरेलू कामगारों को बहुत थकान और प्रतिकूल स्थितियों में काम करना पड़ता है। मेहनत बहुत करनी होती है पर स्वास्थ्य की रक्षा के अनुकूल पोषण उन्हें मिल पाता है। छुट्टियां बहुत कठिनाई से मिल पाती हैं और कई बार छुट्टी करने पर वेतन काट दिया जाता है। इस स्थिति में जब दैनिक कार्यों के दौरान व्यवहार भी अपमानजनक हो और साथ में अत्याचार की घटनाएं भी हों तो अधिकांश घरेलूकर्मियों के लिए स्थिति असहनीय हो जाती है।

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हालांकि इसके अपवाद अवश्य हैं और कुछ परिवारों में घरेलूकर्मियों को सम्मान और स्नेह भी मिलता है, पर ऐसे उदाहरण अपेक्षाकृत कम हैं। पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि अब ऐसे निहित स्वार्थ बहुत ताकतवर हो गए हैं जो इन घरेलूकर्मियों की समस्याओं को कई तरह से बढ़ाकर ही अपना मोटा मुनाफा अर्जित करते हैं। ऐसे बिचैलिये तत्त्वों ने अब कई स्तरों पर भ्रष्टाचार फैलाकर एक गिरोह का रूप ले लिया है जो निर्धन परिवारों की मजदूरी का लाभ उठाकर लड़कियों को दूर-दूर के गांवों से बड़े शहरों में घरेलू कार्य के लिए ले आते हैं और फिर उनसे मनमाना व्यवहार करते हैं। उनके वेतन का कम हिस्सा ही वे घरेलूकर्मियों को देते हैं। उनपर कई तरह का अत्याचार करते हैं। उन्हें बार-बार नए रोजगार पर जाने के लिए दबाव बनाते हैं ताकि फिर से उन्हें कमीशन मिले।

ऐसा नहीं है कि अच्छी प्लेसमैंट एजेंसियां नहीं हैं। कुछ प्लेसमैंट एजेंसिया ऐसी भी हैं जो शहरी परिवारों व घरेलूकर्मियों दोनों की जरूरतों को ध्यान में रखकर अपना कार्य करती हैं। पर कुल मिलाकर घरेलूकर्मियों का बेरहमी से शोषण करने वाले तत्त्व काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। मुनाफेखोरी की प्रवृत्ति के जोर पकड़ने और इसके साथ घरेलूकर्मियों का शोषण करने की एक वजह यह भी है कि इस रोजगार का उचित नियमन करने वाला समग्र राष्ट्रीय कानून अभी तक नहीं बन सका है।

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पर हाल के समय में इस दिशा में एक पहल जरूर हुई है कि कई महिला संगठनों, स्वरोजगारी व मजदूर संगठनों ने आपस में विमर्श कर घरेलू कामगारों के लिए संतोषजनक राष्ट्रीय कानून बनाने की मांग को बार-बार उठाया है। यह कानून कैसा होना चाहिए इसके प्रारुप भी तैयार किए गए हैं। इन प्रयासों को उस समय विशेष बल मिला जब राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

घरेलूकर्मियों के राष्ट्रीय मंच (नेशनल प्लेटफार्म फाॅर डोमेस्टिक वर्कर्स) ने कहा है कि घरेलू कामगारों की विशेष कार्य परिस्थितियों और उनकी विशाल संख्या के कारण एक अलग केन्द्रीय कानून की सख्त आवश्यकता है जो हमारे अधिकारों की सुरक्षा कर सके।

राष्ट्रीय मंच ने कहा है कि यह कानून घरेलू कामगारों के रोजगार और कार्य परिस्थितियों का नियमन करने में और उन्हें सामाजिक सुरक्षा देने में एक साथ सक्षम होना चाहिए। इसमें मजदूरी और कार्य की अन्य स्थितियों का निर्धारण शामिल होना चाहिए, विवादों का निपटारा, रोजगार की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा जैसे - शिशु देखभाल सुविधा, आवास, प्रशिक्षण व दक्षता निर्माण इस कानून के अंग हों। एक त्रिपक्षीय बोर्ड हो जो इस कानून की अनुपालना सुनिश्चित करे। ये बोर्ड और इसके स्थानीय रूप त्रिपक्षीय हों जिसमें घरेलू कामगारों (उसमें आनुपातिक रूप से महिलाओं) के चुने गए प्रतिनिधि हों। यह बोर्ड राज्य कर्मचारी बीमा और भविष्य निधि बोर्ड जैसे स्वायत्त हो। इस बोर्ड में विवादों और शिकायतों के निपटारे की उचित व्यवस्था हो।

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यह बोर्ड ये कार्य करेगा - कामगारों का पंजीकरण और उनके सामाजिक सुरक्षा अनुदान का नियमन, कार्यस्थितियों का नियमन, सामाजिक सुरक्षा, नियोक्ताओं का पंजीकरण और सामाजिक सुरक्षा हेतु उनके द्वारा प्रदत्त राशि का संग्रहण, न्यूनतम मजदूरी भुगतान की देखभाल बोर्ड में एक हेल्प लाइन की व्यवस्था हो व सभी स्तरों पर शिकायत निवारण समितियां हों जो यौन/लैंगिंक प्रताड़ना के मामलों को हल कर सकें। यह बोर्ड का कर्तव्य होगा कि वह नियोक्ता एजेन्सियों का पंजीकरण करें। इसका अर्थ होगा कि नियोक्ता एजेन्सी से कामगार का पूरा रिकार्ड, नाम, फोटो, पता बोर्ड को दे और शुल्क भी अदा करे। यहे एजेन्सियां स्पष्ट बताएं कि वे घरेलू कामगारों और उनके नियोक्ताओं को क्या सेवाएं दे रही है, विशेषकर जब कामगार दूसरे राज्य से हो। बोर्ड कामगारों के दक्षता निर्माण का कार्य करेगा।

घरेलू कामगारों के संदर्भ में यूपीए सरकार के दिनों में एक अच्छा और महत्त्वपूर्ण कार्य यह हुआ था कि पहली बार घरेलू कामगारों पर राष्ट्रीय नीति तैयार की गई थी। इस नीति में घरेलूकर्मियों के कार्य की गरिमा और उनके अथक परिश्रम को उचित मान्यता देते हुए उनके प्रति राज्य की संवैधानिक भूमिका निभाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

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राष्ट्रीय नीति में घरेलूकर्मियों, उन्हें रोजगार प्रदान करने वाले नियोक्ताओं और प्लेसमेंट एजेंसियों के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन पर जोर दिया गया है। इसके साथ घरेलूकर्मियों को बहुउद्देश्यीय पहचान पत्र मिलेंगे तो उनके अधिकारों की रक्षा और उनकी भलाई के कार्यों की बुनियाद तैयार हो सकेगी। उनके कार्य से जुड़ी अनिश्चय की स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिए। उनके लिए छुट्टी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए और प्रतिदिन के कार्य से आराम के पर्याप्त समय की गुंजाईश रहनी चाहिए। मैटरनिटी या मात्तृत्व अवकाश का लाभमहिला कामगारों को अवश्य मिलना चाहिए। केवल प्रतिदिन नहीं अपितु प्रति घंटे की न्यायसंगत मजदूरी तय करना भी जरूरी है। स्वास्थ्य और खाद्य और पोषण, दुर्घटना में सहायता, स्वास्थ्य, स्वच्छता, साफ पेयजल और अन्य बुनियादी जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित होनी चाहिए। घरेलू कार्य में बाल मजदूरी और बेगारी प्रतिबंधित है।

राष्ट्रीय नीति के अनुसार केंद्रीय सरकार सभी राज्यों में घरेलूकर्मियों के बहुपक्षीय भलाई के कार्यों के लिए कोष की व्यवस्था करेगी। इसमें राज्य और केंद्रीय सरकारों के साथ रोजगार देने वाले नियोक्ताओं से शुल्क प्राप्त कर इस धनराशि से घरेलूकर्मियों की सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की जाएगी। 55 वर्ष की आयु के बाद घरेलूकर्मियों के लिए पेंशन और अन्य रिटायरमेंट लाभ सुनिश्चित होने चाहिए। सामाजिक सुरक्षा और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए सभी राज्यों में बोर्ड गठित किए जाएंगे और अधिकारी नियुक्त होंगे जिनमें राज्य सरकार, घरेलूकर्मियों, नियोक्ताओं, विशेषज्ञों व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि होंगे। इन बोर्डों और केन्द्रीय सरकार के परामर्श से राज्य सरकारें घरेलूकर्मियों की भलाई को ध्यान में रखते हुए इस महत्त्वपूर्ण आजीविका के उचित नियमन, विभिन्न तरह की सामाजिक सुरक्षा और लाभ सुनिश्चित करने और प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी संभालेंगी और इसके लिए आवश्यक स्कीम आरंभ करेंगी।

अब आगे की चुनौती यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर घरेलूकर्मियों के अधिकारों की रक्षा के लिए और उनकी बहुपक्षीय भलाई के लिए समग्र व मजबूत कानून बनाया जाए।

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