ओडिशा, बंगाल, राजस्थान और कर्नाटक के बाद दिल्ली में भी पटाखों पर बैन लग चुका है। इसके पीछे की वजह यह दिया गया है कि पटाखों से होने वाले प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है साथ ही इससे कोरोना संक्रमण का खतरा भी बढ़ सकता है। इन राज्यों का यह भी कहना है कि कोरोना का एक लक्षण सांस लेने में तकलीफ होना है और पटाखों के धुएं से यह समस्या और भी बड़ी हो सकती है। लेकिन तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले में बसा शिवाकाशी, जो पटाखों के लिए जाना जाता है, उसका कहना है कि अगर पटाखों से ही सबसे ज्यादा प्रदूषण होता तो शिवाकाशी में दिल्ली से ज्यादा प्रदूषण होना चाहिए था, क्योंकि यहां तो साल भर पटाखों का वेस्ट जलता है और टेस्टिंग के लिए पूरे साल ही पटाखे जलाए जाते हैं।
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बता दें कि तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले में बसा शिवाकाशी पटाखों के लिए जाना जाता है। देश को 90 फीसदी से ज्यादा पटाखे यही से बनकर जाता है। शिवाकाशी में पटाखों का लगभग ढाई हजार से तीन हजार करोड़ का सालाना कारोबार होता है। खबरों के मुताबिक, तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड एमोर्सेज मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जी अबिरुबेन का कहना है कि अगर पटाखे नहीं बिके तो शिवाकाशी बर्बादी की कगार पर पहुंच जाएगा।
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उनका कहना है कि आस-पास के इलाकों के करीब आठ लाख लोगों का रोजगार पटाखों के इसी कारोबार पर निर्भर करता है। इनमें तीन लाख लोग तो सीधे तौर पर पटाखों के उत्पादन से जुड़े हैं, जबकि करीब पांच लाख किसी न किसी तरह से इस कारोबार से रोजगार चलाते हैं। पटाखों पर बैन की खबर से ये सभी लोग बर्बाद हो जाएंगे।
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उनका कहना है कि हम आज जो पटाखे बना रहे हैं, वो पारंपरिक पटाखों से कहीं ज्यादा सुरक्षित हैं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मानकों पर खरे उतरते हैं। लेकिन कई राज्य पटाखों पर रोक लगा रहे हैं वो समझ से परे है।
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उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रदूषण तो निर्माण कार्यों और सड़क परिवहन से होता है। सरकार उसे नियंत्रित करने की दिशा में कोई भी काम नहीं कर सकी है। पटाखे तो साल में सिर्फ एक दिन जलते हैं।
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