मध्य प्रदेश विधानसभा में किसान कर्जमाफी और 'अतिथि विद्वानों' को लेकर दिए गए जवाब अब बीजेपी के लिए मुसीबत बन रहे हैं। राज्य की कई सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस इन्हीं दोनों मसलों को चुनावी मुद्दा बनाए हुई है, जिसकी वजह से बीजेपी को रक्षात्मक रुख अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
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दरअसल राज्य में आने वाले दिनों में विधानसभा की 28 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। इस उपचुनाव में कांग्रेस अपनी सरकार के दौरान की गई किसानों की कर्जमाफी और अतिथि विद्वानों के मसले को बड़ा मुद्दा बनाए हुए है। कांग्रेस के इन दावों को बीजेपी लगातार झूठ बताती रही है, मगर विधानसभा में बीजेपी सरकार द्वारा दिए गए जवाब कुछ और ही कहानी कह गए हैं, जिससे पार्टी की भारी किरकिरी हो रही है।
बता दें कि राज्य विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की ओर से पूछे गए सवाल के जवाबों में सरकार ने माना था कि लगभग 27 लाख किसानों के कर्जमाफी की स्वीकृति दी गई है, तो दूसरी ओर अतिथि विद्वानों को लाभ देने की प्रक्रिया शुरू होने की बात भी बीजेपी सरकार ने मानी थी।
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इन्हीं दोनों मामलों को लेकर कांग्रेस हमलावर हो गई है और कहा है कि अब तो सरकार भी यह बात मान रही है कि किसानों की कर्जमाफी हुई है और सरकार ने अतिथि विद्वानों के हित में फैसले लिए, जिस पर प्रक्रिया अब भी जारी है। बीजेपी सरकार की ओर से दिए गए जवाबों पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि कर्जमाफी के बाद जीतू पटवारी के प्रश्न से एक और राज खुला। यदि बीजेपी कांग्रेस की सरकार नहीं गिराती तो कर्जमाफी के साथ अतिथि विद्वान शिक्षकों की समस्या का निदान भी हो जाता।
वहीं बीजेपी अब भी अपनी इज्जत बचाने की कोशिश में कह रही है कि किसानों की कर्जमाफी नहीं हुई है, सिर्फ प्रमाणपत्र ही दिए गए हैं। सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह कह चुके हैं कि कर्जमाफी को लेकर अधिकारियों ने विधानसभा में गलत जानकारी दी थी। लेकिन इस बयान से भी बीजेपी खुद फंसती दिख रही है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा में जानकारी कई स्तरों से गुजरते हुए जाती है, यह अधिकारियों के अलावा मंत्री तक पहले भेजी जाती है, मंत्री के हस्ताक्षर होने के बाद ही ब्यौरा सदन में पहुंचता है। इसलिए बीजेपी के लिए जनता के बीच यह साबित कर पाना कि विधानसभा में पेश की गई जानकारी झूठी है, आसान नहीं होगा। अगर वास्तव में अधिकारियों ने जानकारी गलत दी है तो भी यह बड़ा मामला है और सरकार को ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई करनी होगी, तभी यह साबित हो पाएगा कि अधिकारियों ने गलत जानकारी दी थी। कुल मिलाकर ये दोनों मामले चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकते हैं।
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