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उत्तर प्रदेशः 69,000 शिक्षकों की भर्ती मामले ने पकड़ा तूल, अखिलेश ने BJP सरकार को ठहराया दोषी

अखिलेश यादव ने कहा कि 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती मामले में आया कोर्ट का फैसला, आरक्षण की मूल भावना की विरोधी बीजेपी सरकार की ढीली पैरवी का नतीजा है। उन्होंने कहा कि अब दलित-पिछड़े युवा आरक्षण को लेकर बीजेपी की सोच और साजिश दोनों को समझ गए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती का मामला एक बार फिर तूल पकड़ता जा रहा है। एक ओर जहां शिक्षक अभ्यर्थी एक बार फिर योगी सरकार के खिलाफ आंदोलनरत हैं, वहीं इस मामले में अड़चन के लिए मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने भी बीजेपी की सरकार को दोषी ठहराया है और आरक्षण पर उसकी नीयत पर सवाल उठाया है।

दरअसल हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सोमवार को सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण कोटे का सही से अनुपालन नहीं किए जाने पर एक जून 2020 को जारी सहायक अध्यापक के चयन से जुड़ी सूची पर रोक लगाते हुए इसे तीन माह में संशोधित करने का निर्देश दिया है। इसे लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधा है।

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अखिलेश यादव ने कहा कि 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती मामले में आया फैसला, आरक्षण की मूल भावना की विरोधी बीजेपी सरकार की ढीली पैरवी का नतीजा है। उन्होंने आगे कहा कि जहां अपने हक के लिए प्रदर्शन करने का भी हक न हो, उस लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए सबको आगे आना होगा। अब दलित-पिछड़े युवा आरक्षण को लेकर बीजेपी की सोच और साजिश दोनों को समझ गए हैं। बीजेपी याद रखे युवा में युग बदलने की शक्ति होती है।

समाजवादी पार्टी मुखिया ने आगे कहा कि 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती मामले में आया फैसला, आरक्षण की मूल भावना की विरोधी बीजेपी सरकार की ढीली पैरवी का नतीजा है। बीजेपी दलित-पिछड़ों का हक मारने के लिए आरक्षण को विधायी माया जाल में फंसाती है। जातीय जनगणना ही इस समस्या का सही समाधान है, जिससे कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण हो सके।

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उधर, 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती में आरक्षण की मांग को लेकर अभ्यर्थियों ने बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह के घर के बाहर प्रदर्शन किया। बुधवार को बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों के जुटने के बाद पुलिस सक्रिय हुई। हंगामे को देखते हुए पुलिस सभी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेकर ईको गार्डन ले गई। वहां भी प्रदर्शनकारियों ने जमकर हंगामा किया।

अभ्यर्थियों का कहना था कि हम शांतिपूर्ण तरीके से सुबह बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह के आवास पर पहुंचे थे। हम मंत्री से मिलकर अपनी बात रखना चाह रहे थे। मंत्री संदीप सिंह भी हमारे ही यानी ओबीसी वर्ग से ही जुड़े हैं। बावजूद इसके उन्होंने हम लोगों से मिलना मुनासिब नहीं समझा। हमें पहले यह बताया गया कि शिक्षा मंत्री वाराणसी में हैं और बाद में हमारे सामने दूसरे गेट से सुरक्षा गार्डस की मौजूदगी में वो निकल गए और हमारी बात तक नहीं सुनी।

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गौरतलब है कि हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सोमवार को सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण कोटे का सही से अनुपालन नहीं किए जाने पर एक जून 2020 को जारी सहायक अध्यापक के चयन से जुड़ी सूची को तीन माह में संशोधित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इसके साथ ही भर्ती परीक्षा के क्रम में आरक्षित वर्ग के अतिरिक्त 6800 अभ्यर्थियों की 5 जनवरी 2022 को जारी हुई चयन सूची को भी खारिज कर दिया। इस चयन सूची को यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि इसे बिना किसी विज्ञापन के जारी किया गया था।

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5 दिसंबर 2018 को 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन निकाला गया था। एक जून 2020 को चयन सूची जारी की गई। इसके तुरंत बाद से ही यह भर्ती मुकदमेबाजी में फंस गई। एक जून 2020 को ही कुछ अभ्यर्थियों ने चयन सूची में आरक्षण के गलत होने का मसला उठाया। 5 जनवरी 2022 को सरकार ने सूची की समीक्षा करते हुए 6800 शिक्षकों के चयन की एक और सूची जारी कर दी। सरकार की ओर से कहा गया कि जो अभ्यर्थी आरक्षण से वंचित रह गए, उन्हें इस सूची में समायोजित किया जा रहा है। 100 से अधिक याचिकाओं में 69 हजार के सापेक्ष आरक्षण के 50 प्रतिशत से अधिक हो जाने का मसला उठाया गया। संविधान के मुताबिक कोटा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार 69,000 पदों पर ही भर्ती की जानी है। इन्ही तथ्यों को आधार मानते हुए हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।

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