हालात

आखिर क्या गुज़रती होगी कश्मीरियों पर, जब पंजाब से होने वाली रसद की सप्लाई ही अटकी पड़ी है रास्ते में

कश्मीर घाटी में आज भी सामान भेजना मुश्किल है। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि बेशुमार ट्रक और दूसरे मालवाहक वाहन कश्मीर घाटी के रास्ते में फंसे पड़े हैं। मोबाइल सेवा के ठप होने के कारण किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा है। इस वजह से उनके घर वाले भी परेशान हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कश्मीर घाटी से जो भी खबरें आ रही हैं, वे छन-छन कर आ रही हैं। अगर हम सरकार की बात ही मान लें कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भी सब कुछ सामान्य है, फिर भी यह बात तो दिमाग में आती ही है कि आखिर, जब सब कुछ बाजार, दुकानें, सड़कें, बंद हैं, तो लोग वहां खा-पी कैसे रहे हैं। इसी सवाल के जवाब की खोज में हमने पंजाब के उन व्यापारियों से बात की जो कश्मीर घाटी में सामान की सप्लाई करते हैं। उनसे बातचीत से पता चलता है कि न तो इधर से कोई सामान जा रहा है, न उधर से कुछ आ रहा है। ऐसे में, घाटी के लोगों के हाल का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है। हाल यही रहा, तो आशंका यह भी है कि आने वाले पूजा के दिनों में शेष भारत में भी कई जरूरी सामान की किल्लत रहेगी।

पठानकोट तक तो माल सप्लाई की जा रही है लेकिन उससे आगे काफी परेशानी है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने की घोषणा 5 अगस्त को की गई थी। उससे अगले लगभग तीन सप्ताह तक तो जम्मू में भी सप्लाई नियमित नहीं थी। चौथे सप्ताह में जरूर कुछ सामान जम्मू तक जाने लगा। लेकिन एक माह बीतने के बाद भी अभी कश्मीर घाटी तक सामान भेजना मुश्किल है। ट्रांसपोर्टर जगतार सिंह संधू का तो कहना है कि एक माह पहले गए बेशुमार ट्रक और दूसरे मालवाहक वाहन कश्मीर घाटी के रास्ते में फंसे पड़े हैं। उनके ड्राइवरों-हेल्परों से भी संपर्क नहीं हो पा रहा क्योंकि मोबाइल सेवाएं ठप हैं। सरकार ने उन पर रोक लगाई हुई है। इस वजह से उन लोगों के घर वाले भी परेशान हैं। ज्यादातर माल के खराब हो जाने की आशंका तो छोटी बात है। दोआबा के बड़े चावल व्यापारी संतोष कुमार बंसल के मुताबिक, चावल की सप्लाई बिल्कुल ठप है। अभी हाल में उन्होंने माल से लदे छह ट्रक भेजे लेकिन वे जम्मू से आगे नहीं जा पा रहे जबकि उन्हें तय सौदे के मुताबिक घाटी जाना है।

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पंजाब से मुख्य तौर पर चावल, चिकन, अंडे, दूध, सब्जियों और कुछ अन्य खाद्य पदार्थों को थोक में बहुत बड़ी तादाद में जम्मू-कश्मीर भेजा जाता है। घाटी के कश्मीरी आमतौर पर दाल में भी चिकन या अंडा डालकर खाते हैं। चिकन-अंडे लगभग पूरे का पूरा पंजाब से ही वहां जाता है। जालंधर के मदान फूड एंड सीड्स एसोसिएशन का पोल्ट्री से संबंधित सामान बड़ी मात्रा में कश्मीर जाता है। यह घाटी में माल सप्लाई करने वाली सबसे बड़ी फर्म है। इसके मालिक अशोक मदान ने कहा कि पूरे अगस्त में बामुश्किल 20 फीसदी माल ही जा पाया है- मतलब, 5 अगस्त के बाद शायद ही कहीं से कोई सप्लाई हुई है।

पोल्ट्री के बड़े कारोबारी लुधियाना के सतबीर निर्झर कहते हैं कि जाड़े के दिनों से पहले कश्मीर घाटी के लोग खाने-पीने का काफी सारा सामान इकट्ठा कर लेते हैं। इसके मद्देनजर ज्यादातर कारोबारियों ने अगस्त के आखिरी दिनों में भारी स्टाॅक कश्मीर भेजने की तैयारी कर रखी थी। वह सब अब लगभग बेकार हो गया है। व्यापारियों के पैसे फंसे हुए हैं, माल की बिक्री नहीं होगी, ये चिंताएं अपनी जगह हैं, यह सवाल भी बड़ा है कि घाटी में जाड़े के दिनों में आमलोग क्या करेंगे। सतबीर कहते हैं कि कोई नहीं जानता कि हालात कब सामान्य होंगे।

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कश्मीर घाटी को होजरी से जुड़े छोटे-बड़े सभी सामान सबसे ज्यादा लुधियाना से भेजे जाते रहे हैं। अगस्त से पुराने ऑर्डर की सप्लाई बड़े पैमाने पर शुरू हो जाती है। पर इस बार सब कुछ ठंडा है। लुधियाना के होजरी कारोबारी करण मेहरा कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के लिए माल गर्मियों में बुक होना और बनना शुरू हो जाता है। माल तो बनकर तैयार है, लेकिन उधर से ऑर्डर लगभग शून्य है। यह हालत बनी रही, तो यहां के छोटे-बड़े हजारों होजरी व्यापारी बर्बादी के कगार पर आ जाएंगे।

यहां के व्यापारियों की एक दिक्कत और भी है। किसी भी तरह के व्यापार में पेमेंट का एक चेन बन जाता है- माल जाता रहता है और पेमेंट आता रहता है। सबके पैसे फंस गए हैं। करोड़ों के माल की पंजाब के व्यापारी सप्लाई कर चुके हैं जबकि पेमेंट बिल्कुल नहीं आ रहा है। किसी से कोई संपर्क भी नहीं है कि तकादा किया जा सके। अंडा-मुर्गी व्यापारी एसपी सिंह के मुताबिक, पहले कश्मीरी व्यापारी जालंधर आकर माल का भुगतान नगद करते थे। पर अब यह सिलसिला फौरी तौर पर बंद है और पैसा फंस गया है।

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मदान फूड एंड सीड्स एसोसिएशन के मालिक अशोक मदान के अनुसार, कश्मीरियों से लेनदेन बैंकिंग व्यवस्था के जरिये होता रहा है लेकिन अनुच्छेद-370 निरस्त होने के बाद उधर से एक भी ट्रांजैक्शन नहीं हुआ है। कुछ अन्य व्यापारियों ने कहा कि जो व्यापारी कच्चा काम करते रहते हैं, मतलब, जो नगद लेन-देन करते रहे हैं, वे तो लगभग बर्बाद ही हो गए हैं क्योंकि उनके पैसे वापस आएंगे, इसकी आशा भी कम ही है। बरसों से असामान्य हालात के हवाले रहे कश्मीर में इस तरह की हालत पहली बार हुई है। पंजाब इंडस्ट्रियल काॅरपोरेशन के एक अधिकारी ने भी कहा कि आतंकवाद, बाढ़ और पाकिस्तान के साथ युद्ध की आशंकाओं के बीच हालात पहले भी बिगड़ते रहे हैं, लेकिन इतनी बदतर स्थिति पहली बार हो रही है।

यह तो हुई कश्मीर घाटी को सप्लाई किए जाने वाले सामानों की बात। अब उधर से आने वाले सामान की बातें भी जाननी चाहिए क्योंकि इसका असर हमारे-आपके बजट पर भी पड़ना है। कश्मीर के लोग अपने यहां पैदा होने वाले चावल का कम इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इसकी क्वालिटी अच्छी होती है और इसलिए वह काफी महंगा होता है। इस चावल के मुख्य खरीददार शेष भारत के बड़े होटल हैं। इसकी सप्लाई भी एक माह से बंद है। उत्तर भारत में शुरू होने वाले त्योहारों के दौरान कश्मीर से फल, ड्राई फ्रूट्स और हस्तशिल्प के सामान आते और खूब बिकते रहे हैं। ये नहीं आ रहे, तो अक्टूबर से शुरू होने वाले फेस्टिव सीजन में क्या हाल होगा, इसका अंदाजा हम-आप खुद ही लगा सकते हैं।

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जालंधर में एशिया का सबसे बड़ा माने जाने वाला खेल उद्योग का बाजार है। यहां क्रिकेट बैट का बनना-बिकना लगभग बंद होने को है। इसकी वजह यह है कि क्रिकेट बैट के हैंडल से नीचे लगने वाली लकड़ी- कश्मीरी विलो की सप्लाई बंद है। कश्मीर विलो को आमतौर पर फायरवुड कहते हैं। यह लकड़ी इतनी उम्दा होती है कि अधिकतर क्रिकेटर इससे बने बैट का ही उपयोग करते हैं। हिमाचल में भी इस तरह की लकड़ी मिलती है लेकिन उनकी क्वालिटी अपेक्षाकृत कम है और इसलिए कश्मीर विलो की डिमांड ज्यादा है। इस व्यापार से जुड़े दो लोगों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इस वजह से देश-विदेश से लिए कई ऑर्डर कैंसिल भी हो रहे हैं।

यह शोर तो बहुत है कि अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद पंजाब के धनी-मनी व्यापारी कश्मीर जाकर जमीन खरीद लेंगे और सरकार के अनुसार, वहां भारी निवेश होगा। लेकिन फिलहाल तो इस बारे में कोई भी बड़ा व्यापारी कुछ नहीं बोल रहा है।

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दिलचस्प है कि कश्मीर को पंजाब से सामान की आपूर्ति करने वाले बड़े व्यापारियों का एक प्रभावी तबका बीजेपी-अकाली गठबंधन समर्थक है और खुलकर केंद्र की अपनी सरकार के खिलाफ कुछ कहने को तैयार नहीं है, लेकिन भीतर ही भीतर उबल रहा है। यह भी बता दें कि शिरोमणि अकाली दल के सरपरस्त और प्रधानमंत्री मोदी के लिए आदरणीय माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के खिलाफ रहे हैं और राज्यों को ज्यादा अधिकार अथवा विकेंद्रीकरण के प्रबल पैरोकार हैं।

लेकिन मोदी से नजदीकियों, बहू हरसिमरत कौर बादल के मंत्री होने के चलते और गठबंधन की सियासी मजबूरियों की वजह से वह मुखर नहीं हैं। वैसे, उनका पहला बयान यही आया था कि वह अनुच्छेद-370 निरस्त करने के खिलाफ हैं। पर बाद में उन्होंने एकदम से चुप्पी साध ली।

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