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जब करोना महामारी के कारण रात भर सो नहीं सके जूनियर डॉक्टर्स, डूबने और तैरने जैसा रहा अनुभव

डॉ विनोद अकेले ऐसे रेजिडेंट डॉक्टर नहीं है जिनकी कोरोना महामारी के दौरान अग्निपरीक्षा हुई है। देशभर में कोरोना की दूसरी लहर में अब तक कुल 550 डॉक्टरों की मृत्यु हुई है। जिसमें अधिक्तर युवा डॉक्टर शामिल हैं।

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

मेरी ड्यूटी के पहले दिन ही एक संक्रमित महिला की मौत हो गई, जिसे मैं बचा नहीं सका। आज तक उस मरीज का नाम नहीं भुला सका हूं, पहले ही दिन ऐसा अनुभव करना पड़ेगा ये नहीं सोचा था। शायद उस दिन मेरी किस्मत खराब थी। 27 वर्षीय डॉ विनोद चौहान (जूनियर डॉ) ने कुछ इस तरह अपने करियर की शुरूआत की।

डॉ चौहान 2018 में अपना एमएमबीबीएस विदेश से पूरा कर भारत लौटे थे। बीते साल कोरोना महामारी के दौरान दिसंबर महीने में उनकी पहली ड्यूटी दिल्ली एम्स अस्पताल के कोविड वार्ड में लगी। डॉ विनोद के ड्यूटी के पहले दिन ही एक संक्रमित मरीज की मृत्यु हो गई।

Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST

विनोद ने आगे आईएएनएस को बताया कि, ये मेरे लिए एक नया अनुभव था, मैं मरीज को लगातार बचाने के प्रयास करने के लिए सीपीआर कर रहा था। लेकिन मैं उस मरीज को बचा नहीं सका। मरीज का डिस्चार्ज कार्ड, डेथ सर्टिफिकेट आदि प्रक्रिया पूरी करनी थी, लेकिन मुझे अथॉरिटी की तरफ से बोला गया कि ये सब प्रक्रिया तुम्हें ही करना है। मेरे लिए ये सब कुछ नया था। 6 घंटे की ड्यूटी को मुझे 12 घंटे तक करना पड़ा और सारी प्रक्रिया को पूरा किया।

इतना ही नहीं कोरोना की दूसरी लहर में डॉ चौहान के एक दोस्त ने अपने परिजन के लिए दवाई की व्यवस्था करने की मदद मांगी। महामारी के दौर में तमाम कोशिश करने के बाद भी डॉ विनोद दवाई का इंतजाम नहीं करा सके। जिसके बाद डॉ चौहान के उस दोस्त से अब इतने अच्छे संबंध नहीं रहे।

Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST

डॉ विनोद अकेले ऐसे रेजिडेंट डॉक्टर नहीं है जिनकी कोरोना महामारी के दौरान अग्निपरीक्षा हुई है। देशभर में कोरोना की दूसरी लहर में अब तक कुल 550 डॉक्टरों की मृत्यु हुई है। जिसमें अधिक्तर युवा डॉक्टर शामिल हैं। हालांकि इनमें कुछ डॉ ऐसे भी थे जो अस्पताल में इंटर्नशिप कर रहे थे। कोरोना महामारी से जूझ रही भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में मेडिकल कॉलेजों से हाल ही में निकले इन जूनियर डॉक्टरों के लिए डूबने और तैरने जैसा अनुभव रहा है।

दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में कार्यरत 26 वर्षीय डॉ समर अजमत ने इसी साल जनवरी में ही जॉइन किया और मरीजों का इलाज करते करते वह दूसरी लहर में खुद भी संक्रमित हो गई। डॉ समर आईएएनएस को अपना अनुभव साझा करते हुए कहा , जनवरी महीने में जब मैंने अस्पताल में जॉइन किया था तो उस वक्त हालात सामान्य थे, लेकिन कुछ महीनों बाद हालात बिल्कुल बदल गए। पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर में गंभीर मरीज आए, हर किसी मरीज का ऑक्सीजन लेवल डाउन था।

Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST

मरीजों का इलाज करने के दौरान मैं 27 अप्रैल को संक्रमित हुई और 15 दिन बाद ठीक होकर वापस ड्यूटी फिर से जॉइन किया। लगातार मेरे साथी डॉक्टर संक्रमित हो रहे थे, जिसके कारण मरीजों की देखभाल करने वाले कम लोग थे। उन्होंने बताया , बस एक बार वार्ड में आओ तो हर तरफ सिर्फ कोरोना ही कोरोना था। पीपीईटी किट पहनने के बाद हमें पता ही नहीं था कौन कौन डॉक्टर हमारे साथ काम कर रहा है। हालांकि कुछ जूनियर डॉक्टर ऐसे भी है जिन्होंने मरीज की पूरी देखरेख करने के बाद भी उन्हें बचा नहीं पाए, जिसके कारण उन्हें रात भर नींद नहीं आई।

आरएमएल अस्पताल में कार्यरत 24 वर्षीय डॉ विष्णु (जूनियर डॉक्टर) ने आईएएनएस को बताया, कोविड वार्ड से निकलने के बाद मैं अपनी पीपीईटी किट उतारने ही वाला था, अचानक मुझे खबर मिली कि एक मरीज को सांस लेने में दिक्कत आ रही है। पीपीईटी किट वापस पहनने में समय लगता है ।

Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST

मैंने तुरंत अपने सीनियर डॉक्टर को खबर दी। लेकिन सब कुछ करने के बाद भी उस मरीज को बचा नहीं सका। वो मरीज आखिरी वक्त में मूवी देख रहा था और उसने मुझसे कहा भी था की, 'जल्दी ठीक हो जाऊंगा'। उन्होंने कहा कि, उसकी मौत की खबर मिलने के बाद मैं रात भर नहीं सो सका था।

हालांकि कुछ जूनियर डॉक्टर के अलावा अस्पताल में कार्यरत नर्सो के लिए भी ये दौर बड़ा मुश्किल रहा। महामारी के दौरान लगी पाबंदियों के चलते 12-12 घंटे तक बाहर रहना पड़ता था। वहीं घर लौटकर छोटे बच्चों को हाथ लगाने से भी डर लगने लगा था।

Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST

दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में कार्यकत नर्सिंग ऑफिसर मेघना (नाम बदला हुआ) ने आईएएनएस को बताया , मेरे घर में तीन साल का बेटा है जो मुझे ढूंढता रहता था। दूसरी लहर में इतना मुश्किल हो गया कि बच्चे को छूने से भी डर लगता था। लॉकडाउन के कारण अस्पताल आने के लिए वाहन नहीं मिलते थे, सुबह ड्यूटी करने के लिए घर जो की फरीदाबाद में है 6 बजे निकलना पड़ता था, वहीं वापस अपने घर शाम 6 बजे तक पहुंचती थी।

नर्स मेघना के साथ बैठी उनकी साथी नर्स शौर्य (नाम बदला हुआ) बताती है, दूसरी लहर में बेड की सबसे ज्यादा किल्लत रही। हमारे कई परिजनों को अस्पताल में बेड की जरूरत थी लेकिन अस्पताल में काम करने के बाद भी हम उनकी मदद नहीं कर सके।

लोगों को ऐसा लगता है कि अस्पताल में काम कर रहे हैं तो आसानी से बेड आदि चीजें मुहैया हो जाती है, ये सब गलत सोच है हमें भी अन्य लोगों की तरह ही जद्दोजहद करना पड़ता है।

Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST

अस्पतालों के इमरजेंसी और कोविड वार्ड में ड्यूटी कर रहे कई जूनियर डॉकटर ऐसे भी थे जिन्हें ओवर टाइम करना पड़ा, क्योंकि उनके साथी डॉक्टर कोरोना संक्रमित हो गए। वहीं कई बार उन्हें अस्पताल में ही सोना भी पड़ा हैं।

जूनियर डॉक्टरों के मुताबिक, '' हम सभी अपना पूरा 100 प्रतिशत दे रहे थे। हम चाहते हैं कि सभी मरीज की जान बचाई जा सके लेकिन मरीज के परिजनों को लगता है कि हम लापरवाही कर रहें है, जिसके बाद वह हमसे लड़ते भी हैं। बहुत बुरा लगता है जब ये सब देखते हैं।''

ये कहना गलत नहीं होगा कि रेजिडेंट डॉक्टरों और नर्सेस ने इस लहर में बहुत कुछ सीखने को मिला। हालांकि अब भारत में लगातार कोरोना संक्रमण के नए मामलों में तेजी से कमी देखने को मिल रही है।

Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST

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Published: 30 May 2021, 3:06 PM IST