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कहां गया वह गुलाबी रंग का ₹2000 वाला नोट, नोटबंदी के 6 साल बाद नकदी का चलन पहले जैसा, तो फिर हासिल क्या हुआ!

एक वरिष्ठ बैंकर के मुताबिक 2000 रुपए मूल्य के नोट का सिर्फ एक ही फायदा था कि नकदी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना ज्यादा सुविधाजनक हो गया था। इसके अलावा कोई अन्य फायदा अगर था तो शायद यह कि करेंसी नोटों पर होने वाले खर्च को कम किया जाए।

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आज नोटबंदी को छह साल हो गए हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि चलन से बाहर हो चुके 1000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बदलने के लिए पेश किए गए 2000 रुपये के गुलाबी रंग के नोटों का क्या हुआ? 2016 में इसकी शुरुआत के बाद से, 2,000 रुपये के बैंक नोट का चलन लगातार कम होता गया है। साथ ही इस नोट की छपाई भी 12.60 फीसदी गिरकर 2021 के 24,510 लाख से गिरकर 2022 में 21,420 लाख पहुंच गई।में 2020 में इन नोटों की तादाद 27,398 लाख थी।

बैंकरों का कहना है कि इन नोटों का चलन से गायब होने के पीछे आरबीआई द्वारा 2000 रुपए मूल्य के नोटों की छपाई या आपूर्ति में कमी है। जब 6 साल पहले नोटबंदी का ऐलान हुआ था तो उस समय 16.41 लाख करोड़ रुपये 500 और 1,000 रुपये के नोटों के रूप में चलन में थे और कुल नकदी में इनकी हिस्सेदारी 86.4 प्रतिशत थी। रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की  कि वित्त वर्ष 2022 में 2,000 रुपये के नोटों की कोई नई आपूर्ति नहीं हुई थी। यानी रिजर्व बैंक ने 2000 रुपए मूल्य के नोटों को बाजार में नहीं उतारा।

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इतना ही नहीं 8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी के महज तीन साल बाद ही यानी 2019 में इन गुलाबी नोटों की छपाई भी बंद कर दी गई थी। सरकार ने इससे पहले लोकसभा को जो जानकारी सामने रखी थी उसके मुताबिक रिजर्व बैंक को वित्त वर्ष 2020 और 2021 के लिए 2000 के नए नोट छापने का कोई आदेश नहीं दिया गया था। रिजर्व बैंक के आंकड़े भी बताते हैं कि इन नोटों की बाजार में संख्या में लगातार कमी आई है।

2019 में 2000 रुपए मूल्य के कुल 32,910 नोट चलन में थे जो 2021 मार्च तक महज 24,510 रह गए। साथ ही इनका मूल्य भी गिरकर 6,58,199 करोड़ से घटकर 4,90,195 करोड़ रह गया। मार्च 2021 के आंकड़ों के मुताबिक इस तारीख तक देश में चल में कुल मुद्रा में 500 रुपए मूल्य और 2000 रुपए मूल्य के नोटों की हिस्सेदारी 85.7 फीसदी थी जो कि 31 मार्च 2020 के 83.43 फीसदी से अधिक है। गौरतलब है कि 8 अक्टूबर 2021 को खत्म सप्ताह से पहले दो सप्ताह तक देश में नकदी का चलन अपने उच्च स्तर पर पहुंचकर 28.30 लाख करोड़ हो गया था।

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नोटबंदी के बाद बीते 6 साल के दौरान देश में नकदी का इस्तेमाल असाधारण तौर पर अत्यधिक हुआ है। यानी नकदी के चलन को कम करने के जिस वादे और दावे के साथ नोटबंदी की गई थी, उसमें कोई कमी नहीं दर्ज हुई है और यह नोटबंदी के पहले वाले स्तर पर ही पहुंच चुकी है। रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर 2022 में देश में कुल नकदी का चलन 30.88 लाख करोड़ रुपए था।

हालांकि इस अवधि में डिजिटल ट्रांजैक्शन यानी एप आदि के जरिए लेनदेन में भी इजाफा हुआ है, फिर भी 18 मार्च 2022 तक के आंकड़े बताते हैं कि देश में नकदी के चलन में करीब 9.2 फीसदी की बढ़ोत्तरी भी हुई है। मार्च 2022 तक लोगों ने एटीएम से 262,539 अरब रुपए निकाले जबकि मार्च 2020 में यह आंकड़ा 251,075 अरब रुपए था।

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गौरतलब है कि किसी भी मूल्य के नोट की छपाई या उसके चलन के खत्म करने के लिए रिजर्व बैंक सरकार को सलाह देता है और ऐसा वह सिस्टम में नोटों की जरूरत का आंकलन करने के बाद करता है। मुंबई में में फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष विरेन शाह बताते हैं कि, “2000 का नोट अभी भी वैध है और कई बार ग्राहक 2000 का नोट लेकर आते हैं। लेकिन 2000 रुपए मूल्य के नए नोट बिल्कुल आने बंद हो गए हैं और करेंसी चेस्ट के पास वे नहीं हैं इसलिए उनकी दगह 500 रुपए मूल्य के नोटों ने ले ली है।”

संभवत: 2000 रुपए मूल्य के नोटों की छपाई बंद करने के पीछे वह आलोचना कारण हो जिसमें कहा जा रहा था कि इन बड़े नोटों का इस्तेमाल जमाखोरी, टैक्स चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे कामों के लिए किया जा रहा है। एक वरिष्ठ बैंकर के मुताबिक 2000 रुपए मूल्य के नोट का सिर्फ एक ही फायदा था कि नकदी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना ज्यादा सुविधाजनक हो गया था। इसके अलावा कोई अन्य फायदा अगर था तो शायद यह कि करेंसी नोटों पर होने वाले खर्च को कम किया जाए।

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जानकारी के मुताबिक नोटबंदी से पहले तक 1000 रुपए मूल्य के नोट की छपाई पर प्रति नोट 3 रुपए खर्च आता था, जिसमें लॉजिस्टिक कॉस्ट यानी इसे बैंकों और एटीएम आदि में भेजने का खर्च शामिल नहीं था। लेकिन 2000 रुपए के नोट की छपाई पर कितना खर्च हुआ इसका लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है। लेकिन माना जा रहा था कि 2000 रुपए का नोट लाने से नोटों की छपाई पर होने वाला खर्च कम होगा, लेकिन इससे अधिक इसका कोई लाभ नहीं था।
2000 रुपए मूल्य के नोट का विरोध करने वालों का मानना था कि इससे कालेधन को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही इससे जाली नोट छापने वालों का भी लाभ होगा। उनका तर्क था कि बड़े मूल्य के जाली नोट छापने में खर्च भी कम होगा।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और 14वें वित्त आयोग के सदस्य रहे एम गोविंद राव कहते हैं कि, “याद करिए कि किस तरह कारोबारी 500 रुपए का नोट लेने में हिचकिचाने लगे थे क्योंकि उन्हें शक था कि वह जाली नोट होगा। अगर वह खराब था तो फिर सोचिए कि जाली 2000 का नोट उसी स्थिति में पहुंचेगा। इसके अलावा अधिक मूल्य के नोट सर्कुलेशन में आने से इसका असर महंगाई बढ़ने पर भी पड़ता है।”

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