वैश्विक राजनीति में जहां कूटनीतिक स्तर पर भारत अलग-थलग पड़ता नजर आ रहा है, वहीं इस मोर्चे पर पाकिस्तान की अहमियत बढ़ती नजर आ रही है। ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद भारतीय प्रतिनिधियों के कूटनीतिक विश्व भ्रमण के दौरान तमाम देशों को यह समझाने के बावजूद कि पाकिस्तान आतंक का केंद्र और आतंकवादियों की शरणस्थली बना हुआ है, पाकिस्तान के चीन, रूस और अमेरिका के साथ रिश्तों में हाल के महीनों के दौरान नाटकीय गर्मजोशी देखने को मिल रही है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पाकिस्तान को अध्यक्षता मिलना जहां कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है, क्योंकि यह अस्थाई होती है और इसकी मीयाद सिर्फ एक महीने ही होती है, भारत में कई लोगों को इससे निराशा हुई है। वैसे तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मोटे तौर पर प्रतीकात्मक ही होती है और इसका कोई खास असर नहीं होता है।
भारत भी सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य है और 2021-22 में परिषद का अध्यक्ष रह चुका है। इसके बाद से भू-राजनीतिक परिस्थितियां बदली हैं और एक महत्वपूर्ण दौर में परिषद की अध्यक्षता हासिल करने में पाकिस्तान कामयाब रहा है। हालांकि संभावना तो नहीं है, लेकिन इस एक महीने की अध्यक्षता के दौरान पाकिस्तान कुछ खुराफात कर सकता है। भारत में इस बात को लेकर चिंता है, जो सही भी है कि पाकिस्तान इस मौके का फायदा कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के लिए न कर ले और वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में भारत की स्थिति को कोई नुकसान न हो।
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ध्यान रहे कि ईरान, तुर्की और इस्लामिक देशों के संगठन-ओआईसी जैसे मध्यपूर्व के देशों के साथ भारत के रिश्ते कोई खास अच्छे नहीं हैं और आने वाले दिनों में इनमें कुछ और तनाव जैसी स्थितियां बन सकती हैं।
पाकिस्तान कैसे बना सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष: सुरक्षा परिषद के गैर स्थाई सदस्य बारी-बारी से वर्णाक्रम में एक महीने के लिए इसके अध्यक्ष बनते हैं। सुरक्षा परिषद में पांच स्थाई सदस्य (पी-5) और 10 गैर-स्थाई सदस्य हैं। इन सभी 10 सदस्यों को दो साल के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चुना जाता है। पाकिस्तान इसी साल जनवरी 2025 में पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद के गैर-स्थाई सदस्य के रूप में मान्यता मिली थी। इससे पहले पाकिस्तान 2012-13, 2003-04, 1993-94, 1983-84, 1976-77, 1968-69 और 1952-53 के बीच सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य रह चुका है।
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क्यों है भारतीय चिंतित: पहलगाम आतंकी हमले के तुरंत बाद, जिसके बारे में भारत ने आरोप लगाया था कि यह पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित था, और जवाबी कार्रवाई में ऑपरेशन सिंदूर किया गया था, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की स्वीकार्यता ने भारत के कुछ वर्गों को आश्चर्यचकित कर दिया है। हालांकि सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान का कार्यकाल जनवरी, 2025 में ही शुरू हो चुका था। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिफ मुनीर को लंच पर आमंत्रित करना, एससीओ शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान के इस आरोप को स्वीकार किया जाना कि भारत बलूचिस्तान में गड़बड़ कर रहा है, और चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश का दक्षिण एशिया में सार्क के वर्चस्व को खत्म करने की चर्चा करना, ऐसे संकेत हैं कि पाकिस्तान का कूटनीतिक स्तर कहीं बेहतर स्थिति में है।
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पूरे जुलाई भर पाकिस्तान सुरक्षा परिषद का सदस्य रहेगा, तो वह क्या कर सकता है। जैसी कि आशंका थी, वैसा ही हुआ। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत असीम इफ्तिखार अहमद ने कहा है कि कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए सुरक्षा परिषद को जरूरी कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा, “दुनिया को अब इस मुद्दे पर काम करने की जरूरत है। कश्मीर मुद्दे पर बात करने का यही वक्त है और मैं कहूंगा कि ये सिर्फ पाकिस्तान की जिम्मेदारी नहीं है... हम यहां अस्थायी हैं...दो साल के लिए अस्थायी सदस्य हैं। मेरा मानना है कि यह मुद्दा सुरक्षा परिषद का भी है, खासकर परिषद के स्थायी सदस्यों का कि वो ऐसे कदम उठाएं जिससे इस मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र के ही प्रावधानों के हिसाब से किया जा सके। यही एक रास्ता है।”
पाकिस्तान की अध्यक्षता के दौर में सुरक्षा परिषद में दो अहम बैठकें होनी हैं। एक तो ‘22 जुलाई को 'बहुपक्षवाद और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना' पर एक खुली बहस और 24 जुलाई को 'संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय संगठनों के बीच सहयोग: इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC)' पर एक ब्रीफिंग।
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दोनों बैठकों की अध्यक्षता पाकिस्तान के उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री इसहाक डार करेंगे, जो 23 जुलाई को फिलिस्तीन के प्रश्न पर तिमाही खुली बहस की अध्यक्षता भी करेंगे। इसके अलावा, पाकिस्तान 2025 में UNSC की तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता भी करेगा और 15 देशों के संयुक्त राष्ट्र निकाय की आतंकवाद-रोधी समिति के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।’
तालिबान प्रतिबंध समिति ने अफ़गानिस्तान की शांति, स्थिरता और सुरक्षा के लिए ख़तरा बनने वाले तालिबान से जुड़े व्यक्तियों, समूहों, उपक्रमों और संस्थाओं पर संपत्ति ज़ब्त करने, यात्रा प्रतिबंध लगाने और हथियार प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया है। पाकिस्तान दस्तावेज़ीकरण और अन्य प्रक्रियात्मक प्रश्नों और सामान्य यूएनएससी प्रतिबंध मुद्दों पर अनौपचारिक कार्य समूहों का सह-अध्यक्ष भी होगा।
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