विचार

मुआवजे और राहत के इंतजार में बुंदेलखंड के किसान, साहूकारों के कर्ज में डूबने को मजबूर

ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज लेकर किसानों ने रबी की बुवाई तो समय पर कर ली, पर सवाल है कि खरीफ की फसल की क्षति के कारण जो किसान पहले से आर्थिक तंगी में थे वे इस कर्ज और ब्याज की ऊंची दर को कहां तक झेल पाएंगे। वे ब्याज चुकाएंगे या ब्याज के मूल धन की चिंता करेंगे।

मुआवजे और राहत के इंतजार में बुंदेलखंड के लोग, साहूकारों के कर्ज में डूबने को मजबूर
मुआवजे और राहत के इंतजार में बुंदेलखंड के लोग, साहूकारों के कर्ज में डूबने को मजबूर फोटोः भारत डोगरा

मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के मारूमढ़ गांव में किसानों की खरीफ की 90 प्रतिशत फसल सामान्य से बहुत अधिक वर्षा के कारण नहीं हो सकी। अधिकांश किसान तो फसल की बुवाई ही नहीं कर सके। उन्होने बार-बार प्रयास किया पर बुवाई संभव नहीं हो सकी। जिन किसानों ने किसी तरह थोड़ी-बहुत बुवाई कर ली उनकी फसल पनप नहीं सकी। इस तरह जितना सामान्य उत्पादन खरीफ की फसल में मुक्ष्य रूप से तिलहन और दलहन के रूप में मिल जाता था, उसका 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा इस बार प्राप्त हो सका।

निश्चय ही यह एक बहुत बड़ी क्षति थी और उस समय यह चर्चा में था कि इसके लिए सरकारी स्तर पर मुआवजा प्रदान किया जाएगा, पर कई सप्ताह बीत गए पर यह मुआवजा नहीं मिल सका। चूंकि खरीफ की फसल से किसान ने कुछ कमाया ही नहीं था, अतः एक बड़ी चुनौती यह सामने थी कि रबी की बुवाई के लिए जो खर्च होना है, खाद और बीज प्राप्त करने हैं, उनकी व्यवस्था कैसे की जाए।

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इधर किसानों को यह उम्मीद भी थी कि यदि मुआवजा नहीं भी मिलता है तो कम से कम रबी की बुवाई से पहले किसानों को निःशुल्क बीज मिल जाएंगे। पर जब यह बीज भी नहीं मिले तो किसानों ने साहूकारों से कर्ज लिया। जो किसान कुछ गिरवी रख सके उन्हें 3 प्रतिशत मासिक पर कर्ज मिला। जो कुछ गिरवी नहीं रख सके उन्हें 5 प्रतिशत मासिक पर ही कर्ज मिल सका।

इस तरह ऊंचे ब्याज की दर पर कर्ज लेकर किसानों ने रबी की बुवाई तो समय पर कर ली, पर सवाल है कि खरीफ की फसल की क्षति के कारण जो किसान पहले से आर्थिक तंगी में थे वे इस कर्ज और ब्याज की ऊंची दर को कहां तक झेल पाएंगे। वे ब्याज चुकाएंगे या ब्याज के मूल धन की चिंता करेंगे।

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इसी तरह झांसी जिले (उत्तर प्रदेश) के डूडी गांव की महिला किसानों से पूछा तो उन्होंने ठीक-ठीक ऐसी ही स्थिति बताई और उन्होंने भी कहा कि रबी की बुवाई के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा। इन दोनों जिलों के पांच गांवों में लेखक ने इस बारे में किसानों से पूछताछ की तो कमोवेश ऐसी ही स्थिति सामने आई।

इस लेखक की नवंबर मध्य के दौरान की गई इस यात्रा के समय स्थानीय समाचार पत्रों में यह समाचार भी प्रकाशित हुआ कि श्योपुर से कांग्रेस विधायक बाबू जंडेल मुआवजे के शीघ्र भुगतान को लेकर एक आंदोलन कर चुके हैं। 12 नवंबर को पत्रिका में प्रकाशित समाचार के अनुसार सीप नदी में बंजारा डैम के पानी में वे इन मांगों को लेकर जल-सत्याग्रह भी कर रहे हैं। वास्तव में इस समय किसानों की चिंताजनक आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह बहुत जरूरी हो गया है कि संबंधित कार्यवाहियों को शीघ्र पूर्ण करते हुए पूरे न्यायसंगत ढंग से सभी किसानों को उचित मुआवजा राशि उपलब्ध करवा दी जाए।

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इस क्षेत्र के गांवों में विशेषकर महिलाओं ने बार-बार बताया कि गांवों में शराब के ठेके बहुत खुल गए हैं और इससे बहुत तबाही हो रही है। एक ओर अधिकांश घर-परिवार में पैसे की कमी है, तिस पर शराब की उपलब्धि बहुत सरल करवा दी गई है। इस कारण शराब पीने की प्रवृत्ति गांवों में बहुत तेजी से बढ़ गई है। इस बारे में बात करते-करते महिलाओं की आंखें में आंसू आ जाते हैं कि शराब से उनके परिवार की कितनी क्षति हो रही है। देखा-देखी कम उम्र के लड़के भी शराब के फंदे में फंस रहे हैं।

इस तबाही को रोकने के लिए वैसे तो कुछ गांववासियों ने स्वयं भी प्रयास आरंभ कर दिए हैं। जतारा ब्लाक (टीकमगढ़ जिले) के मांची गांव में शराब की अवैध बिक्री करने वालों पर जुर्माना लगाया गया है। इसी जिले के मारूमढ़ गांव में भी शराब से बढ़ रही अव्यवस्था को कम करने के लिए जुर्माने लगाए गए हैं। पर ऐसे प्रयासों के बावजूद कुल मिलाकर शराब की खपत और इससे जुड़ी तबाही तेजी से बढ़ रही है।

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इसके अतिरिक्त अनेक गांववासियों ने शिकायत की कि खनन-माफिया द्वारा अनेक नदियों और नालों में रेत का खनन इतना अधिक किया जा रहा है कि इससे जल-स्तर नीचे जा रहा है। जहां बुंदेलखंड पहले से जल-संकट से त्रस्त क्षेत्र है, वहां लोग सवाल उठा रहे हैं कि खनन-माफिया द्वारा अनियंत्रित और अत्याधिक खनन को क्यों नहीं रोका जा रहा है? इसके अतिरिक्त अन्य तरह का खनन भी बेहद अनियंत्रित और अवैज्ञानिक ढंग से किया जा रहा है जिससे मजदूरों के स्वास्थ्य की भी क्षति होती है और आसपास के गांववासियों का भी स्वास्थ्य तबाह होता है और उनकी फसलों की भी क्षति होती है। मकानों में दरारें आ जाती हैं और कई लोग दूर-दूर गिरते पत्थरों से घायल हो जाते हैं।

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