बुंदेलखंड का क्षेत्र उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के 14 जिलों में फैला हुआ है। जल-संकट के कारण यह क्षेत्र प्रायः हर वर्ष ही चर्चा में आता है। दूसरी ओर विशेषज्ञों ने कई बार कहा है कि यदि सुलझी हुई सोच से कार्य किया जाए तो इस क्षेत्र में उपलब्ध तालाबों की बड़ी धरोहर का उचित संरक्षण व रख-रखाव करके जल-संकट के समाधान में बहुत मदद मिल सकती है।
परमार्थ संस्था ने यहां अपने जल-संरक्षण कार्य में तालाबों की मरम्मत, सफाई और उचित रख-रखाव के साथ छः छोटी नदियों के पुनर्जीवन का कार्य भी किया है। इसके साथ 'जल-सहेलियों' के रूप में जल-संरक्षण के लिए स्वैच्छिक महिला कार्यकताओं की टीम भी बहुत से गांवों में तैयार की है। फरवरी 2 से फरवरी 20 तक ऐसी लगभग 150 जल-सहेलियों ने लगभग 300 किमी. की यात्रा कर बुंदेलखंड के दूर-दूर के गांवों में जल-संरक्षण का संदेश फैलाया है। उनके अतिरिक्त इस यात्रा में विभिन्न स्थानों पर अनेक अन्य गांववासी व कार्यकर्ता भी जुड़ते रहे।
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इस यात्रा में विभिन्न स्थानों पर जल-चैपाल व जल-संवाद का आयोजन किया गया। जिसमें जल-संरक्षण के महत्त्व व उपायों पर चर्चा हुई। जल-सहेलियों ने जो कार्य अपने-अपने गांवों व क्षेत्रों में किया है, उसके बारे में बताया तथा विभिन्न स्थानों पर जो गांववासी अन्य प्रयास कर रहे हैं या जो बेहतर परंपरागत ज्ञान पहले से उपलब्ध रहा है, उसके बारे में जानकारी प्राप्त की गई।
इस यात्रा के दौरान इस बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां एकत्र की गई कि विभिन्न गांवों या कस्बों में किस तरह की जल संबंधी समस्याएं हैं और उनके समाधान के लिए क्या किया जा सकता है? यहां नदियों या तालाबों की क्या स्थिति है? इस तरह की जानकारियों के आधार पर भविष्य में विभिन्न समाधान उपलब्ध करवाने व नियोजन करने में सहायता मिलेगी।
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इस तरह की यात्रा से विभिन्न स्थानों पर जल-संरक्षण कार्यों को आगे ले जाने के लिए प्रेरणादायक माहौल बना और बहुत से लोगों ने मन बनाया कि वे जल संरक्षण के कार्यों को आगे ले जाएंगे। जहां समय उपलब्ध हुआ, वहां जल-यात्रा के दौरान भी श्रमदान द्वारा जल-स्रोतों को सुधारने या इनकी सफाई करने की कुछ शुरुआत की गई। हमारे देश के विभिन्न भागों में ऐसी जल-संरक्षण यात्राओं की व अन्य सार्थक कार्यों के लिए की गई यात्राओं की समृद्ध परंपरा रही है। कुछ नदियों के बहाव में आई समस्याओं व उनके प्रदूषण की बेहतर जानकारी प्राप्त करने के लिए महत्त्चपूर्ण व उपयोगी यात्राएं की गई है।
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हिमालय में परंपरागत बीजों की रक्षा के लिए की गई यात्राएं भी चर्चा में रही है। सुन्दरलाल बहुगुणा ने हिमालय क्षेत्र में सबसे बड़ी पदयात्रा कश्मीर से कोहिमा तक की, जिसके विभिन्न चरणों में अन्य विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता भी जुड़े। इस यात्रा में दूर-दूर के गांवों से जो संपर्क हुआ उससे हिमालय क्षेत्र के लिए पर्यावरण रक्षा व टिकाऊ विकास के अनुकूल वैकल्पिक हिमालय विकास नीति तैयार करने में बहुत मदद मिली। मात्र एडवेंचर के लिए की गई यात्राओं के स्थान पर ऐसी जन-सरोकारों से जुड़ी यात्राओं की बेहतर भूमिका है। इस तरह की अधिक यात्राओं व आयोजन विशेषकर युवाओं की उत्साही भागेदारी से होना चाहिए।
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