विचार

आकार पटेल / टिक-टिक करती प्रलय की घड़ी और तबाही की तरफ खिसकती दुनिया

प्रलय की घड़ी हमें चेता रही है और हमारे अस्तित्व पर मंडराते खतरे और जोखिम को कम करने की कोशिशें शुरु करने को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती है। लेकिन अभी तक तो यह काफी हद तक नाकाम ही साबित हुई है।

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'डूम्स डे क्लॉक' यानी कयामत का समय बताने वाली प्रलय घड़ी एक ऐसा उपकरण है जिसे लोगों को चेतावनी देने के लिए डिज़ाइन किया गया है कि मानव जाति खतरनाक तकनीकों के साथ हमारी दुनिया को खत्म कर देने के कितने करीब हैं। इस घड़ी पर समय विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित किया गया है ताकि यह दर्शाया जा सके कि हम विनाश (आधी रात) से कितनी दूर हैं, और अगर इसे सही और सटीक मानें तो हम दुनिया के अंत के इतना करीब पहुंच चुके हैं जितना पहले कभी नहीं थे।

यह घड़ी 1947 में बनाई गई थी, जो भारत की स्वतंत्रता का वर्ष था, जब वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों का खतरा सर्वाधिक था। उससे दो साल पहले ही नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए गए थे, और सोवियत संघ अपने परमाणु हथियार विकसित कर रहा था। उसने 1949 में ही यह क्षमता हासिल कर ली, फिर यूनाइटेड किंगडम ने 1952 में, फ्रांस ने 1960 में और चीन ने 1964 में परमाणु हथियार बना लिए।

भारत ने भी 1974 में खुद को परमाणु हथारों से लैस कर लिया था और फिर 1990 के दशक में पाकिस्तान ने भी अपनी परमाणु क्षमता का प्रदर्शन किया। माना जाता है कि इजरायल और उत्तर कोरिया के पास भी परमाणु हथियार हैं और वह वक्त दूर नहीं जब ईरान भी इन्हें हासिल कर ले।

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1980 के दशक में, जब मैं अमेरिका में छात्र था, तो इस सबसे जुड़ा हुआ सबसे अहम तत्व रणनीतिक रक्षा पहल नामक कुछ था, जिसे स्टार वार्स कहा जाता था। इसके तहत रोनाल्ड रीगन प्रशासन एक ऐसी प्रणाली विकसित कर रहा था जो अमेरिका को अपनी आक्रामक क्षमता को बनाए रखते हुए आने वाली मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम कर देगा। शायद इस कारण ही कयामत की घड़ी में समय को आगे बढ़ाया गया।

सोवियत संघ के विखंडन के बाद, 1991 में प्रलय की इस घड़ी को आधी रात से 17 मिनट पीछे कर दिया गया, जो तब तक का सबसे दूर का समय था। परमाणु हथियारों का खतरा काफी हद तक कम हो गया था। कम से कम खबरों में तो यही सुना-पढ़ा जा रहा था। 1991 से पहले परमाणु हथियारों पर आज की तुलना में कहीं ज़्यादा रिपोर्ट आती थीं, विश्लेषण होते थे, सिविल सोसायटी ग्रुप (जैसे पगवाश) ज़्यादा सक्रिय थे।

इसकी वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में घड़ी में समय सेट करने वाले 18 व्यक्ति हैं, जिनमें तीन दक्षिण एशियाई मूल के हैं (जिनमें से एक आईआईटी, दिल्ली में प्रोफेसर हैं)।

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दो दशक पहले, प्रलय की घड़ी में जलवायु परिवर्तन समेत अन्य खतरे शामिल किए जाने लगे थे और अब इसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसे नए खतरों को भी शामिल करना होगा। ध्यान रहे कि मानव जाति खुद को नष्ट करने के लिए सभी तरह के नए तरीकों का तेजी से आविष्कार कर रही है।

इस साल की शुरुआत में, 28 जनवरी को जब ये लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि 1947 के मुकाबले 2025 में हम नष्ट होने के कहीं ज्यादा नजदीक पहुंच चुके हैं। इसमें कहा गया: “अब हम मध्य रात्रि यानी नष्ट होने के 89 सेकेंड और नजदीक पहुंच गए हैं। 2024 में, मानवता तबाही के और भी करीब पहुंच गई है। विज्ञान और सुरक्षा बोर्ड को गहराई से चिंतित करने वाले रुझान जारी रहे, और खतरे के स्पष्ट संकेतों के बावजूद, राष्ट्रीय नेता और उनके समाज दिशा बदलने के लिए ज़रूरी कदम उठाने में नाकाम रहे। नतीजतन, अब हम प्रलय की घड़ी को 90 सेकंड से आधी रात से 89 सेकंड आगे ले जा रहे हैं - यह तबाही के अब तक के सबसे करीब है। हमारी हार्दिक आशा है कि नेता दुनिया की बरबादी करने वाले हालात को पहचानेंगे और परमाणु हथियारों, जलवायु परिवर्तन, जैविक विज्ञान और विभिन्न उभरती प्रौद्योगिकियों के संभावित दुरुपयोग से पैदा होने वाले खतरों को कम करने के लिए साहसिक कदम उठाएंगे।"

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जनवरी में ऐसा किया जाने के बाद से अब तक बहुत कुछ हो चुका है। रूसी हवाई अड्डों पर ड्रोन हमले ने, उसकी सबसे महत्वपूर्ण हवाई सामग्री और उपकरणों को नष्ट कर दिया, जिससे यूक्रेन युद्ध में और तेजी आ गई। गाजा में इजरायली नरसंहार जारी है और अब इजरायली सरकार फिलिस्तीनियों को भूखा मार रही है, लेबनान जैसे नजदीकी देशों और यमन जैसे दूर के देशों के खिलाफ खुले संघर्ष कर रही है। अमेरिका की अगुवाई एक विशेष रूप से अटपटा नेता कर रहा है।

व्यापार से लेकर ताइवान तक के मामलों में चीन के खिलाफ अमेरिका ने जो तनाव पैदा किया है, वह और भी बढ़ गया है। और हां, कुछ ही हफ्ते पहले भारत ने एक ऐसे संघर्ष में हिस्सा लिया था, जिसके बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति बार-बार दावा करते हैं कि उससे परमाणु युद्ध होने का खतरा था।

ऊपर दिए गए सारे मामलों के साथ ही हमें जलवायु परिवर्तन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता-एआई के प्रभाव से होने वाले खतरों को भी जोड़ना चाहिए। इनमें से दूसरे क्षेत्र में, चीजें इतनी तेजी से आगे बढ़ रही हैं कि इस बात की कोई वास्तविक समझ नहीं है कि खतरा कितना निकट है, या यहां तक कि खतरे की प्रकृति कैसी होगी। तकनीक के सबसे करीब रहने वाले लोग सबसे अधिक भयभीत (इस मामले में शिक्षाविद) और सबसे अधिक खारिज करने वाले (यदि वे एआई के विकास से लाभ कमाने वाली कंपनियां हैं) हैं और इसलिए बाहरी लोगों के लिए इसका अनुमान लगाना आसान नहीं है।

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यह देखते हुए कि यह अब अमेरिका और चीन के कॉर्पोरेट क्षेत्रों के बीच एक दौड़ है, न कि सरकारों द्वारा नियंत्रित परमाणु हथियारों की दौड़, इसे नियंत्रित करना किसी भी मामले में संभव नहीं है। और जब यह रेस और तेज होकर बढ़ जाएगी तो जल्द ही हमें पता चल जाएगा किआखिरी नतीजा तबाही होगी या अप्रत्याशित लाभ। सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएं फैलाने और ड्रोन जैसे सैन्य प्रयोगों में एआई की भूमिका हमें पहले से ही संकेत दे रही है कि नतीजे अच्छे से कहीं ज्यादा बुरे हो सकते हैं।

ध्यान रहे कि हमने एक और महामारी की संभावना पर चर्चा तक नहीं की है। या उस अराजकता और अशांति के बारे में भी नहीं सोचा है जो मुट्ठी भर खरबपतियों और अरबों गरीबों वाली दुनिया में जल्द ही आ जाएगी।

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प्रलय की घड़ी हमें चेता रही है और हमारे अस्तित्व पर मंडराते खतरे और जोखिम को कम करने की कोशिशें शुरु करने को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती है। लेकिन मेरी राय में यह इसमें काफी हद तक नाकाम ही साबित हुई है। अगर हम इस बात पर विचार करें कि भारत सहित दुनिया भर में रात में किस तरह की खबरें सुनी जाती हैं, तो हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मानव जाति अन्य घटनाओं से अधिक परेशान है। कुछ लोगों के लिए ये घटनाएं उन बहुत गंभीर चीज़ों की तुलना में मामूली हो सकती हैं, जिनमें हम अपनी पृथ्वी को धकेल रहे हैं। लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि वे अधिकांश मानव जाति के मनोरंजन के लिए इतने महत्वपूर्ण हैं कि खतरे की घड़ी की टिक टिक सुनाई नहीं दे रही है।

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