हाल में दिल्ली के स्कूलों के प्रधानाचार्यों के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण भारतीयों के डीएनए में है। इसके दो दिनों बाद ही मंत्री जी ने दिल्ली सरकार के साथ संयुक्त रूप से ‘क्लीन दिल्ली’ कैंपेन का शुभारम्भ किया, जिसमें मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग, सम्बंधित दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस के प्रतिनिधियों से लैस 70 टीमों को गठित कर दिल्ली के सभी क्षेत्रों में भेजा गया। ये टीमें जनजागरूकता के साथ प्रदूषण के स्त्रोतों का पता करेंगी और जरूरत होगी तो प्रदूषण फैलाने वालों का चालान भी काटेंगी। यह कार्यक्रम 10 फरवरी से 23 फरवरी तक चलेगा।
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डॉ हर्षवर्धन से जनता यह जरूर जानना चाहेगी कि पर्यावरण संरक्षण डीएनए में होने के बाद भी देश इतना प्रदूषित क्यों है और फिर प्रदूषण रोकने के लिए इतना बड़ा कार्यक्रम करने की क्या जरूरत है?
सितम्बर-अक्टूबर से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 40 टीमें दिल्ली के सभी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का जायजा ले रहीं थीं। इस कार्यक्रम के पहले भी प्रेस को कार्यक्रम की जानकारी दी गयी थी, पर इस कार्यक्रम का दिल्ली के वायु प्रदूषण पर क्या प्रभाव पड़ा, यह कभी नहीं बताया गया। अब पर्यावरण मंत्रालय का यह नया कार्यक्रम है, पर इसके निष्कर्षों को शायद ही कभी जनता के सामने रखा जायेगा।
डॉ हर्षवर्धन ने दिसम्बर में राज्य सभा को बताया था कि दिल्ली में कुल वायु प्रदूषण का मात्र 35 प्रतिशत दिल्ली की देन है। इसका मतलब यह है कि 70 टीमें यदि ईमानदारी से काम करतीं हैं तब भी केवल 35 प्रतिशत प्रदूषण का पता कर पाएंगी। ये टीमें सुबह 9 बजे से शाम को 7 बजे तक काम करती हैं। पर, क्या प्रदूषण के स्त्रोत भी इस समय का पालन करते हैं? जवाब है नहीं। अनेक उद्योग जो प्रदूषण फैलाते हैं, वे रात में या एकदम सुबह चलाये जाते हैं। जीटी करनाल रोड पर स्थित एसएमई औद्योगिक क्षेत्र में स्थित कुछ उद्योग एकदम सुबह प्रदूषण करते हैं और फिर दिनभर इनकी चिमनी से कई धुआं नहीं निकलता।
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पर्यावरण मंत्रालय की उच्च स्तरीय 70 टीमों के सड़क पर घूमने के बाद भी जहां-जहां इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का काम चल रहा है, वहां धूल वैसे ही उड़ रही है जैसे पहले उड़ती थी। यह असर अक्षरधाम से गाजीपुर और बुराड़ी से मजनूं का टीला तक आसानी से देखा जा सकता है। वायु प्रदूषण का दिल्ली में सदाबहार पर उपेक्षित स्त्रोत भलस्वा लैंडफिल से निकलता धुआं भी सक्रिय है।
अब समय आ चुका है जब प्रदूषण फैलाने वाले के साथ ही प्रदूषण को नियंत्रित करने वाली संस्थाओं पर भी भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाए। उद्योगों को एनओसी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी जारी करती है, फिर ऐसे उद्योग कैसे प्रदूषण फैला सकते हैं? इसी तरह बड़ी निर्माण परियोजनों के पर्यावरण स्वीकृति में धूल को नियंत्रित करने की शर्त होती है, यदि धूल फिर भी उड़ती है तो क्या स्वीकृति प्रदान करने वाली संस्था की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है?
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सबसे बड़ी बात तो यह है कि यदि 70 टीमें दिल्ली की सड़कों पर घूम कर वायु प्रदूषण के स्त्रोतों का पता कर रहीं हैं तो स्पष्ट है, हमें यहां के प्रदूषण के स्त्रोतों की सही जानकारी आज भी नहीं है। फिर हम कौन से स्त्रोत और कौन से आंकड़ो की बातें करते हैं। कुल मिलाकर लगता तो यही है कि प्रदूषण की तरह इससे सम्बंधित सारी जानकारी भी हवा में ही है। जब कुछ भी नियंत्रण में नहीं आयेगा तब शायद बताया जायेगा कि वायु प्रदूषण से पार पाना है तो हनुमान चालीसा का जाप कीजिये।
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