विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः सबको अपनी पसंद का गांधी चाहिए, हत्या पर जश्न मनाने वालों को भी आज गांधी चाहिए!

अभी हमारे सज्जनवीर वाशिंगटन में थे। अमेरिका उन्हें धार्मिक सहिष्णुता वाला गांधी प्रोवाइड करना चाहता था। उन्होंने लेने से मना कर दिया। कहा कि सर हमने स्वच्छता वाला गांधी अपना रखा है, हमें यूएन का अहिंसा वाला गांधी तक नहीं चाहिए।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

सबको अपनी पसंद का गांधी चाहिए, किसी को किसी और की पसंद का नहीं। चाहिए मगर 2 अक्टूबर और 30 जनवरी के दिन ही। आज 3 अक्टूबर है, आज किसी को गांधी नहीं चाहिए। अब उनकी आवश्यकता 30 जनवरी को पड़ेगी। 31 जनवरी को गांधी नहीं चाहिए!

किसी को अच्छा-बुरा संपूर्ण गांधी नहीं चाहिए। किसी को अब उनका गोश्त, किसी को उनकी हड्डियां चाहिए। गोश्त में भी सबकी अपनी-अपनी पसंद है। हड्डी का पूरा ढांचा भी किसी को नहीं चाहिए। किसी को उनकी खोपड़ी, किसी को उनका ऊपर का बाकी बचा धड़, किसी को उनका निचला धड़ चाहिए। किसी को पूजने के लिए उनके केवल दो पैर चाहिए। गुलाब की चार पंखुड़ियां, गेंदे के दो फूल ही तो चढ़ाने हैं उन्हें!

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किसी को वैष्णव, शाकाहारी होटल टाइप गांधी चाहिए, किसी को वह जिसके फोटो को सामने रखकर ‘गोली मारो उत्सव' मनाया जाता है। किसी को फोटूवाला गांधी चाहिए, किसी को तीन बंदरों वाला। जो नाथूराम गोडसे को सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त मानते हैं, जिन्होंने गांधी की हत्या पर जश्न मनाया था, गांधी की हत्या को 'गांधी-वध' कहा था, उन्हें भी आज गांधी चाहिए। कल देखा न आपने, उनकी आंखों से कैसे झर-झर आँसू बह रहे थे, कंठ कैसे भर आया था, कैसे श्रद्धा से सिर झुका जा रहा था। लगता था कि कहीं इतने न झुक जाएं कि गिर पड़ें, चोट लग जाए वरना सारा राष्ट्र शोकमग्न हो जाएगा!

तो आज इन्हें सबसे पहले और सबसे ज्यादा गांधी चाहिए। जो हिंसा और नफरत के बल पर सत्ता में आए हैं, जिनका सबसे बड़ा अस्त्र झूठ, मक्कारी, आत्मप्रचार और आत्मप्रलाप है, उनको तो इतना अधिक गांधी चाहिए कि सारा का सारा जीम जाएं। उनका बस चले तो बाकी सबको एक अध्यादेश द्वारा गांधी को याद करने से रोक दें। और किसी दिन इनका बस चल भी सकता है!

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सबको चाहिए मगर अपना-अपना सेनेटाइज्ड गांधी चाहिए। अभी हमारे सज्जनवीर वाशिंगटन में थे। अमेरिका उन्हें धार्मिक सहिष्णुता वाला गांधी प्रोवाइड करना चाहता था। उन्होंने लेने से मना कर दिया। कहा कि सर जी, मैडम जी हमने स्वच्छता वाला गांधी अपना रखा है, जो अमेरिका में पर्यावरण वाला गांधी बन जाता है। हमें यूएन का अहिंसा वाला गांधी तक नहीं चाहिए, आपके कहने से हम सहिष्णुता वाला गांधी स्वीकार कर लेंगे? गांधी हमारा है, हम उसे साबुन बनाएं या सर्फ या झाड़ू-पोंछा, ये हमारी सरकार की इच्छा है। इस मामले में हम स्वावलंबी हैं। आप तो ये बताओ, अपना सैनिक अड्डा हमारे यहां कब खोल रहे हो? कब हमें और हथियार दे रहे हो? हमारा गांधी आपके हथियार मांगता है!

आज के गांधी बिल्कुल सज्जन पुरुष हो चुके हैं, हालांकि जब वे इस धरती पर थे, तब इतने सज्जन नहीं थे। ये वाले गांधी सबके काम के हैं। जो चाहे, जैसा चाहे, इस्तेमाल कर ले। वे जवाहर लाल नेहरू नहीं हैं कि कुछ इनसे नफरत करने के लिए, उन्हें मुसलमान बना दें क्योंकि मुसलमानों से नफरत को बढ़ावा देना, धर्मनिरपेक्षता की हत्या करना, उनका एकमात्र एजेंडा है। ये नेहरू बड़ा अड़ियल है। अपनी जमीन से हिलने को तैयार नहीं। इधर गांधी और सरदार पटेल आज इतने प्योर हिंदू बना दिए गए हैं कि जैसे गुरुजी के प्रशिक्षण विद्यालय से अभी निकलकर आए हों!

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साल 2014 से पहले गांधी ऐसे नहीं थे। वे भी अड़ियल थे। तब तक वे 'चतुर बनिया' नहीं बने थे। ऐसों को अपनी लाठी दिखाकर धमका देते थे। कहते थे, मैंने शरीर पर लाठियां इसलिए नहीं झेली थीं कि तुम मेरा मलीदा बना दो। मैं अहिंसक हूं, मगर मलीदा बनने की हद तक अहिंसक नहीं।

पुरानी बात है। बीजेपी के एक महासचिव होते थे कृष्णलाल शर्मा। उन्होंने बाबरी मस्जिद गिराने का समर्थन गांधी जी से भी करवा दिया था। गांधी जी तब बौखला उठे थे। हम जैसे किसी पत्रकार को उन्होंने पकड़ा, ऐ बच्चे सुन, जरा मेरे उद्धरण निकाल और इनको बता गांधी, गांधी था, लालकृष्ण आडवाणी नहीं, मुरली मनोहर जोशी नहीं। खोजने पर पाया कि गांधी के नाम से सफेद झूठ बोला जा रहा है। तब की बीजेपी आज जितनी बेशर्म नहीं हूई थी। शर्मा जी माफी तो क्यों मांगते, उसके बाद चुप जरूर लगा गए। अबकी बीजेपी और गोदी चैनल सौ बार यही बात दोहराते। साथ में उस पत्रकार को राष्ट्रद्रोह के आरोप में बंद भी करवा दिया जाता। उसे फौरन नौकरी से निकलवा दिया जाता!

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तो आइए गांधी अब भले हो चुके हैं तो क्यों न उनके हाथ से लाठी भी ले ली जाए! भला आदमी लाठी का क्या करेगा? शाखा वालों के काम आ जाएगी। वैसे भी अब वे लाठी के सहारे जाएंगे कहां? कोई बची है जगह? उनको अब चश्मे की भी क्या जरूरत? अच्छा है, न देखें तो! मर के चैन से तो रहेंगे! और धोती? देखिए थोड़ा ध्यान से, उसे तो ये पहले ही खींचकर उसका केसरिया पटका बना चुके हैं!

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