विचार

दिल्ली के चुनावी मौसम में पुराने हथकंडे, सत्ता विरोधी लहर से परेशान केजरीवाल ने लगाया धर्म का तड़का

10 साल की सत्ता विरोधी लहर और अधूरे वादों पर जनता के सवालों से परेशानकेजरीवाल एंड कंपनी धर्म के नाम पर वोट झटकने के सारे जुगाड़ कर रही है। इसके तहत पुजारियों-ग्रंथियों को हर माह वेतन देने का ऐलान ही नहीं किया, बल्कि बाकायदा रजिस्ट्रेशन भी शुरु कर दिए हैं।

दिल्ली की सीएम आतिशी और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना का रजिस्ट्रेशन करते हुए (फोटो - सोशल मीडिया)
दिल्ली की सीएम आतिशी और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना का रजिस्ट्रेशन करते हुए (फोटो - सोशल मीडिया) 

यह साल का आखिरी दिन था। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल दिल्ली के यमुना बाजार स्थित हनुमान मंदिर पहुंचे। लेकिन उनका मकसद दर्शन करना या प्रसाद चढ़ाना नहीं था। वह वहां मुख्यमंत्री पुजारी ग्रंथी सम्मान योजना के तहत मंदिर के पुजारी का रजिस्ट्रेशन करने पहुंचे थे। पहले उनका इरादा कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर से इस अभियान को शुरू करने का था। लेकिन वहां उनका विरोध करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता जमा हो गए थे। इसलिए ऐन वक्त पर केजरीवाल को जगह बदलनी पड़ी। ठीक उसी समय दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मर्लेना करोलबाग के गुरुद्वारा श्री संत सिंह महाराज में ग्रंथियों का पंजीकरण कर रही थीं।

एक दिन पहले ही आप ने इस चुनावी वादे की घोषणा की थी जिसके तहत दिल्ली में मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को पार्टी की सरकार हर महीने 18,000 रुपये देगी। मस्जिदों के मौलवियों को सम्मान निधि देने की ऐसी ही योजना दिल्ली में पहले से ही चल रही है। यह बात अलग है कि उन्हें कई महीनों से यह धनराशि नहीं मिली।

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दिल्ली विधानसभा के चुनाव फरवरी में होने हैं। केजरीवाल इसे ढेर सारी फ्रीबीज (चुनावी रेवड़ियों) के जरिए जीतने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली की सरकार अभी तक जो चीजें मुफ्त या सब्सिडी पर दे रही है, उसकी फेहरिस्त बहुत लंबी है। 200 यूनिट तक पूरी तरह मुफ्त बिजली। उसके बाद 400 यूनिट तक बिजली के बिल पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी। सरकारी खजाने पर इसका भार 3,600 करोड़ रुपये है। हर परिवार को दो हजार लीटर तक मुफ्त पानी का खजाने पर 500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ रहा है। महिलाएं डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा कर सकती हैं जिसका खर्च करीब 440 करोड़ रुपये है। इसके अलावा दिल्ली सरकार बुजुर्गों को मुफ्त तीर्थ यात्रा भी करवा रही है और मौलवियों को सम्मान निधि भी दे ही रही है।

इस तरह की योजनाएं एक तबके में काफी लोकप्रिय हैं लेकिन आप की उन पर लगातार बढ़ती निर्भरता बता रही है कि पार्टी अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने में किस तरह से संघर्ष कर रही है।

आम आदमी पार्टी की समस्या यह है कि उसकी सरकार के साथ पिछले 10 साल की एंटी इन्कम्बेंसी जुड़ी हुई है। मुफ्त पानी और बिजली के अलावा उसके जो भी दावे थे, उनकी पोल भी इस दौरान खुलने लगी है।

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स्कूलों में सुधार और मोहल्ला क्लीनिक जैसे कामों से पहले कुछ साल तो दिल्ली के लोगों ने उम्मीद बांधी थी, पर अब वह उम्मीद खत्म होने लगी है। स्कूलों में एक हद के बाद अब ज्यादा कुछ नहीं हो रहा और मोहल्ला क्लीनिक भी अब ठीक से काम करते नहीं दिख रहे। यह भी खबर है कि वहां कर्मचारियों के ढेर सारे पद खाली पड़े हैं जिन पर भर्तियां नहीं हो रहीं।

दिल्ली के दलित और अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस की ओर खिसक सकते हैं, इसका डर भी आप की नीतियों में दिखने लग गया है। इसके जवाब में पिछले कुछ समय से वह बीजेपी के हिन्दू वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में हताश दिख रही है। पुजारी ग्रंथी सम्मान योजना दरअसल इसी हताशा का नतीजा है। इसी हताशा में वह अपने कई पुराने फैसलों को पलट भी रही है।

बीजेपी अक्सर यह आरोप लगाती रही है कि केजरीवाल की पार्टी बांग्लादेशी ‘घुसपैठियों’ और रोहिंग्या के बल पर चुनाव लड़ती रही है। इसी की प्रतिक्रिया में पिछले दिनों दिल्ली सरकार ने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि दिल्ली के स्कूलों में माईग्रेंट्स के बच्चों को एडमीशन नहीं दिया जाएगा। आप की इन कोशिशों से ही खीझकर बीजेपी ने पार्टी को ‘चुनावी हिंदू’ कहा क्योंकि वह अपने पुराने फैसलों से पलट रही है।

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इन आलोचनाओं से बिना विचिलित हुए आप अब नित नए वादे कर रही है। 12 दिसंबर को अरविंद केजरीवाल ने चुनाव के बाद दिल्ली की महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत हर महीने 2,100 रुपये देने का वादा किया। वहां मौजूद दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मर्लेना ने कहा कि उनकी कैबिनेट ने महिलाओं को एक हजार रुपये देने को जो फैसला किया है, चुनाव बाद इस राशि को बढ़ाकर 2,100 रुपये कर दिया जाएगा। यह बात अलग है कि महिलाओं को एक हजार रुपये देने का यह फैसला अभी तक अमल में नहीं आया है।

सिर्फ घोषणा भर ही नहीं हुई, अगले दिन सरकार ने इस योजना के लिए महिलाओं से फार्म तक भरवाने शुरू कर दिए। इस फार्म पर केजरीवाल का फोटो और आप का चुनाव चिह्न झाड़ू भी बना था। बताया जाता है कि अभी तक पार्टी ने ऐसे 12 लाख से ज्यादा फार्म भरवा लिए हैं। पंजाब विधानसभा के पिछले चुनाव के दौरान भी आप ने महिलाओं के साथ ऐसा ही वादा किया था। लेकिन सरकार बनने के तीन साल बाद भी वह वादा पूरा नहीं किया गया।

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कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। उनका कहना था कि आप चाहे तो कोई भी चुनावी वादा कर सकती है लेकिन इस तरह के फार्म भरवाकर लोगों का निजी संवदेनशील डेटा जमा करना किसी भी तरह से जायज नहीं है। इसी के साथ दिल्ली सरकार का एक विज्ञापन कई अखबारों में छपा, इस सार्वजनिक सूचना में कहा गया था कि ऐसी किसी भी योजना को लांच करना धोखाधड़ी है।

फ्रीबीज के राजनीतिक वादे बहुत समय से हम देखते रहे हैं। लेकिन सत्ता में बैठी पार्टियां चुनाव से पहले फ्रीबीज की घोषणाओं से जिस तरह राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करने लगी हैं, उसे किसी भी तरह से नैतिक नहीं कहा जा सकता।

फ्रीबीज की ऐसी घोषणाएं इन्कम्बेंट पार्टी को एक अनफेयर एडवांटेज दे देती हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमने कुछ ही समय पहले महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में देखा था। महाराष्ट्र में सरकार ने महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये की रकम देने का फैसला कैबिनेट में किया था। चुनाव के ठीक पहले तीन महीने के पैसे महिलाओं के बैंक खाते में जमा करवा दिए। इस कदम का ही नतीजा था कि वहां कुछ ही महीने पहले लोकसभा चुनाव में जिस महायुति गंठबंधन को काफी बड़ी हार मिली थी, वही आसानी से विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही।

यह अलग बात है कि वहां जिस तरह की चुनावी प्रक्रिया अपनाई गई, उसे लेकर भी बहुत से संदेह हैं। इसके पहले हम ठीक ऐसा ही मध्य प्रदेश में भी देख चुके हैं जहां लाडली बहना योजना के जरिए बीजेपी ने चुनाव को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने की कोशिश की थी।

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क्या इस तरह की योजनाएं वोट के लिए घूस देने जैसी बात नहीं है? और फार्म भरवाकर उनके रजिस्ट्रेशन को लेकर क्या कहा जाए? यह एक तरह से लाभार्थियों की निशानदेही भी है। इसके बाद उनमें से जो वोट नहीं देगा, उसे नतीजे भुगतने पड़ेंगे। दो दशक पहले सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। हालांकि एस सुब्रहमण्यम बालाजी बनाम गवर्नमेंट ऑफ तमिलनाडु के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की योजना शुरू करना घूसखोरी नहीं है। दो साल पहले इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर की गई। इस मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने एक शपथ पत्र देकर कहा कि फ्रीबीज के वादों को लेकर वह कुछ नहीं कर सकता। ऐसा करना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

इस काम में भले ही सभी दलों की साझेदारी दिख रही हो लेकिन जो व्यवस्था जनता की इच्छा और उसके जनादेश को कमतर करती है, वह जनता से खराब कामकाज के लिए सरकार को हटाने का अधिकार भी छीन लेती है। ऐसे तौर-तरीके अंत में सभी राजनीतिक दलों को नुकसान पहुंचाएंगे। आज जो पार्टी इसका फायदा उठा रही है, वह भी किसी दूसरी जगह इसकी वजह से नुकसान में रह सकती है।

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इसलिए जरूरी है कि इस पर कोई राजनीतिक आम-सहमति बनाई जाए। सरकारों को लोगों के कल्याण के लिए योजना बनाने और उन्हें लागू करने से नहीं रोका जा सकता लेकिन कम-से-कम ऐसी व्यवस्था तो बनाई जा सकती है कि इन योजनाओं का चुनावी दुरुयोग न हो।

क्या इस समस्या का समाधान ऐसे कानूनी प्रावधान हो सकते हैं जो चुनाव के एक साल पहले से सरकार को किसी ऐसी घोषणा से रोकते हों। इसे लागू करने का काम चुनाव आयोग या किसी दूसरी स्वतंत्र संस्था को भी सौंपा जा सकता है। लेकिन जरूरी यही है कि उस संस्था की निष्पक्षता संदेह से परे हो।

अगर इस तरह के प्रावधान नहीं किए जाते, तो वह जायज चुनावी स्पर्धा खतरे में रहेगी जो लोकतंत्र का मूल आधार है। चुनावी मैदान निश्चित रूप से निष्पक्ष होना चाहिए। जहां सत्ता में रहने वाली पार्टी अपने कामकाज के रिकॉर्ड और उसकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी अपने वैकल्पिक नजरिये के साथ उतरे। अगर इस तरह के सुधार नहीं लागू किए जाते, तो घूसखोरी की स्पर्धा के रूप में लोकतंत्र का हर रोज मजाक उड़ाया जाता रहेगा, यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाएगा कि कौन सत्ता में बैठने के लिए सबसे योग्य है।

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