विचार

म्यांमार की नरसंहारी सेना को मोदी सरकार का समर्थन, निंदा तो दूर, UN में खिलाफ में प्रस्ताव का भी विरोध किया

अपने देश में वर्ष 2014 के बाद से लोकतंत्र जिस हालत में है, उसमें मोदी सरकार का यह रवैय्या कहीं से भी आश्चर्यजनक नहीं है। इसके अलावा म्यांमार की सेना के साथ अडानी के व्यापारिक रिश्ते भी हैं, ऐसे में जाहिर है मोदी जी अडानी के नुकसान का कोई काम नहीं करेंगेI

फाइल फोटोः म्यांमार मीडिया
फाइल फोटोः म्यांमार मीडिया 

देश की मोदी सरकार को म्यांमार में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कहीं से भी ऐसा नहीं लगता जिसकी भर्त्सना भी की जा सकेI अपने देश में वर्ष 2014 के बाद से लोकतंत्र जिस हालत में है, उसमें मोदी सरकार का यह रवैय्या कहीं से भी आश्चर्यजनक नहीं है। आखिर ट्रंप जैसे तानाशाह के लिए “अबकी बार ट्रंप सरकार” का नारा भी तो मोदी ने ही लगाया था। ब्राज़ील के तानाशाह बोल्सेनारो, मानवाधिकार हनन के लिए कुख्यात इजराइल के प्रधानमंत्री, अपने विरोधियों को विषपान कराने वाले रूस के पुतिन, मानवाधिकार का लगातार हनन करने वाले सऊदी अरब के शासक भी तो मोदी जी के सबसे अच्छे मित्रों में शुमार हैंI इसके अलावा म्यांमार की सेना के साथ अडानी के व्यापारिक रिश्ते भी हैं, ऐसे में जाहिर है कि मोदी जी अडानी के व्यापारिक नुकसान का कोई काम नहीं करेंगेंI

यूनाइटेड किंगडम ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसमें म्यांमार की सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार को हिंसक तरीके से गिराए जाने की भर्त्सना की गई थी और सेना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत कार्यवाही की बात की गई थीI सुरक्षा परिषद् में इस प्रस्ताव का चीन, रूस, भारत और वियतनाम ने सख्त विरोध कियाI ये चारों देश आसियान के सदस्य हैं, जिसका एक सदस्य म्यांमार भी हैI

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इन दिनों पूरी दुनिया में मानवाधिकार और नरसंहार कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है। कुछ देश ऐसे हैं जो इसके विरुद्ध आवाज तो उठाते हैं, पर सख्त कदम कोई नहीं उठाताI जिस तरह आसियान के सदस्य होने के कारण म्यांमार की तख्ता पलट करने वाली सेना के समर्थन में सदस्य देश खड़े हैं, उसी तरह जी-20 का सदस्य होने के कारण सऊदी अरब को मानवाधिकार हनन की खुली छूट मिली हुई हैI

यूनाइटेड किंगडम का प्रस्ताव सख्त शब्दों में म्यांमार की फौज की भर्त्सना कर रहा था और सख्त कार्यवाही के पक्ष में थाI पर, भारत, चीन, रूस और वियतनाम के विरोध के बाद इसे पूरी तरह बदल दिया गया और जो प्रस्ताव पारित किया गया है, उसमें ना तो सेना की भर्त्सना है और ना ही किसी कार्यवाही की बात की गई हैI बस, इतना कहा गया है की सेना को संयम का परिचय देना चाहिए और राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को तत्काल रिहा करना चाहिएI यूनाइटेड किंगडम के मौलिक प्रस्ताव को इतना बदला गया की इसे प्रस्ताव के तौर पर नहीं बल्कि प्रेसिडेंशियल स्टेटमेंट के तौर पर पारित करना पड़ाI सुरक्षा परिषद् में प्रेसिडेंशियल स्टेटमेंट का महत्व बस उतना ही होता है जितना रद्दी कागज के किसी टुकड़े का होता हैI

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इसके अलावा गौतम पीएम मोदी के करीबी भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनी म्यांमार के यंगून में कंटेनर पोर्ट विकसित करने का काम कर रही हैI कंटेनर पोर्ट जहां विकसित किया जा रहा है, वह भूमि म्यांमार इकोनोमिक कोऑपरेशन नामक संस्था के पास है, जिसका स्वामित्व म्यांमार की फौज के पास हैI यानि इस परियोजना का मुनाफा वहां की फौज के पास पहुंचेगाI

इससे पहले 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने एक तीन सदस्यीय दल बनाया था, जिसे म्यांमार की सेना द्वारा किये जाने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन और नरसंहार के बारे में जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थीI म्यांमार की फौज ने रोहिंग्या लोगों के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया था, इसी की पुष्टि करने के लिए यह रिपोर्ट बनाई गईI वहां की फौज ने संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य को म्यांमार में प्रवेश नहीं करने दिया थाI फिर इस दल के सदस्यों ने लगभग 875 विस्थापितों के साक्षात्कार के आधार पर 440 पृष्ठों की एक रिपोर्ट सितंबर 2018 में पेश कियाI ये सभी विस्थापित सेना द्वारा रोहिंग्या के शोषण और नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी भी थेI

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इस रिपोर्ट के अनुसार म्यांमार की सेना नरसंहार, ह्त्या, बिना कारण जेल में डालने, महिलाओं और बच्चियों से बलात्कार, बच्चों के शोषण और उनके गांव में आगजनी के लिए दोषी हैI रिपोर्ट में सभी देशों से अनुरोध किया गया कि वे म्यांमार की फौज के साथ किसी भी तरह के रिश्ते न रखेंI इसके बाद भी अडानी की कंपनी के इसी फौज के साथ व्यापारिक रिश्ते हैंI ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अडानी की ऑस्ट्रेलिया में खनन परियोजना से जो लाभ होगा, उसे म्यांमार की परियोजना में लगाया जाएगाI इसका सीधा मतलब यह है कि अडानी ऑस्ट्रेलिया की कमाई से ऐसे लोगों का भला करेंगे जो मानवाधिकार हनन और नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैंI

जैसा कि उम्मीद थी, अडानी की कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि उनकी कंपनी ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका या फिर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार से संबंधित किसी भी दिशा-निर्देश का उल्लंघन नहीं कर रही हैI लेकिन जब संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ही कहती हो कि म्यांमार की सेना से किसी भी तरह के संबंध नहीं रखे जाएं, तो फिर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कैसे नहीं हो रहा है, इसका जवाब तो केवल अडानी ही दे सकते हैंI यहां ध्यान रखने वाली बात है कि 50 वर्षों की इस परियोजना की लागत 29 करोड़ अमेरिकी डॉलर है और विदेशों में काम करने के लिए जितनी भी अनुमति चाहिए वह मोदी सरकार इस परियोजना को प्राथमिकता के आधार पर पहले ही दे चुकी हैI

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अपने 75 वर्ष पूरे होते-होते संयुक्त राष्ट्र सामान्य जनता के लिए अपना पूरा महत्व खो चुका है। अब यह उन देशों की धरोहर बन गया है जो जनता का दमन करते हैं और मानवाधिकार का खुलेआम हनन करते हैंI ऐसे देश दुनिया की नजरों में अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की संबंधित संस्थाओं के सदस्य पद पर पहुंच जाते हैंI दुनिया में भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, मेक्सिको और क्यूबा जैसे देश मानवाधिकार हनन के मामले में अग्रणी हैं और ये सभी देश संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संरक्षण से जुडी संस्था, ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्य भी हैं और ऐसे देशों को सदस्य बनाने के लिए बड़ी संख्या में अन्य देश भी समर्थन करते हैंI

हाल में ही वर्ष 2021 से 2023 तक के लिए ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्यों के चुनाव में चीन, पाकिस्तान, रूस, मेक्सिको और क्यूबा के अतिरिक्त बोलीविया, कोटे द आइवरी, फ्रांस, गैबन, मलावी, नेपाल, सेनेगल, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम और उज्बेकिस्तान की जीत हुई है और ये देश दुनिया के मानवाधिकार की अब निगरानी करेंगेI भारत वर्ष 2019 से 2021 तक इसका सदस्य रहा हैI दुनिया में मानवाधिकार का क्यों अधिक से अधिक हनन किया जा रहा है, यह इन देशों की सूचि से समझा जा रहा हैI

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लगभग सभी मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार काउंसिल अपनी गरिमा खो चुकी हैI पिछले कुछ वर्षों के दौरान इसके अधिकतर चुने गए सदस्य स्वयं अपने देश में मानवाधिकार का खुलेआम हनन कर रहे हैं, और अपने कारनामों पर पर्दा डालने और अपने विरुद्ध आवाज दबाने के लिए इस काउंसिल की सीट का उपयोग करते हैंI

इस बीच म्यांमार में 1 फरवरी को सेना द्वारा तख्तापलट के बाद से लगभग 70 लोग मारे जा चुके हैं और 2000 से अंधिक आन्दोलनकारियों को जेल में बंद कर दिया गया हैI पूरी दुनिया लोकतंत्र की इस ह्त्या का तमाशा देख रही है और तालियां पीट रही हैI

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