विचार

जीएसटी बजट उत्सवः गरीबी से जूझती आबादी का मजाक बनाते पीएम मोदी

इससे अधिक गरीबों का अपमान क्या हो सकता है कि पूरे महीने में 5000 रुपये से भी कम जिनकी क्रय-क्षमता है उनके नाम पर पीएम मोदी मुस्कराते हुए “बचत उत्सव” का आह्वान करते हैं और फिर सरकार करोड़ों रुपये इसका प्रचार करने में फूंक डालती है।

जीएसटी बजट उत्सवः गरीबी से जूझती आबादी का मजाक बनाते पीएम मोदी
जीएसटी बजट उत्सवः गरीबी से जूझती आबादी का मजाक बनाते पीएम मोदी फोटोः सोशल मीडिया

प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री-संतरी सभी देश के गरीबों का लगातार मजाक ही नहीं उड़ाते रहे हैं, बल्कि इसका जश्न भी मनाते हैं। कभी गरीबी घटाने के नाम पर, कभी 5 खरब वाली अर्थव्यवस्था के नाम पर, कभी चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के नाम पर, कभी महंगाई कम करने के नाम पर तो कभी जीसटी कम करने के नाम पर- लगातार यही क्रम चलता रहा है।

प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन के बाद जनता के नाम इस विषय पर एक खुला पत्र भी लिखा, जिसमें सबकुछ था बस तथ्य नहीं थे। प्रधानमंत्री जी बचत उत्सव मना रहे हैं, सांसद मनोज तिवारी आम जनता की हरेक महीने 15000 से 20000 रुपये तक की बचत बता रहे हैं तो बड़बोले और निहायत ही बेवकूफ सांसद रविकिशन ने बाजार में दामों को आधा तक पहुंचा दिया है। इन सारे दावों के बीच जनता कभी खुद को तो कभी अपनी जेब को टटोल रही है।

जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत-पाकिस्तान युद्ध रुकवाने का दावा करते रहते हैं, ठीक उसी तरह हमारे प्रधानमंत्री जी अपने उद्बोधन में लगातार 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा के पार पहुचाते रहे हैं। आश्चर्य यह है कि 25 करोड़ लोग मोदी जी के शब्दों में “नीयो मिडल क्लास” में पहुंच चुके हैं और अब तो जीसटी दरों में कटौती से जनता 2.5 खरब रुपये बचाएगी, पर 80 करोड़ आबादी मुफ्त अनाज पर ही जिंदा रहेगी।

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गरीबी के बारे में तो सरकारी रिपोर्ट ही बहुत कुछ बताती है। भारत सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2023-2024 के अनुसार, देश की ग्रामीण जनता प्रति माह औसतन 4122 रुपये खर्च करती है, जबकि शहरी जनता औसतन 6996 रुपये खर्च करती है। यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी इस औसत तक नहीं पहुंचती है।

यदि ग्रामीण आबादी की चर्चा करें तो देश की सबसे गरीब 60 प्रतिशत आबादी औसतन 2805 रुपये ही खर्च कर पाती है, जबकि सबसे अमीर 5 प्रतिशत आबादी औसतन 10137 रुपये खर्च करती है। इसी तरह शहरी क्षेत्रों की सबसे गरीब 60 प्रतिशत आबादी औसतन 4349 रुपये खर्च करती है और सबसे अमीर 5 प्रतिशत आबादी 20310 रुपये खर्च करती है।

इससे अधिक गरीबों का अपमान क्या हो सकता है कि पूरे महीने में 5000 रुपये से भी कम जिनकी क्रय-क्षमता है उनके नाम पर प्रधानमंत्री मोदी मुस्कराते हुए “बचत उत्सव” का आह्वान करते हैं और फिर सरकार करोड़ों रुपये इसका प्रचार करने में फूंक डालती है। प्रधानमंत्री के मंत्री-संतरी बचत पर अनर्गल बयान दे रहे हैं। इन सबके बीच देश का आम आदमी बाजार जाने से पहले अपनी जेब को टटोल रहा है।

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मार्च 2023 में सरकारी स्तर पर बड़े जोर शोर से प्रचारित किया गया था कि वर्ष 2014-2015 से लेकर 2022-2023 के बीच देश में प्रति व्यक्ति आय लगभग दोगुनी बढ़ गई। इसके अगले ही वर्ष, यानि 2024 में, देश की बड़बोली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान कर दिया कि अगले 5 वर्षों के दौरान ही देश में प्रति व्यक्ति आय फिर से दोगुनी बढ़ जाएगी और सामान्य आबादी के जीवन स्तर में अप्रत्याशित उछाल आएगा। यह सारे वक्तव्य सुनने में बड़े अच्छे लगते हैं और मीडिया इन्हें खूब प्रचारित करता है- पर वास्तविकता से कोसों दूर हैं।

यदि इन वक्तव्यों को सही मान भी लिया जाए तो वास्तविकता यह है कि प्रति व्यक्ति आय के दोगुना होने के बाद से 80 करोड़ से अधिक आबादी को जिंदा रखने के लिए सरकार को 5 किलो मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है जबकि जब आय आधी थी तब इसकी जरूरत नहीं थी। दूसरी तरफ, अगले 5 वर्षों के दौरान जब प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो जाएगी, तब भी 80 करोड़ से अधिक आबादी को मुफ्त अनाज देने की जरूरत पड़ेगी। सवाल यह उठता है कि, आय दोगुना होने का फायदा किसे मिल रहा है– कम से कम 80 करोड़ से अधिक आबादी को तो बिल्कुल नहीं मिल रहा है, यह तो सरकार स्वयं उजागर कर रही है।

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विशेषज्ञों के अनुसार प्रति व्यक्ति आय के सरकारी दावे महज एक छलावा हैं, जुमला हैं। वर्ष 2014 से 2022 के बीच प्रतिव्यक्ति आय के दोगुना होने के दावों में डॉलर की तुलना में रुपये के अवमूल्यन और बेतहाशा बढ़ती महंगाई दर को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार इस पूरी अवधि में प्रति व्यक्ति आय में वास्तविक वृद्धि महज 35 प्रतिशत ही रही थी, और यह वृद्धि भी देश की सबसे समृद्ध 10 प्रतिशत आबादी के हिस्से ही रही थी।

जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम मंत्री और पालतू दुष्प्रचारक अर्थव्यवस्था से संबंधित जितने भी जुमलों की बरसात कर दें, इनमें से किसी को भी देश की अर्थव्यवस्था का बुनियादी ज्ञान नहीं है। मोदी सरकार में तो यह भी नहीं पता कि वर्ष 2024 में जीडीपी के आंकड़े क्या हैं- कभी 3.54 ट्रिलियन तो कभी 3.7 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा बताया गया, दूसरी तरफ पंकज चौधरी ने वर्ष 2022-2023 में ही जीडीपी को 3.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया था।

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5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, गरीबी हटाओ, जीसटी सुधार और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कभी ना खत्म होने वाला चुनावी नारा है, वर्ष 2018-2019 में उछाला गया, फिर 2023-2024 में उछाला गया और अब इसे फिर से 2028-2029 में उछाला जाएगा। हरेक राज्य के चुनाव से पहले भी सत्ता के मठाधीश इन नारों का जयकारा लगाएंगे।

देश से गरीबी का सफाया करने वाले बीजेपी के नेता हरेक चुनाव से पहले बचत और मुफ़्त राशन के दम पर एक तरफ तो महिलाओं को समृद्धि के शिखर पर बैठाते हैं तो दूसरी तरफ इन्हीं समृद्धि के शिखर की महिलाओं के बैंक खाते में हजारों रुपये जमा भी करवाते हैं। अब तो देश का प्रजातंत्र ही उन हजारों रुपयों पर टिक गया है जो चुनावों से ठीक पहले महिलाओं के बैंक अकाउंट में जाते हैं। पूंजीवादी व्यवस्था में लाभ-हानि का आकलन किया जाता है, जाहिर है इन चंद हजार रुपयों से सत्ता के गलियारे तक का सफर बेहद आसान और सुनिश्चित हो जाता है।

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पूंजीवादी व्यवस्था की चपेट में पूरी दुनिया है। पूंजीवादी व्यवस्था में अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ता जाता है पर आर्थिक असमानता भी बढ़ती जाती है। पूंजीवाद सबसे पहले प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करता है। पर्यावरण के विनाश के बाद असमानता और बढ़ती है क्योंकि दुनिया की एक बड़ी आबादी सीधे तौर पर पर्यावरणीय संसाधनों पर आश्रित है, जिसे पूंजीवाद उनसे छीन लेता है। बढ़ती आर्थिक असमानता के दौर में दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता पर काबिज होती हैं और यही विचारधारा पूंजीवाद का पहले से अधिक समर्थन करती है। यह एक ऐसा सामाजिक और राजनैतिक दुष्चक्र है जिससे पूरी दुनिया प्रभावित है।

लगातार बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था में हरेक व्यक्ति के स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, ऊर्जा, और सम्मानजनक जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने का सामर्थ्य है पर ऐसा होता नहीं है। पूंजीवाद में सभी संसाधन लूटे जाते हैं, जाहिर है ताकतवर ही इसे लूट सकते हैं। गरीबों के संसाधन अमीर लूटते हैं- यही लूट इन्हें पहले से अधिक अमीर बनाती है, और गरीब को पहले से भी अधिक गरीब। पूंजीवाद हमेशा गरीबी घटाने पर विमर्श करता है, विमर्श जितना अधिक होता है गरीबों की संख्या उतनी ही बढ़ती है। यही बीजेपी का विकास है, प्रधानमंत्री का उत्सव है और मोदी की गारंटी है।

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