विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: घटियापन का नोबेल होता तो चार आ गए होते अब तक

पुरस्कार प्राप्ति के अवसर पर मोदीजी जरूर विनम्रता का प्रदर्शन करते और यह कहना न भूलते कि यह मेरा नहीं बल्कि विशेषकर देश की हिंदूवादी जनता, संघप्रमुखजी, संघ परिवार के विभिन्न संगठनों, 2002 में मेरा साथ देने वाले तमाम मानवभक्षकों का सम्मान है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

हम अविस्मरणीय घटियापन के स्वर्णयुग में जी रहे हैं और जो जी नहीं पा रहे होंगे-थोड़ा थोड़ा करके मर रहे होंगे! बताइए, अगर लोग एक ऐसे समय में भी मर रहे हों, जब हमारे देश में घटियापन के प्रतिक्षण, प्रतिदिन नवीनतम आविष्कार हो रहे हों, जो इस 'महान उपलब्धि' पर खुश नहीं हो सकते, वे खुशी -खुशी मरें, कल मरनेवाले हों तो आज मरें और आज मरनेवाले हों तो अभी मरें ! किसे परवाह है उनके मरने की! मरने पर इस देश में वैसे भी इस महान देश में कोई रोक नहीं है, हाँ जीने पर है।

हम भी क्या करेंं, घटियापन के प्रदर्शन का कोई नोबल पुरस्कार भी तो नहीं है वरना दुनिया के बड़े -बड़े देश सिर पटककर मर भी जाते तो पिछले चार साल में हमारे देश के मुकाबले दूर- दूर तक फटक भी नहीं पाते। संभव है कि इस साल डोनाल्ड ट्रंप जी और हमारे प्रधानसेवक जी में कड़ी प्रतियोगिता की नौबत आती और मोदीजी 2019 में भारत में होनेवाले चुनावों का वास्ता देकर अपना उल्लू , ट्रंप साहब से भी सधवा लेते। ट्रंप साहब की ट्रंपई धरी की धरी रह जाती और मोदीजी की मोदई चल जाती और इस साल का नोबल पुरस्कार भी भारत को यानी मोदीजी को, उनके मातृसंगठन को मिल जाता! मोदी एंड कंपनी विश्व में इस तरह लगातार चार साल तक नोबल पुरस्कार लेने का ऐसा रिकॉर्ड कायम करती कि राहुल गाँधी के छक्के छूट जाते। भारत का तो नहीं मगर मोदीजी का नाम जरूर ही विश्व भर में इस रूप में अजर -अमर हो जाता! मोदीजी खुद मोदी -मोदी कर रहे होते, लेकिन हा हंत, दुनिया कहाँ से कहाँँ पहुंच गई मगर नोबल वाले एक ऐसा पुरस्कार तक स्थापित नहीं कर सके!

पुरस्कार प्राप्ति के अवसर पर मोदीजी जरूर विनम्रता का प्रदर्शन करते और यह कहना न भूलते कि इसका श्रेय मुझे नहीं जाता, देश की 130 करोड़ जनता को जाता है, इस सम्मान की असली भागीदार वह है, मैं तो निमित्त मात्र हूँ। यह मेरा नहीं बल्कि विशेषकर देश की हिंदूवादी जनता, संघप्रमुखजी, संघ परिवार के विभिन्न संगठनों, 2002 में मेरा साथ देनेवाले तमाम मानवभक्षकों का सम्मान है। इससे विश्व गुरुत्व के क्षेत्र में हमारा दावा पक्का हुआ है। कांग्रेस जो अपने साठ साल के शासनकाल में नहीं कर सकी, वह हमने चार साल में करके देश का गौरव बढ़ाया है। इसके लिए 56 इंंच का सीना चाहिए, जो मेरे पास है और आपको शायद पता न हो कि अब वह अट्ठठावन इंच का हो चुका है और 2019 में 60 इंच का हो जानेवाला है।और 2019 में भी जनता ने हमारा साथ दिया तो यह 65 इंची हो जाएगा। मेरा वायदा है कि ऐसा हुआ तो मैं 2024 तक भी यह पुरस्कार भारत को निरंतर दिलवाता रहूँगा वरना मुझे फिर से आप उसी तरह फाँसी पर चढ़ा देना, जैसे नोटबंदी के बाद आपने चढ़ा दिया था और मैं आज भी जिंदा हूँ। इसके नतीजे में मैंने अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश का चुनाव जितवाने का महान काम किया !

और हमें पता चलता कि ऐसी स्थिति में रवींद्रनाथ टैगोर, अमर्त्य सेन आदि के साथ भागवत जी, मोदीजी और शाह जी की तस्वीरें भी जगह- जगह 'शोभायमान' हैं। उनके पीछे केसरिया झंडा लहरा रहा है।

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बिना नोबल पुरस्कार के भी आज घटियापन का कोई क्षेत्र उन्होंने दूसरोंं के लिए नहीं छोड़ा है।झूठ की एक इंच जमीन भी उन्होंने असिंचित नहीं रहने दी है। उसे घृणा का रासायनिक खाद इतना अधिक दिया है कि कण -कण में घटियापन का ऐसा रसायन व्याप्त है कि उसका सेवन करो तो मरो और न करो तो मार दिए जाओ! घटियापन की खेती ऐसी लहलहा रही है कि इसके किसानों के दिल बाग- बाग हैंं। न्यूनतम समर्थन मूल्य से दुगने दाम बाजार में मिल रहे हैंं।

आज आवश्यकता महसूस की जा रही है कि घटियापन, तंगदिली, नफरत की कारपोरेट कृषि को बढ़ावा देने के लिए पहले से खुले एक (अ)राष्ट्रीय स्वयंसेवक संस्थान से भी आगे जानेवाला अखिल ब्रह्मांड संस्थान भी होना चाहिए। जो मोदीजी-योगी जी-शाह जी के आदर्शों को आगे बढ़ाते हुए ही उन्हें पीछे छोड़ सके, जो अधिक आधुनिकतम तकनीकों का प्रयोग करके भावी पीढ़ियों को 'दिशा' दे सके।सरकार इस बारे में अध्यादेश लाने पर सक्रियता से विचार कर रही है, ताकि 2019 में सरकार की इस उपलब्धि को जनता के सामने रखा जा सके।

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