विचार

राम पुनियानी का लेखः हनुमान, अंतरिक्ष यात्री और BJP-RSS, पौराणिक कथाओं के बहाने गहरी साजिश

जहां वैज्ञानिक समझ की बात करने वाला भारतीय संविधान सामाजिक बदलाव का पक्षधर है, वहीं हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा आजादी के संघर्ष के दौरान हासिल की गई और भारतीय संविधान में प्रतिबिंबित होने वाली सोच की दिशा पलटना चाहती है।

हनुमान, अंतरिक्ष यात्री और BJP-RSS, पौराणिक कथाओं के बहाने गहरी साजिश
हनुमान, अंतरिक्ष यात्री और BJP-RSS, पौराणिक कथाओं के बहाने गहरी साजिश फोटोः सोशल मीडिया

सारी दुनिया में पौराणिक कथाएं कल्पना की उड़ानों से भरी होती हैं। बचपन में जब हम उन्हें सुनते हैं तो वे हमें बहुत मनमोहक लगती हैं और हमेशा हमारी स्मृतियों में बनी रहती हैं। मगर होती तो वे कहानियां ही हैं। मगर पिछले कुछ दशकों में एक नई प्रवृत्ति उभरी है। हमारे देश के दक्षिणपंथी सत्ताधारी पौराणिक कथाओं को इस तरह पेश करने लगे हैं मानो वे सच हों। सार्वजनिक मंचों से ऐसे दावों की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डॉक्टरों और देश को यह याद दिलाने के साथ हुई कि प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जन रहे होंगे तभी हाथी के बच्चे का सिर भगवान गणेश को लगाया गया होगा!

मैं किसी की भावनाओं  को आहत नहीं करना चाहता किंतु जब मैंने चिकित्सकीय दृष्टिकोण से यह समझने का प्रयास किया तो मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि आज की तारीख में भी ऐसा करना असंभव है। साथ ही मुझे यह भी पता लगा कि मिस्र की पौराणिक कथाओं में भी पशुओं के सिर वाले देवी-देवताओें का जिक्र है। मिस्र के देवी-देवताओं के बारे में दिलचस्प यह है कि जिस पशु का सर उनके धड़ में लगा है, वह पशु उनके स्वभाव से मेल खाता है। जैसे मिस्र की युद्ध की देवी सेकमेट का सिर शेरनी का है जो यह दिखाता है कि वे कितनी डरावनी और क्रूर हैं। ऐसे बहुत से अन्य अद्भुत देवी-देवता हैं।

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उतना ही दिलचस्प यह है कि पाकिस्तान में जिया-उल-हक के शासनकाल में यह बात सामने आई थी कि जिन्नात कभी न खत्म होने वाली उर्जा के स्त्रोत हो सकते हैं। यहां तक कि विज्ञान कांग्रेस के सम्मेलनों तक में इस पर गंभीरता से चर्चा की गई थी। जिन्नों पर आधारित दूरसंचार नेटवर्क का विचार भी प्रस्तुत किया गया था। यह भी कहा गया था कि जिन्नों की शक्ति का उपयोग राडारों को चकमा दे सकने वाली मिसाईलें बनाने के लिए किया जा सकता है।

शोध के एक नए क्षेत्र, जिन्न रसायन, का जन्म भी जिया के कार्यकाल में हुआ, जिसके बारे में यह कहा गया कि उसके और विकास की गुंजाइश थी। 1970 के दशक में पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के एक निदेशक ने यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि पेट्रोल-डीजल और परमाणु ईंधन की जगह जिन्नों की उर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पाकिस्तान में पौराणिक कथाओं पर आधारित ऐसी कल्पनाओं पर अमल नहीं हो रहा होगा!

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हमें ये बातें इसलिए याद आ रही हैं क्योंकि हाल ही में दो शीर्ष बीजेपी नेताओं ने अंतरिक्ष यात्रा के बारे में बयान दिए हैं। राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर स्कूली बच्चों से बात करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सांसद अनुराग ठाकुर ने उनसे सवाल किया कि अंतरिक्ष में जाने वाला पहला मनुष्य कौन था। सभी बच्चों ने एक सुर में जवाब दिया, नील आर्मस्ट्रांग। इस पर ठाकुर ने कहा- नहीं, यह सही जवाब नहीं है, सही जवाब है भगवान हनुमान। ठाकुर ने जोर देकर शिक्षकों से कहा कि वे “अंग्रेजों द्वारा तैयार कराई गई पाठ्यपुस्कों से आगे” भी देखें। ठाकुर ने उनसे कहा कि वे “वेदों, हमारी पुस्तकों और हमारे ज्ञान की ओर भी ध्यान दें। प्रचलित कथा के अनुसार भगवान हनुमान उड़ते हुए गए और वह पर्वत उठाकर ले आए जिसपर जीवनरक्षक जड़ीबूटी थी!‘‘

इसी तर्ज पर केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राईट बंधुओं द्वारा हवाई जहाज का अविष्कार करने के बहुत पहले पुष्पक विमान अस्तित्व में था। क्या बात है! विज्ञान की मामूली समझ रखने वाला व्यक्ति भी यह जानता है कि उड़ने वाली मशीन बनाने के लिए किस तरह की चीजो की जरूरत होती है। हवा में उड़ना मानवजाति का बहुत पुराना सपना रहा है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने जी तोड़ प्रयास किए, प्रयोगशालाओं और मैदानों में पसीना बहाया, ताकि यह सपना सच हो सके।

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यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि पौराणिक कथाओं को वास्तविकता की तरह पेश करने वाले ये महानुभाव वास्तव में ऐसा ही सोचते हैं या वैज्ञानिक नजरिये का अवमूल्यन करने के लिए ऐसी बातें कर रहे हैं। इतना ही नहीं, चौहान ने आगे यह भी कहा कि महाभारत काल में भारत तकनीकी दृष्टि से अति विकसित था। उनके अनुसार, “आज हमारे पास जो ड्रोन और मिसाइले हैं, वे हजारों साल पहले से ही हमारे पास थीं। हमने यह सब महाभारत में पढ़ा है‘‘।

अतीत की महान उपलब्धियों के एक से बढ़कर एक दावे करने की प्रतियोगिता सी चल रही है। जबसे मोदी ने पौराणिक कथाओं को विज्ञान की तरह पेश करने का सिलसिला शुरू किया है, विभिन्न बीजेपी नेता तरह-तरह के ऐसे दावे करते रहते हैं जिनमें वर्तमान तकनीकी उपलब्धियों के प्राचीन भारत में मौजूद होने की बात की जाती है। जैसे दिवंगत विजय रूपाणी ने कहा था कि “नारद भी गूगल की तरह जानकारी का स्त्रोत थे”।

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ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर के मुताबिक, त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री विप्लव कुमार देब ने 17 अप्रैल 2018 को दावा किया था कि ‘‘भारत में युगों-युगों से इंटरनेट का इस्तेमाल होता आया है। महाभारत में संजय ने धृतराष्ट्र को युद्धक्षेत्र का पूरा ब्यौरा लाइव दिया था। यह इंटरनेट के कारण ही संभव हो सका था। उस काल में उपग्रह भी होते थे‘‘। पूर्व विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री डॉ हर्षवर्धन, जो स्वयं डॉक्टर हैं, का कहना है कि “हिंदुओं का हर रस्मो-रिवाज विज्ञान से ओतप्रोत है और आधुनिक काल की हर उपलब्धि, प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धियों से जुड़ी हुई है “(16 मार्च, 2018 )।

ये बीजेपी नेताओं द्वारा बांटे जा रहे ज्ञान के कुछ मोती मात्र हैं। यह सब उस वैज्ञानिक समझ के खिलाफ है जिसकी नींव पर सभी आधुनिक भारतीय विज्ञान संस्थान स्थापित किए गए हैं। यह सोचकर रूह कांप उठती है कि यदि आजादी के तुरंत बाद इस विचारधारा के लोग सत्ता में होते और इन विचारों के आधार पर योजनाएं बनाई जातीं, तो क्या होता। आजादी के बाद के शुरूआती दशकों में भारत में कई वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना हुई जिसके चलते भारत में वैज्ञानिक तैयार हुए और शोध शुरू हुआ।

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आखिर बीजेपी के सत्ताधारी नेता पौराणिक कल्पनाओं को वैज्ञानिक तथ्यों के रूप में क्यों पेश करते हैं? वर्तमान में देश में आस्था पर आधारित ज्ञान और सोच का बोलबाला है। बाबाओं और अतीत के गुणगान का माहौल है। ज्ञान धीरे-धीरे विकसित होता है और वह देशों की सीमाओं के परे होता है। प्राचीन भारत का विज्ञान के क्षेत्र में महान योगदान था। आर्यभट्ट, सुश्रुत और उनके जैसे बहुत से अन्य व्यक्तियों का ज्ञान के भंडार को समृद्ध करने में प्रभावी योगदान रहा। यह प्रक्रिया समाज के विकास के समानांतर चलती रही।

आस्था और तर्कपूर्ण विचार मानव इतिहास में कई बार एक-दूसरे से टकराए हैं। समाज के यथास्थितिवादी तबके आस्था पर आधारित समझ से चिपके रहते हैं। वहीं समाज में बदलाव और समानता के पक्षधर और अन्याय विरोधी तबके तार्किक ज्ञान और वैज्ञानिक समझ के पैरोकार होते हैं। बीजेपी और पूरे संघ परिवार की सोच मूलतः असमानता पर आधारित सामाजिक मूल्यों पर आधारित है। भारतीय संविधान हमें समानता की दिशा में सामाजिक बदलाव करने का मौका देता है। हमारा संविधान वैज्ञानिक समझ को भी महत्व देता है। बीजेपी समेत संघ परिवार पीछे की ओर देखते हैं और वे कई तरीकों से वैज्ञानिक समझ और भारतीय संविधान का विरोध करते आ रहे हैं।

राजनैतिक विचारधाराएं एक पैकेज डील होती हैं। जहां वैज्ञानिक समझ की बात करने वाला भारतीय संविधान सामाजिक बदलाव का पक्षधर है, वहीं हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा आजादी के संघर्ष के दौरान हासिल की गई और भारतीय संविधान में प्रतिबिंबित होने वाली सोच की दिशा पलटना चाहती है। आस्था के सिपाही, जो वैज्ञानिक समझ के विरोधी हैं, एक ओर वैज्ञानिक समझ को कमजोर कर रहे हैं और दूसरी ओर आजादी, समानता और बंधुत्व के विचारों को धक्का पहुंचा कर देश को पीछे की ओर ले जाना चाहते हैं।

(लेख का अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)

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