विचार

कोरोना से वैक्सीन कब तक सुरक्षा देगी, कहना मुश्किल, अभी तो टीकों का विकास जारी है

फायजर की वैक्सीन काफी असरदार मानी जा रही है। उसके निर्माताओं ने संकेत दिया है कि उनकी वैक्सीन का असर कम-से-कम छह महीने तक रहेगा, यानी इतने समय तक शरीर में बनी एंटी-बॉडीज का क्षरण नहीं होगा। पर यह असर की न्यूनतम प्रमाणित अवधि है, जो ट्रायल में सामने आई है

फोटोः प्रतीकात्मक
फोटोः प्रतीकात्मक Asif Suleman Khan

कोविड-19 का टीका लगने के बाद शरीर में कितने समय तक इम्यूनिटी बनी रहेगी? क्या दुबारा टीका या बूस्टर लगाना होगा? क्या डोज बढ़ाकर इम्यूनिटी की अवधि बढ़ाई जा सकती है? क्या दो डोज के बीच की अवधि बढ़ाने से इम्यूनिटी की अवधि बढ़ सकती है? ऐसे तमाम सवाल हैं।

इनके जवाब से पहले दो बातें समझनी होंगी। एक, वैक्सीन रिकॉर्ड समय में विकसित हुए हैं और आपातकालीन परिस्थिति में लगाए जा रहे हैं। इनका विकास जारी रहेगा। दूसरा, प्रत्येक व्यक्ति की इम्यूनिटी का स्तर अलग होता है। दुनिया में केवल एक प्रकार की वैक्सीन नहीं है। कोरोना की कम-से-कम एक दर्जन वैक्सीन है और दर्जनों पर काम चल रहा है। सबके असर अलग-अलग होंगे। अभी डेटा आ ही रहा है। फिलहाल कह सकते हैं कि छह महीने से लेकर तीन साल तक तो इनका असर रहेगा।

Published: undefined

हाल में अमेरिकी अखबार वॉलस्ट्रीट जरनल ने इस बारे में पूछा तो विशेषज्ञों ने कहा कि अभी तो उन्हें भी नहीं पता। अभी आ रहे डेटा की समीक्षा के बाद ही इसका जवाब मिल सकेगा। फायजर की वैक्सीन काफी असरदार मानी जा रही है। उसके निर्माताओं ने संकेत दिया है कि उनकी वैक्सीन का असर कम-से-कम छह महीने तक रहेगा, यानी इतने समय तक शरीर में बनी एंटी-बॉडीज का क्षरण नहीं होगा। पर यह असर की न्यूनतम प्रमाणित अवधि है, क्योंकि परीक्षण के दौरान इतनी अवधि तक असर रहा है।

हाल में न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मेडिसन (एनईजेएम) में मॉडर्ना वैक्सीन के बारे में एक अध्ययन में पता लगा कि इसका असर छह महीने से ज्यादा रहता है। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर स्कॉट हेंस्ले का कहना है कि हमारे पास छह महीने का डेटा ही है, इसलिए कह रहे हैं कि छह महीने तक एंटी-बॉडीज रहेंगी। हो सकता है कि अब से छह महीने बाद हम कहें कि साल भर तक असर रहेगा। क्या वायरस का नया वेरिएंट वैक्सीन को प्रभावहीन कर देगा? इस सवाल के जवाब में वर्सेस्टर, मैसाच्युसेट्स के होली क्रॉस कॉलेज की इम्यूनोलॉजिस्ट एन शीही के अनुसार, कोई वेरिएंट वैक्सीन के प्रतिरक्षण को कम कर सकता है, खत्म नहीं।

Published: undefined

वैक्सीन के बावजूद संक्रमण

हाल में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 37 डॉक्टरों के संक्रमित होने की खबर मिली। ऐसा ही समाचार लखनऊ के मेडिकल कॉलेज से मिला। इन डॉक्टरों को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं। जो वैक्सीन दस-दस साल के शोध के बाद लगाई जाती हैं, उन पर भी यह बात लागू होती है। वैक्सीन लगने के बाद संक्रमित हो सकते हैं, लेकिन बीमारी अपेक्षाकृत कम खतरनाक होगी। टीका लगने के बाद भी मास्क पहनना, हाथ धोते रहना, भीड़ में कम जाना, सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करना जरूरी है। वैक्सीन में भी वायरस जैसे लक्षण होते हैं, जो इम्यून-प्रणाली को जगाते हैं। यह जाग्रति छह महीने या साल भर या आजीवन भी रह सकती है। यह व्यक्ति की अपनी इम्यून प्रणाली पर भी निर्भर करेगा। दूसरे यह अलग-अलग वैक्सीनों पर भी निर्भर करेगा।

इसीलिए विशेषज्ञ जोर दे रहे हैं कि वायरस पर नियंत्रण के लिए वैक्सीन अकेला उपकरण नहीं है। यह सवाल भी पूछा जाता है कि पहले ही संक्रमित हो चुके व्यक्ति को वैक्सीन लेनी चाहिए? विशेषज्ञों का कहना है कि हां, इससे शरीर की प्रतिरक्षा बेहतर होगी। संक्रमण के कारण जो प्रतिरक्षा प्राकृतिक रूप से पैदा हुई, वह वैक्सीन की मदद से सुदृढ़ होगी। अलबत्ता जिनकी चिकित्सा मोनोक्लोनल एंटी-बॉडीज यानी प्लाज़्मा से हुई है, उन्हें इलाज के बाद वैक्सीन के लिए 90 दिन तक रुकना चाहिए।

Published: undefined

एक और सवाल पूछा गया है कि वैक्सीन की दो डोज में कितना अंतराल होना चाहिए और क्या अंतराल बढ़ाने से प्रभावोत्पादकता बढ़ जाती है? प्रसिद्ध वैक्सीन विशेषज्ञ डॉ गगनदीप कांग का कहना है कि यह भी वैक्सीन पर निर्भर करता है और इस बात पर भी कि व्यक्ति के शरीर में पहले से एंटी-बॉडीज थे या नहीं। कई बार नवजात के शरीर में माता के गर्भ से ही एंटी-बॉडीज होते हैं। ऐसे में शिशु को लाइव वैक्सीन (एक्टिवेटेड) देने का ज्यादा लाभ नहीं होता। इसीलिए हम नवजात शिशु को खतरे का वैक्सीन देने में विलंब करते हैं और इंतजार करते हैं कि नौवें महीने तक मां के शरीर से प्राप्त एंटी-बॉडीज़ खत्म हो जाएं।

जहां तक एक से ज्यादा डोज वाली वैक्सीन का मामला है, आमतौर पर इम्यून सिस्टम को विकसित होने में करीब तीन हफ्ते लगते हैं, पर एंटी-बॉडीज को पूरी तरह विकसित होने में आठ हफ्ते तक लग सकते हैं। दूसरी डोज के लिए सिद्धांततः अधिकतम समय की कोई सीमा नहीं है। अलबत्ता न्यूनतम तीन या चार सप्ताह होने चाहिए। अंतर ज्यादा होने से बेहतर सुरक्षा मिलती है, तो इसके दो लाभ हैं। एक तो सुरक्षा और दूसरे यदि वैक्सीन की उपलब्धता कम है, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका मिल सकता है। अभी तमाम बातों पर अध्ययन नहीं हुए हैं। मसलन जिन्हें एक डोज मिली है, उनके शरीर में वायरस म्यूटेट कर रहा है या नहीं, इसकी जाच जटिल विषय है।

Published: undefined

हाल में भारत सरकार ने कोविशील्ड के दोनों डोज के बीच के अंतराल को बढ़ाया है। ऐसा दूसरे देशों में भी हुआ है। कनाडा ने सभी वैक्सीनों के लिए अंतराल चार महीने का कर दिया है। चूंकि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से जुड़े साक्ष्य बता रहे हैं कि दो डोज के बीच अंतर बढ़ाने से परिणाम बेहतर आ रहे हैं, इसलिए कई देशों ने अंतर बढ़ा दिया है। डॉ कांग मानती हैं कि इनएक्टिवेटेड वैक्सीन (जिनमें निष्क्रिय वायरस का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि कोवैक्सीन) में छोटी समयावधि के बाद दो या तीन डोज या बूस्टर डोज उपयोगी होंगी।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined

  • बड़ी खबर LIVE: कांग्रेस ने ओडिशा की 2 लोकसभा और विधानसभा की 8 सीट के लिए उम्मीदवार का ऐलान किया, देखें पूरी लिस्ट

  • ,
  • तारक मेहता... में सोढ़ी बन चुके गुरुचरण सिंह आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे, साथी कलाकारों ने ठीक होने की जताई उम्मीद

  • ,
  • BSP नेता आकाश आनंद ने आतंकवादियों से की BJP सरकार की तुलना, आचार संहिता समेत कई धाराओं में केस दर्ज

  • ,
  • बरनाला में किसानों और बेरोजगारों का जोरदार प्रदर्शन, वादे पूरे नहीं होने पर पूरे पंजाब में AAP के विरोध का ऐलान

  • ,
  • ओडिशा में BJP-BJD पर बरसे राहुल गांधी, बोले- मोदी-पटनायक में मिलीभगत, दोनों कुछ कॉर्पोरेट्स को पहुंचा रहे लाभ