विचार

मध्य आय के जंजाल से कैसे निकलें बाहर!

समावेशी विकास के लिए प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने पर होना चाहिए नीति का फोकस : अजीत रानाडे

दिल्ली में पिछले सप्ताह हुई नीति आयोग के बैठक में प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री (फोटो सौजन्य - पीआईबी)
दिल्ली में पिछले सप्ताह हुई नीति आयोग के बैठक में प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री (फोटो सौजन्य - पीआईबी) 

1990 के आसपास भारत और चीन डॉलर में अर्थव्यवस्था के आकार और प्रति व्यक्ति आय के मामले लगभग बराबर थे। उस समय चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत से कम थी। 190 देशों की वरीयता में दों ही 140 और 145 नंबर पर थे। चीन ने 1978 में आर्थिक सुधार शुरु किए, लेकिन तरक्की का पहिया उस तेजी से नहीं घूम पाया। भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत चीन के 13 साल  बाद 1991 में हुई।

वहां से निकलकर मौजूदा समय में आते हैं। आज ये दोनों देश दुनिया की दूसरी और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। चीन 2010 में ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक भारत ने पिछले सप्ताह ही अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चौथा स्थान हासिल किया है। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई नीति आयोग गवर्निंग काउंसिल की बैठक के इतर इस बाबत घोषणा की। नीति आयोग के सीईओ इस बात को लेकर काफी आश्वस्त दिखे कि भारत अगले तीन साल में जर्मनी को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

बीते तीन दशकों में भारत और चीन का उदय बहुत ही उत्साहवर्धक रहा है। दोनों ही एशिया के देश हैं जहां दुनिया की कुल आबादी का 40 फीसदी हिस्सा बसता है। भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल 4.1 ट्रिलियन डॉलर आंकी जा रही है। चीन की अर्थव्यवस्था 19.1 ट्रिलियन डॉलर के साथ भारत से पांच गुना अधिक बड़ी है। विश्वबैंक के मुताबिक 2000 से 2024 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था (असली मायनों में) 6.3 फीसदी की सालाना रफ्तार से बढ़ी है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में यह सबसे तेज रफ्तार है। हाल के वर्षों में भारत की औसत वृद्धि 7.3 फीसदी तक पहुंची है।

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1990 से तुलना करें तो आज भारत की अर्थव्यवस्था 11.5 गुना बड़ी हो चुकी है, जबकि देश की आबादी सिर्फ 1.6 फीसदी बड़ी है। इसका अर्थ है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय में भी ठीकठाक वृद्धि हुई है, जो कि 1990 के 360 डॉलर से बढ़कर 2025 में 2,700 डॉलर तक पहुंच गई है।

चीन और भारत में एक बड़ा फर्क है। 1990 में दोनों देशों की प्रति व्यक्ति आय लगभग समान थी। लेकिन 2025 में चीन की प्रति व्यक्ति आय 13,000 डॉलर पहुंच गई है जोकि भारत के मुकाबले पांच गुना अधिक है। इसका कारण मोटे तौर पर यह है किचीन की अर्थव्यवस्था में बीते 35 वर्षों के दौरान 51 गुना वृद्धि हुई है और उसने बीते तीन दशकों से अपनी अर्थव्यवस्था में तरक्की की रफ्तार को 10 फीसदी पर बनाए रखा है। 199 0में दोनों देशों की प्रति व्यक्ति आय समान थी। लेकिन भारत भारत अब 197 देशों में 141वें नंबर पर है, जबकि चीन 70वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत विश्व बैंक के मध्य आय वाले सूचकांक में अपनी जगह बनाए हुए है, जबकि चीन उच्च आय वाले सूचकांक में पहुंचने वाला है, क्योंकि जल्द ही उसकी प्रति व्यक्ति आए 14,000 डॉलर प्रति व्यक्ति से भी आगे निकल सकती है।

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इस सीमा से ऊपर वाले देशों को विश्व बैंक विकसित देशों की श्रेणी में रखता है। भारत ने 2047 तक इस कद को हासिल करने का लक्ष्य रखा है। ऐसा संभव करने के लिए भारत को अपनी तरक्की की रफ्तार को अगले बीस साल तक बढ़ाकर औसतन 7.8 फीसदी तक ले जाना होगा, वह भी डॉलर के हिसाब से, यानी हाल के सालों में हासिल की गई औसत 7.3 फीसदी की रफ्तार को बनाए रखना होगा।

लेकिन सवाल है कि आखिर 1990 से 2025 के दौरान भारत तुलनात्मक रूप से चीन से पिछड़ क्यों गया? क्या इसका कारण यह है कि भारत ने अपने निर्यात आधारित वृद्धि की की संभावनाओं को अनदेखा किया, खासतौर से श्रम आधारित निर्यात में? या फिर इसका कारण है कि भारत में 1991 में खत्म हुआ ‘लाइसेंस राज’ की जगह  ‘इंस्पेक्टर राज’ ने ले ली? या ऐसा है कि भारत में शासन के तीन-स्तरीय सिस्टम ने कारोबार करना मुश्किल कर दिया? या कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत अपने लोकतंत्र को बचाए रखे की कीमत अपनी धीमी तरक्की से चुका रहा है?

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चीन के संदर्भ में भारत की कमजोर तरक्की को लेकर और भी बहुत से सवाल है, लेकिन उनमें उलझने के बजाए बेहतर यह रहेगा कि हम इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि कम से कम दो दशकों तर उच्च वृद्धि दर हासिल करने के लिए क्या किया जा सकता है, और इसका रास्ता ऐसा हो जो समावेशी भी हो ताकि प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि हो सके। इसका अर्थ होगा कि ऐसी वृद्धि जिसमें उत्पादकता, मजदूरी, घरेलू आमदनी और अच्छी नौकरियां मुहैया कराई जाएं। अगर इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया गया तो भारत भले ही 2047 तक तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था तो बन जाए लेकिन फिर भी यह मध्य आय श्रेणी में ही फंसा रहेगा। यानी प्रति व्यक्ति आय 10,000 डॉलर से कम ही रहेगी।

जैसा कि विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि बीते 50 वर्षों के दौरान अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं की हालत ऐसी ही रही है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक 34 देश मध्य आय वर्ग से निकलकर उच्च आय वर्ग में आए हैं, जबकि 108 देश अभी भी मध्य आय वर्ग में ही फंसे हुए हैं। और यह स्थिति ऐसी ही रहेगी क्योंकि ये देश अमेरिका के लगभग दसवें हिस्से या वर्तमान संदर्भ में लगभग 8,000 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय पर अटके हुए हैं।

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भारत के लिए दक्षिण कोरिया, चिली और पोलैंड जैसे देशों की मिसालें उल्लेखनीय संदर्भ हो सकती हैं क्योंकि ये देश मध्यम आय के जाल से बाहर निकलने में कामयाब हुए हैं। लेकिन समय तेजी से बीतता जा रहा है। जैसा कि विश्व बैंक की रिसर्च से पता चलता है, किसी देश को मध्यम आय से उच्च आय में बदलने के लिए थ्री 'आई' – इन्वेस्टमेंट, इन्फ्यूजन, इनोवेशन यानी निवेश, सम्मिश्रण और नवाचार - का संयोजन आवश्यक है।

प्रधानमंत्री की इस मांग को पूरा करने के लिए कि सभी राज्यों (और वास्तव में उनके भीतर हर शहर और गांव) को विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा पाने के लिए प्रयास करना चाहिए, हर स्तर पर तेज़, निरंतर और समावेशी विकास की आवश्यकता है, यानी राज्य, शहर और गांव सभी जगह समान रूप से तेज विकास हो। इसमें छोटी फर्मों (सूक्ष्म उद्यमों को छोड़कर) की विकास क्षमता को अनलॉक करना शामिल होगा, जो रोजगार, उत्पादन और निर्यात पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसमें कृषि क्षेत्र को मुक्त करना भी शामिल है, जो मुख्य रूप से राज्य का विषय है।

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विश्व बैंक की योजना में पहला 'आई' निवेश के लिए है, जिसे भारत को जीडीपी के 40 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा। साथ ही, श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी को 35 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करना होगा। दूसरा 'आई' वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ एकीकरण, व्यापार समझौते स्थापित करने और विदेशी निवेश के लिए टैरिफ और बाधाओं को कम करके नई प्रौद्योगिकियों के समावेश को संदर्भित करता है।

तीसरा 'आई' नवाचार के लिए है, जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाना शामिल है, साथ ही कौशल विकास, प्रशिक्षण और बढ़ी हुई रोजगार क्षमता के माध्यम से मानव पूंजी का पर्याप्त उत्थान करना शामिल है। भारत को 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने, आय असमानता को काबू में रखने और तीन-स्तरीय मजबूत लोकतंत्र में सहकारी संघवाद को मजबूत करने की कठिन चुनौतियों से निपटते हुए यह सब हासिल करना होगा।

(अजित रानाडे जानेमाने अर्थशास्त्री हैं। सौजन्य – द बिलियन प्रेस)

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