विचार

2024 में भारत के लिए कुछ प्रतिबद्ध और चिंतित नागरिकों के विचार-1: मौलिक अधिकारों के लिए लड़ना होगा- आकार पटेल

नया वर्ष शुरु हो गया है। लेकिन बीते वर्षों में देश को एक सूत्र में पिरोए रखने वाला 'आइडिया ऑफ इंडिया' लुप्त प्राय हो गया है। ऐसे में इस आडिया के प्रति देश के कुछ प्रतिबद्ध चिंतित नागरिक नए साल में आशा के संकेत तलाश रहे हैं। पढ़िए पहली कड़ी...

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आज के ऐसे समय में हमें याद रखना चाहिए कि हम नागरिक हैं, प्रजा नहीं।

अंतर एक तथ्य पर आधारित है: हम पर शासन नहीं किया जा रहा है, हम सिर्फ शासित हैं। वोट देने के अलावा हमारे पास जो अधिकार है, वह है हमारा मौलिक अधिकार, और अपनी बात कहने, उसे फैलाने के लिए इस पर जोर दिया जाना चाहिए। उस अधिकार का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। न्याय प्रणाली से जुड़ना हमारा अधिकार है। इसका उपयोग काम करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने और जहां-तहां उसकी लापरवाहियां रोकने के लिए किया जाना चाहिए।

नागरिक समाज को इतना संगठित होना चाहिए कि धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद से दूर जाने की स्थिति में सरकार पर उसका दबाव बना रहे। हमारे देश में सरकार की संविधानवाद में बहुत कम रुचि रह गई है। इसके साथ खड़े होने वालों को तो पुरस्कृत नहीं ही किया जाता, बल्कि दूसरी ओर, न्यायपालिका और सिस्टम गलत और प्रायः आपराधिक व्यवहार के लिए भी दंडित नहीं करते हैं।

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उदाहरण के लिए, सरकार फर्जी मामलों से ऐक्टिविस्टों को परेशान कर सकती है और इस तरह फंसाने वालों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी। गलत हिरासत, अत्यधिक बल प्रयोग, उत्पीड़न और राज्य द्वारा दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई जैसी चीजों के लिए भी कोई दंडित नहीं होता है। नागरिक समाज को चाहिए कि राज्य को संविधानवाद में ज्यादा से ज्यादा निवेश करने के लिए दबाव बनाए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जहां राज्य और उसके एजेंट कानून या संविधान के मूल्यों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, उन्हें उसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, वापस बुलाया जाएगा।

ये प्रयास विफल हो सकते हैं, कोई बात नहीं। संरचनात्मक परिवर्तन के लिए नींव पर निर्माण की जरूरत होती है। प्रयास नाजुक लेकिन जरूरी निवेश है। नतीजे आएंगे। हमें संवैधानिक स्थान दिया ही इसीलिए गया है। भले ही समय के साथ इस पर गंभीर प्रतिबंध लगा दिया गया हो, फिर भी अभी तक यह मौजूद है। स्थान को इस तरह विनियोजित करने की जरूरत है जैसा अब तक नहीं हुआ, और विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग द्वारा नहीं किया गया है।

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इसका विस्तार करना होगा। हमें ‘उचित प्रतिबंधों’ के लिए लड़ना होगा, उन्हें सुलझाना होगा और मौलिक अधिकारों के सही अर्थ सामने लाने होंगे।

अधिकारों पर प्रगति अपरिहार्य है। इतिहास प्रगतिवादियों के साथ है: भविष्य भी हमारे साथ है। रूढ़िवादी एक ऐसा अतीत संरक्षित करना चाहते हैं जिसे बनाए रखना संभव नहीं है। परिवर्तन अपरिहार्य और स्थिर है, और नैतिक ब्रह्मांड का चक्र वैयक्तिक अधिकारों और गरिमा पर प्रगति की दिशा में आगे बढ़ रहा है। हमारा काम न्याय की दिशा में अपने पथ पर तेजी से आगे बढ़ना है।

(आकार पटेल पत्रकार और लेखक हैैं। वह 2015 से 2019 तक भारत मेें एमनेस्टी इंटरनेशनल के प्रमुख रहे हैैं।)

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