विचार

आकार पटेल का लेख: अकेला छोड़ दिया करोड़ों प्रवासी मजदूरों को और उम्मीद करें कि वे देशहित में करें काम

यह तय है कि अर्थव्यवस्था का पहिया चलाने के लिए प्रवासी मजदूर चाहिए। लेकिन प्रवासी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है और उनका अपने घरों को लौटना तक मुहाल हो गया है। उनके साथ बहुत असंवेदनशील व्यवहार हो रहा है। उनके बारे में एकतरफा नियम बनाए जा रहे हैं और उनसे पूछा तक नहीं जा रहा।

फोटो : Getty Images
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कोरोना संकट काल में एक बात पूरी दुनिया ने समझ ली है कि इस महामारी से तभी निपटा जा सकता है जह सरकारें और आम लोग मिलकर इसका मुकाबला करं। साबुन से लगातार हाथ धोना, चेहरे को न छूना आदि जैसे नियमों का पालन करें। कम से कम बाहर जाएं और जाएं तो अपना मुंह और नाक को मास्क से ढक लें ताकि अगर हमें या किसी को छींक या खांसी आती है तो उससे बचाव हो सके। सार्वजनिक जगहों पर एक दूसरे से फीट की दूरी पर रहें। अगर जरा भी कोई लक्षण दिखें तो सेल्फ क्वारंटीन कर लें और लक्षण गंभीर लगें तो सरकार को सूचना दें।

जो भी देश इन नियमों का पालन कायदे से कर पाएंगे वहीं कोरोना से कामयाबी के साथ लड़ पाएंगे। सरकार का काम यह सुनिश्चित करना है कि कोरोना वायरस से नुकसान कम से कम हो। जो बीमार हैं उनका इलाज हो, जो गंभीर लक्षण वाले हैं उनकी टेस्टिंग हो और जो आर्थिक रूप से प्रभावित हुए हैं उनकी मदद हो। सरकार की भूमिका नीतियां और कानून में ऐसे बदलाव करना है जिससे आम नागरिकों को मदद मिले।

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इन नियमों को अपनाने वाली सरकारों के देश ही कोरोना से बच पाएंगे। सरकारें क्या करती हैं और आम लोग क्या करते हैं इसका आपस में गहरा संबंध है। कोरना वायरस के बारे में एक रोचक बात है, वह यह कि इसने आम लोगों के सरकार के साथ रिश्ते में नया तत्व जोड़ दिया है। नियम-कायदे बनाने के आगे सरकारें आम तौर पर कुछ नहीं कर सकतीं। लोग अपने ही हित में नियमों का पालन करेंगे, बशर्ते उन्हें सरकार पर भरोसा हो, और अपने हित की कुछ बातें वह अपनी ही भलाई के लिए छोड़ भी सकते हैं। यही सबसे अहम है। हमने अपने आराम को त्याग कर जानबूझकर कुछ दिक्कतें अपने सिर ली हैं। मास्क पहनना जरूरी है, लेकिन यह कैसे पहना जाए यह जरूरी नहीं है, क्योंकि मास्क पहनने में दिक्कत तो होती है।

कुछ लोग मास्क के गले के पास लटकाएं रहते हैं और जब भी कोई पुलिस वाला नजर आता है इसे खींचकर मुंह पर कर लेते हैं। और कुछ लोग नाक खुली रखकर मास्क पहनते हैं, जिससे इसे पहनने का मकसद ही खत्म हो जाता है। हाल ही में तस्वीरें सामने आईं जिसमें प्रधानमंत्री की वीडियो कांफ्रेंस के दौरान अमित शाह समेत कई मंत्री इसी तरह मास्क पहने नजर आए।

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ऐसी सरकारें जिन पर आबादी का बड़ा हिस्सा भरोसा नहीं करता है, उसे नियम लागू करने में मुश्किल आती हैं और ऐसे देश कोरोना से मुकाबले में कठिनाइयों का सामना करेंगे। भारत एक ऐसे ही दौर में है जब आम लोगों और सरकार के बीच भरोसा टूट चुका है। हममें से कुछ ऐसे भी है जिनके लिए इस दौर से भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। हम घर से काम कर रहे हैं, समय पर वेतन मिल रहा है, बस सिवाए बाहर जाकर मनोरंजन करने के अलावा हमारी जिंदगी मजे से चल रही है। सरकार के साथ हमारा रिश्ता सिर्फ टीवी देखने भर का है और सरकार से हमारा कोई सीधा संवाद नहीं है। हमारे विश्वास भी पहले जैसे ही हैं।

लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें एक अलग ही तजुर्बा हुआ है। उनकी नौकरियां चली गई हैं, बचत सूख चुकी है, सड़क पर निकलने में पिटाई हो रही है, हजारों किलोमीटर पैदल चलना पड़ रहा है, बच्चे भूख से बिलख रहे हैं, मर रहे हैं, और कोई उनकी मदद को नहीं आ रहा। ऐसे लोगों के लिए सरकार के साथ क्या रिश्ता रहा, जाता रहा भरोसा का नाता।

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यह तय है कि अर्थव्यवस्था का पहिया चलाने के लिए प्रवासी मजदूर चाहिए। लेकिन प्रवासी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है और उनका अपने घरों को लौटना तक मुहाल हो गया है। उनके साथ बहुत असंवेदनशील व्यवहार हो रहा है। उनके बारे में एकतरफा नियम बनाए जा रहे हैं और उनसे पूछा तक नहीं जा रहा। उनसे पूछे बिना उनके काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिए गए, जबकि बाकी लोग 8 ही घंटे काम करेंगे। इससे भरोसा टूटा है। और इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

हम खुद को उन लोगों की जगह रखकर देखें जिनकी नौकरी चली गई है, हताश हैं, भूखे हैं और घर से मीलों दूर हैं। अगर हम उनके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं तो भी हम उनके दुख और तकलीफ को आसानी से नहीं समझ पाएंगे।

कटिहार में रेलवे स्टेशन पर खाने के एक पैकेट के लिए झगड़ा होने की तस्वीरें विचलित करती हैं। वे एक दूसरे से नहीं लड़ रहे हैं, वे अपने पैरों पर खड़े हैं और एक दूसरे के खिलाफ भी नहीं हैं। वे सिर्फ यही कोशिश कर रहे हैं कि उनके हाथ जो कुछ भी लग सकता है ले लें ताकि खुद और परिवार के पेट भर सके। सूटकेस पर सोते बच्चे को खींचती महिला की तस्वीर भई हिला देती। गुस्से और हताशा में जब वे बोलते हैं कि अब कभी शहर नही आएंगे तो भरोसा टूटता है।

हम करोड़ों भारतीयों का अपमान कर रहे हैं, लेकिन फिर भी हम उम्मीद कर रहे हैं कि वे देश हित के लिए सहयोग करें, जब उनको जरूरत थी तब तो देश ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। ऐसे में कोरोना वायरस से कैसे होगी लड़ाई।

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