विचार

‘INDIA’: सिर्फ नाम से ही पैदा हो गई है सत्तापक्ष में सिहरन...

विपक्षी गठबंधन के नए नाम 'INDIA' में राष्ट्रवाद भी है और विकास भी, समावेशी इरादे भी हैं और एकजुटता भी, भारत का असली विचार (आइडिया ऑफ इंडिया) भी है और एकजुट होकर देश बचाने का साहस भी।

फोटो सौजन्य : @INCIndia
फोटो सौजन्य : @INCIndia 

बेंगलुरु में मंगलवार को खत्म हुई विपक्षी दलों की दो दिन की बैठक के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब साझा प्रेस कांफ्रेंस में अपनी बात रखी तो उन्होंने एक वाक्य में समझा दिया कि विपक्षी एकजुटता किस ताकत से आगे बढ़ने वाली है। ममता बनर्जी ने कहा, “चेज़ अस, इफ यू कैन...” यानी हमें रोक सको तो रोक लो...ध्यान रहे कि बीते कुछ दिनों से विपक्षी दलों की बैठक को लेकर प्रधानमंत्री और बीजेपी नेतृत्व ने अपने बयानों से और हरकतों से साबित कर दिया है कि वे विपक्ष के पीछे ही पड़े हुए हैं। लेकिन बेंगलुरु बैठक के बाद ऐसा आभास हुआ है कि बीते दस साल में पहली बार सत्ता पक्ष पिछड़ता दिख रहा है और विपक्ष आगे है।

इसे महज संयोग नहीं कह सकते कि जिस दिन बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक थी उसी दिन सत्ता पक्ष ने एनडीए ने भी अपनी बैठक बुलाई। बता दें कि बीते चार साल में एनडीए की एक भी बैठक नहीं हुई थी। इस बैठक में जिस तरह से प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर आरोप लगाए, उनके गठबंधन की आलोचना की और एनडीए की नई परिभाषा गढ़ी, उसने सत्ता पक्ष की हताशा को तो सामने रखा ही, साथ ही विपक्षी गठबंधन की मजबूती और उसके आगे होने पर एक तरह से मुहर भी लगा दी।

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बीजेपी ने एनडीए की बैठक भी तब बुलाई जब विपक्षी दलों की पहली बैठक पटना में हुई और उसमें कांग्रेस, एनसीपी, आम आदमी पार्टी, जेडीयू, आरजेडी समेत 16 विपक्षी दलों ने हिस्सा लिया। इस बैठक के बाद सत्ता खेमे में बेचैनी बढ़ने लगी और बीजेपी अध्यक्ष ने कई राज्यों में दौरा कर उस एनडीए को फिर से जीवित करने की मुहिम शुरु की जिसे बीते कई सालों से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। इसी दौरान महाराष्ट्र में एनसीपी में फूट डालकर एक धड़े को सरकार में शामिल भी कराया गया। ये सारे संकेत सत्तारूढ़ गठबंधन की घबराहट को सामने रखते हैं।

दस साल बाद आम चुनाव किसी भी सत्ताधारी दल के लिए बहुत मुश्किल होते हैं क्योंकि सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर होत है और जनता में तमाम मुद्दों पर आक्रोश भी होता है। हालांकि (गोदी) मीडिया की मदद और विभाजनकारी नीति-राजनीति ने सत्तारूढ़ दल को लिए काफी हद तक माहौल बनाने का काम किया है, फिर भी शासन के सवाल पर लोगों ने राज्यों के चुनाव के दौरान केंद्र में सत्तारूढ़ दल के  खिलाफ मतदान किया और इसमें प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा भी काम न आ सका। इसके ताजा उदाहरण हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनावी नतीजे हैं, जहां लोगों ने बीजेपी से छीनकर सत्ता कांग्रेस को सौंप दी। इन राज्यों के चुनावी नतीजों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगा दिया।

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दरअसल इसकी बुनियाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से ही पड़ गई थी। उस यात्रा के दौरान जिस तरह जनसमूह उमड़ा उसने विपक्षी दलों को एक नया उत्साह दिया, साथ ही सत्तारूढ़ खेमे में बेचैनी भी बढ़ गई। रही-सही कसर राहुल गांधी को मोदी सरनेम मामले में दोषी करार दिए जाने और उनकी लोकसभा से सदस्यता रद्द कर उनसे सरकारी आवास खाली कराने के केंद्र के फैसले ने पूरी कर दी। सत्तापक्ष के इस कृत्य ने विपक्षी दलों को एकजुट कर दिया। इसी दौरान हिमाचल और कर्नाटक के चुनाव हुए जिसमें बीजेपी की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुईं। भले ही ये राज्यों के चुनाव थे, लेकिन इसे प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पर जनादेश के तौर पर ही देखा गया।

विपक्ष की पटना बैठक के बाद जब महाराष्ट्र में अजित पवार की अगुवाई वाले एनसीपी गुट को सरकार में शामिल किया गया तो सीधे सवाल उठे कि पीएम मोदी तीन दिन पहले तक जिन नेताओं पर कथित भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे, उन्हें आखिर कैसे बीजेपी सरकार का हिस्सा बना लिया गया। सवाल इस पर भी उठे कि जो व्यक्ति सीना ठोक कर कहता था कि ‘मैं अकेला ही काफी हूं...’ तो उसे अचानक एनडीए गठबंधन की याद क्यों आ गई और क्यों ऐन उसी दिन एनडीए की बैठक बुलानी पड़ी जिस दिन विपक्ष 26 दलों के साथ बेंगलुरु में बैठक कर रहा था। अर्थ स्पष्ट है कि कहीं न कहीं सत्ताधारी दल का प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आत्मविश्वास डगमगा गया है।

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सोने पर सुहागा यह हुआ कि बेंगलुरु बैठक के बाद विपक्ष ने अपने गठबंधन के जिस नाम का ऐलान किया, उससे सत्ताधारी गठबंधन को जोर का झटका लगा है। गठबंधन के नए नाम 'INDIA' (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) ने इरादे जता दिए हैं कि अब तक सत्तारुढ़ दल जिन बातों का इस्तेमाल विरोधियों पर हमले के लिए करता था, विपक्ष अब उन्हीं वाक्यांशों से सत्ता को घेरेगा।

विपक्षी गठबंधन के नए नाम में राष्ट्रवाद भी है और विकास भी, समावेशी इरादे भी हैं और एकजुटता भी, भारत का असली विचार (आइडिया ऑफ इंडिया) भी है और एकजुट होकर देश बचाने का साहस भी।  इसका संक्षिप्त रूप ‘INDIA’ ऐसा है कि सत्तारूढ़ दल के लिए इसका विरोध करना बहुत मुश्किल हो जाएगा और इसीलिए सभी नेता खासकर ममता बनर्जी ने साफ कहा भी कि किस में ‘INDIA’ को चुनौती देने की ताकत है? राहुल गांधी ने भी कहा कि जब-जब लड़ाई ‘INDIA’ बनाम अन्य हुई है तो इतिहास गवाह है कि जीत किसकी हुई है।

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गठबंधन के नाम की घोषणा के बाद अपेक्षा के मुताबिक ही सत्तापक्ष ने इसके बदले भारत शब्द इस्तेमाल करना शुरु किया। लेकिन विपक्षी ने भी तुरत-फुरत उसे याद दिलाया कि 'डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया' इत्यादि क्या थे, जिससे अब आपत्ति हो रही है। कांग्रेस मीडिया सेल प्रभारी और सांसद जयराम रमेश ने तो साफ कह ही दिया कि ‘लगता है अंगूर खट्टे हैं...।’

गठबंधन के नए नाम के बाद जनविमर्श में तो विपक्ष ने फिलहाल सत्ता पक्ष को मात दे दी है। आने वाले आम चुनाव में जनादेश इसे कितना स्वीकार करता है, और विपक्षी दल किस न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर इस एकजुटता को और मजबूती देते हैं, इस पर कयास लगाना फिलहाल जल्दबाजी होगी। लेकिन अभिप्राय स्पष्ट है, और जैसाकि ममता बनर्जी ने अपने संक्षिप्त संबोधन में चुनौती भी दी कि, 'अगर रोक सकते हो तो रोक लो....

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