विचार

मोदी सरकार के ताजा उपायों से भी नहीं लौटी अर्थव्यवस्था में चमक, निवेशकों का भरोसा वापस लाना बड़ी चुनौती

आर्थिक मंदी से बेहाल उद्योगों को वित्त मंत्री से राहत की बड़ी उम्मीद थी। उद्योग संगठनों ने एक लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की मांग की थी, लेकिन नहीं मिला। पिछले 20 साल के रिकॉर्ड गिरावट का सामना कर रहे ऑटो उद्योग की जीएसटी दरों में छूट की मांग भी खारिज।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

अर्थव्यवस्था में गहराती मंदी को लेकर वित्त महकमों में मतभेदों के बावजूद वित्त मंत्री सीतारमण ने आर्थिक गतिविधियों को तेज करने के लिए पिछले हफ्ते कई उपायों की घोषणा की है, जिसमें उन्होंने अपने पहले बजट के कई फैसलों को पलट दिया है और उम्मीद जताई है कि इससे अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। व्यापार जगत को वित्त मंत्री सीतारमण के पहले बजट से मायूसी हाथ लगी थी। व्यापार जगत को पूरी उम्मीद थी कि वह अपने पहले बजट में खपत, मांग, निवेश और रोजगार बढ़ाने के लिए कारगर उपाय करेंगी। लेकिन उन्होंने टैक्स बोझ बढ़ाकर बाजार का मनोबल तोड़ दिया। लेकिन अब उन्होंने बाजार का मनोबल बढ़ाने की कोशिश की है। इसका फौरी असर भारतीय शेयर बाजार में देखने को मिल सकता है। जो बजट के बाद से लगातार लुढ़क रहा था।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुल 33 उपायों की घोषणा की है। इन उपायों को 5 हिस्सों में वर्गीकृत किया गया है। कराधान, बैंक/ एनबीएस/एसएमई, वित्त बाजार, ऑटो वाहन और इंफ्रास्ट्रकचर। इनमें से सभी उद्योगों की आर्थिक स्थिति खराब है जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों नौकरियां जाने की खबरें हैं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों पर बजट में लगाए गए अतिरिक्त अधिभार को वापस ले लिया गया है। इसके साथ ही दीर्घ और लघु अवधि के लिए कैपिटल गेन्स के ऊपर लगे अधिभार को भी वापस ले लिया गया है।

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वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था में तरलता/नकदी बढ़ाने के लिए आश्वस्त किया है कि लघु क्षेत्र को लंबित जीएसटी रिफंड 30 दिन के भीतर मिल जाएंगे और भविष्य में भी आवेदन के 60 दिनों के अंदर रिफंड मिल जाने के लिए वित्तमंत्री ने आश्वस्त किया है। आकलन है कि इससे लघु क्षेत्र को 6-7 हजार करोड़ रुपये का रिफंड मिल सकता है। नकदी के संकट से जूझ रहे लघु क्षेत्र को इससे फौरी राहत मिल सकती है।

इसके अलावा वित्त मंत्री ने बताया है कि सार्वजनिक बैंको को 70 हजार करोड़ रुपये की पूंजी मुहैया कराई जाएगी जिससे बैंकों की कर्ज देने की क्षमता पांच लाख करोड़ रुपये बढ़ जाएगी। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को 30 हजार करोड़ रुपये मुहैया कराने का भी ऐलान किया गया है। वाहन और मकान के कर्ज आने वाले दिनों में सस्ते होने की उम्मीद भी वित्त मंत्री ने जताई है। सामाजिक जवाबदेही कानून (सीएसआर) के उल्लंघन को बजट में आपराधिक बना दिया गया था, जिसमें सजा का भी प्रावधान था। लेकिन अब इस फैसले को भी वापस ले लिया गया है। टैक्स आतंकवाद से व्यापारी जगत की जान सांसत में रहती थी, अब इससे छुटकारा दिलाने के लिए कई कदमों की घोषणा की गई है। वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया है कि सभी इनकम टैक्स नोटिसों का तीन महीनों में निपटान होगा। 1 अक्टूबर तक पुराने सभी नोटिसों का निपटारा कर दिया जाएगा। स्क्रूटनी की नई कंप्यूटरीकृत व्यवस्था लागू की जाएगी ताकि लोगों की प्रताड़ना कम हो सके। समन, नोटिस अब केंद्रीयकृत सिस्टम से ही जारी किए जाएंगे। सैद्धांतिक रूप से टैक्स संबंधी ये सभी निर्णय स्वागत योग्य हैं।

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मंदी से बेहाल उद्योंगों को राहत, प्रोत्साहन की बड़ी उम्मीदें वित्त मंत्री से थीं। औद्योगिक संगठनों ने एक लाख करोड़ रुपये राहत पैकेज देने की मांग की थी। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। ऑटो उद्योग में गिरावट पिछले 20 सालों के चरम पर है। अनेक कार-शो रूम और कल-पुरजे बनाने वाली फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। ऑटो उद्योग अरसे से जीएसटी दरों में छूट देने की मांग कर रहा है पर वित्त मंत्री ने फिलवक्त यह मांग खारिज कर दी है। लेकिन कुछ छिट-पुट रियायतें अवश्य दी हैं। जैसे वीएस IV गाड़ियां अब वैध रहेंगी। सरकारी कार खरीद पर पाबंदी हटा ली गई है और सरकार ने विभागों से गाड़ियां बदलने को कहा है। मार्च 2020 तक खरीदे गए सभी वाहनों में ह्रास दर को बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया गया है। बढ़ाए गए वाहन रजिस्ट्रेशन शुल्क को अगले साल जून तक के लिए टाल दिया गया है। वाहन उद्योग के संगठन सियाम ने इन राहतों का स्वागत किया है।

लेकिन बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि इनसे वाहनों की मांग में कोई विशेष उछाल नहीं आएगा और मंदी से उबरने के लिए उद्योग को लंबा इंतजार करना पड़ेगा। वित्त मंत्री के नए 33 मंत्रों से बेहाल अर्थव्यवस्था को कितनी राहत मिलेगी, लगता है कि स्वंय वित्त मंत्री इनसे आश्वस्त नहीं है। इसीलिए उन्होंने संकेत दिया है कि राहत देने से वह पीछे नहीं रहेंगी। पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों पर से अतिरिक्त अधिभार हटाने का फौरी असर देखने को मिल सकता है, जो बजट आने के बाद से लगातार गोते खा रहा है। इससे बाजार पूंजीकरण में तकरीबन 20 लाख करोड़ रुपये का नुकसान निवेशकों को हो चुका है। बजट में लगाए इस अधिभार से केंद्र सरकार को कुल 14 हजार करोड़ रुपये मिलने थे, पर इसने विदेशी निवेशकों को भड़का दिया और उन्होंने धड़ाधड़ भारतीय पूंजी बाजार से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया। नतीजन शेयर बाजार का मनोबल टूट गया जिसके नतीजे सबके सामने हैं।

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शेयर बाजार में भारी गिरावट से मोदी सरकार का दबाव में आना स्वाभाविक था क्योंकि मोदी सरकार को कई सरकारी उपक्रमों में विनिवेश कर इस वित्त वर्ष में तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये जुटाने हैं। इसके अलावा विदेशी बाजार में डॉलर में संप्रभु बॉण्ड जारी करके तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपये सरकारी घाटे को पूरा करने के लिए उठाने हैं। इसलिए विदेशी निवशकों का भरोसा जीतने के लिए अधिभार हटाना सरकार के लिए मजबूरी बन गया था। पर इस कदम से शेयर बाजार से बड़े समर्थन की उम्मीद वित्त मंत्रालय को है। पर शायद शेयर बाजार अप्रैल-जून तिमाही में विकास दर के आंकड़े की प्रतीक्षा कर रहा है। ज्यादातर अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तिमाही में विकास दर 5 फीसदी के आसपास रहेगी।

अर्थव्यवस्था के हालात और उसके उपचारों से लेकर सरकारी अर्थ विद्वानों में भी तीव्र मतभेद से विभ्रम की स्थिति बनी हुई है जिससे अर्थव्यवस्था में भरोसे की कमी बनी हुई है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने वित्त मंत्री के राहत पैकेज की घोषणा के ठीक दो दिन पहले एक वक्तव्य दे कर सरकारी महकमों को झकझोर दिया कि बीते 70 सालों में देश का वित्तीय क्षेत्र इतने अविश्वास के दौर से कभी नहीं गुजरा। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह दौर लंबा नहीं चले, इसके लिए सरकार को अनोखी पहल करनी होगी। उन्होंने कहा कि वित्तीय क्षेत्र में हालत यह है कि कोई भी किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है। सरकार को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की आशंकाओं को दूर किया जा सके और वे निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकें।

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लेकिन वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रहमण्यम का नजरिया नीति आयोग उपाध्यक्ष राजीव कुमार से ठीक उलट है। सुब्रहमण्यम ने कहा कि ‘कंपनियों को संकट के समय हमेशा सरकार के सामने वित्तीय पैकेज के लिए रोना-गाना नहीं करना चाहिए। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सीखना चाहिए और ‘पापा बचाओ’ की मानसिकता से उबरना चाहिए। हम 1991 से बाजार आधारित अर्थव्यवस्था बने हुए हैं और ऐसी अर्थव्यवस्था में तेजी-सुस्ती के दौर आते रहते हैं। 1991 में भारत का निजी क्षेत्र बच्चा था, अब वह 30 साल का वयस्क बन चुका है। जनता के धन से राहत पैकेज देने से नैतिक खतरे पैदा हो जाएंगे। मुनाफा हमारा, नुकसान सरकार का सिद्धांत ठीक नहीं है’।

वैसे सुब्रहमण्यम की बात में दम है। पर सरकारी विद्वानों के आपसी मतभेदों से विभ्रम की स्थिति बनी हुई है जिसका असर प्रोत्साहन पैकेज पर साफ देखा जा सकता है। सब जानते हैं कि सरकारी जेब में धन जाते ही उसकी उत्पादकता कम हो जाती है। सरकारी व्यय का लाभ आम आदमी तक काफी देर से पहुंचता है और फैला भ्रष्टाचार उसमें भी डंडी मार देता है। भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति के अभाव में मंदी, खपत निवेश में कमी से जूझ रही है। बेहतर होता कि वित्त मंत्री टैक्सों में कमी करके, आर्थिक सहायता बढ़ाकर मध्य वर्ग, गरीब और वंचित तबके की आय बढ़ाने का रास्ता अख्तियार करतीं, तो अर्थव्यवस्था पर उसके सकारात्मक कारगर प्रभाव ज्यादा पड़ते और उसका तत्काल प्रभाव मांग और खपत पर दिखाई देता। विडंबना यह है कि सरकार की नजर केवल अपनी आमदनी यानी राजस्व बढ़ाने पर लगी हुई है, जिससे आम आदमी की क्रय शक्ति कमजोर हुई है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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