विचार

खरी-खरी: नफरत के शोले भड़काने का अभियान उर्फ बिलकीस बानो के गुनहगारों की रिहाई

नफरत की आग को जलाए रखने के लिए रोज एक नया तड़का लगाया जाता है। बिलकीस बानो के गुनहगारों की रिहाई का फैसला भी उसी नफरत की आग में शोले भड़काने के लिए ही है। भले ही इससे बीजेपी चुनाव जीत जाए, लेकिन गुनहगारों को माफी देने वाले शासकों को इतिहास माफ नहीं करेगा।

फोटो : विपिन
फोटो : विपिन 

15 अगस्त, 2022 को देश आजादी का ‘अमृत महोत्सव’ मनाने में मगन। प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी लाल किले पर झंडा फहराकर देश को औरतों का आदर-सम्मान करने की नसीहत दे रहे हैं। घर-घर तिरंगा लहरा रहा है। ऐसे मगन माहौल में अचानक गुजरात के याकूब रसूल पटेल के फोन की घंटी बजती है। उसका मित्र उसको खबर देता है कि तुम्हारी पत्नी बिलकीस बानो के साथ बलात्कार के सभी 11 दोषियों को एक सरकारी पैनल ने आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर माफी दे दी और वे रिहा कर दिए गए। याकूब घबराकर सोशल मीडिया सर्च करता है। बिलकिस के आरोपियों की खबर ट्रेन्ड कर रही है। वह लोकल चैनल खोलता है। वहां भी यही खबर चल रही है। वह घबराकर बिलकीस बानो के पास जाता है और उसको यह खबर सुनाता है। बिलकीस सन्नाटे में आ जाती है और उसको चुप लग जाती है।

बदनसीब बिलकीस बानो! मार्च, 2002 गुजरात दंगों में 11 लोगों ने उसका सामहिूक बलात्कार किया। उसकी तीन वर्ष की बेटी सालेहा उसकी आंखों के सामने मार दी गई। उसके खानदान के कुल 14 लोग एक दिन में मारे गए। इतना सब कुछ देखने और झेलने के बाद बिलकीस का जीवन तो नर्क हो ही चुका था। बस, अगर उसके दामन में कोई खुशी थी, तो वह केवल इतनी कि उसके बलात्कारी जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं। परंतु उसका यह इत्मीनान भी उससे ठीक आजादी की वर्षगांठ महोत्सव के बीच छिन गया।

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जरा-सी देर में वे 11 लोग उसके गांव पहुंच गए और गांव में उनका आदर-सम्मान हुआ। मिठाई बंटी। यह भी बिलकीस बानो ने टीवी पर देखा। ये सब लोग उसी गांव के रहने वाले हैं जहां की बिलकीस है और इसी गांव में बिलकीस का बलात्कार भी हुआ था। रिहा होने वालों के मकान भी उसके घर के आसपास ही हैं। अब जरा कल्पना कीजिए कि यह खबर मिलने के बाद बिलकीस के दिल पर क्या बीती होगी। जाहिर है कि उसके मन में पहला खयाल यही आया होगा कि अब मेरा क्या होगा! क्योंकि इन 11 लोगों को गुजरात सरकार का संरक्षण है, तब ही तो ये जेल से रिहा किए गए हैं। केवल गुजरात सरकार ही नहीं, बीजेपी नेतत्व एवं संघ परिवार का भी संरक्षण है क्योंकि बलात्कारियों को माफी देना एक राजनीतिक फैसला ही हो सकता है। यह शीर्ष नेतृत्व की मर्जी के बगैर नहीं लिया जा सकता है।

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ऐसे लोगों की रिहाई से बिलकीस निःसंदेह घबरा गई होगी। घबराना कैसा, उसके मन में एक अनजान खौफ समा गया होगा। तब ही तो उसके पति याकूब रसूल ने बताया कि हमने उसको अपने घर से हटा दिया है। जाहिर है, बिलकीस बानो अब कभी चैन की नींद नहीं सो सकती है। अरे, बिलकीस क्या, बलात्कारियों को माफी मिले और फिर उनकी रिहाई पर मिठाई बंटे, इस खबर ने तो सारे देश को ही हिला दिया होगा। परंतु इस देश को अब न जाने क्या हो गया है। पिछले सात-आठ वर्षों में मुस्लिम समाज की हर बुरी खबर पर आम हिन्दुस्तानी खुश होता है। तब ही तो बिलकीस के गांव में मिठाई बंटी। तब ही तो हर चुनाव में अब हिन्दुस्तानी बीजेपी को झोली भरकर वोट डालता है। सामाजिक मानसिकता ही बदल गई है।

आज के हिन्दुस्तानी को यह चिंता नहीं कि महंगाई आसमान छू चुकी है। पेट्रोल एक सौ रुपये प्रति लीटर से अधिक का रेट पार कर चुका है। खाना पकाने की गैस एक हजार रुपये से अधिक दाम में बिक रही है। उसके बेटे-बेटियां नौकरी की तलाश में जूतियां घिस रहे हैं और कहीं नौकरी नहीं मिलती है। ऐसे आर्थिक संकट में बस मुस्लिम विरोधी एक खबर से खुश होकर आम वोटर बीजेपी की झोली में वोट डाल देता है। क्या पता ऐसी सामाजिक मानसिकता में बिलकीस के गुनहगारों की रिहाई अगले वर्ष गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को चुनाव जीतने के लिए काफी हो!

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प्रश्न यह है कि आखिर यह नफरत की राजनीति कहां रुकेगी। रुकने का सवाल क्या, यहां तो इस नफरत की आग को जलाए रखने के लिए रोज एक नया तड़का लगाया जाता है। कभी हजरत मोहम्मद का अपमान, तो कभी अजान के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई। कभी नकाबपोश औरत का अपमान। बिलकीस बानो के बलात्कारियों की रिहाई का फैसला भी उसी नफरत की आग में शोले भड़काने के लिए ही है। अब सारा देश बिलकीस के बारे में बात कर रहा है। महंगाई और बेरोजगारी जैसे जनता के वास्तविक मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।

इस साल के आखिर और अगले साल कई बीजेपी शासित राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन सारी सरकारों ने कोई कामकाज नहीं किया है। अतः इन सभी राज्यों में चुनाव तक अभी बिलकीस बानो जैसे कितने और एपीसोड देखने को मिलें, कहना मुश्किल है। इसलिए यह नफरत का कारवां रुकने वाला नहीं। हां, नफरत के शोले और तेज जरूर हो सकते हैं।

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जहां तक बिलकीस का सवाल है, वह तो जीते-जी दो बार मरी। पहले बलात्कार और बेटी एवं कुनबे की हत्या ने बिलकीस को मार दिया। फिर अब उसके गुनहगारों की रिहाई ने उसको फिर जीते-जी मारा। बिलकूस तो अब केवल एक जिंदा लाश है। लेकिन बिलकीस के साथ जो कुछ हुआ वह केवल बिलकीस की ही मौत नहीं है बल्कि यह भारतीय समाज एवं सभ्यता पर भी एक गहरा प्रहार है। आज बिलकीस के गुनहगारों की रिहाई से भारतीय सभ्यता की गर्दन झुक गई है। भले ही इस प्रक्रिया में बीजेपी गुजरात का चुनाव जीत जाए, परंतु इतिहास बलात्कारियों को माफी देने वाले शासकों को नहीं माफ करेगा।

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