विचार

आकार पटेल का लेख: कोरोना संकट से पैदा मुसीबतों से उबरने का रोडमैप सामने तो लाए सरकार!

मोटे तौर पर करीब 50 करोड़ भारतीय बीते तीन महीनों में जो कुछ हुआ उससे प्रभावित हुए हैं  और सरकार ने महामारी को फैलने से रोकने की कोशिश में लॉकडाउन कर दिया। लेकिन इस लॉकडाउन से पैदा मुसीबत से देश को कैसे निकाला जाए, यह जिम्मेदारी भी सरकार की ही है।

फोटो : Getty Images
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किसी महामारी के समय में सरकार की क्या भूमिका है?

कोई भी प्राकृतिक आपदा आने पर आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी रक्षा और अपना ध्यान खुद नहीं रख सकता। करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं। केंद्र सरकार कहती है कि अब तक एक करोड़ से ज्यादा लोग विशेष ट्रेनों और बसों से अपने गांवों को लौट गए हैं। ये लोग उन शहरों, नगरों, कस्बों को छोड़ आए हैं जहां यह अपनी जीविका कमाते थे और कुछ पैसा अपने घर भेजते थे। कितने लोग पैदल, साइकिलों से या किसी अन्य तरीके से अपने घर लौटे हैं, इनकी तादाद का किसी को अंदाजा नहीं हैं। इस सबका हमारे देश में कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड रखा ही नहीं जाता है, क्योंकि हम वैसे भी आंकड़ों के मामले में बेहद कमजोर हैं।

जमीन के छोटे टुकड़े पर खेती करने वाले किसान, दिहाड़ी मजदूरी पर जीने वाले मजदूर, ये सब भी बेरोजगार हुए हैं और इनकी संख्या भी करोड़ों में है। जिन बच्चों को स्कूलों में मिडडे मील मिल रहा था उनकी संख्या भी करोड़ों में है।

मोटे तौर पर देखें तो करीब 50 करोड़ भारतीय बीते तीन महीनों में जो कुछ हुआ उससे प्रभावित हुए हैं और खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जब लोग भोजन के लिए लड़ रहे हैं। मरे हुए जानवरों का मांस खा रहे हैं। सरकार की भूमिका है कि वह महामारी को फैलने से रोकने की कोशिश करे और उसने लॉकडाउन कर दिया। लेकिन इस लॉकडाउन का देश की आबादी के बड़े हिस्से पर क्या असर हुआ और उसे मुसीबत से कैसे निकाला जाए, यह जिम्मेदारी भी सरकार की ही है।

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यहां सरकार का अर्थ समूची सरकारी मशीनरी से है, लेकिन बड़ी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है, क्योंकि इसी के पास सबसे ज्यादा संसाधान हैं और इसी के पास अधिकार हैं कि वह जरूरत पड़े तो नोट छाप सके। राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं और वे एक सीमा के बाद टैक्स आदि के जरिए और पैसा नहीं उगाह सकते।

इसमें कोई संदेह नहीं कि हम एक बड़े संकट से दो-चार हैं। और इस कारण हमें आम सहमति से ही कदम उठाने चाहिए, न कि संकट को लेकर कोई राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए।

सभी राजनीतिक दलों और सरकार ने इस बात को माना है कि संकट बड़ा है, हम मुसीबत में हैं और आने वाले दिन और मुश्किलों भरे होंगे। मुंबई में 99 फीसदी आईसीयू बेडों पर मरीज हैं और महामारी का फैलाव जारी है। अगर हम बढ़ते मरीजों की संख्या देखें तो पता चलेगा कि जून के अंत तक अकल्पनीय स्थिति हो सकती है। ऐसे में हमें तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।

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तो हम क्या कर सकते हैं? अभी कुछ दिन पहले एक समूह ने मिशन जयहिंद नाम से कुछ सुझाव हालात को बेहतर बनाने के लिए सामने रखे थे:

  • दस दिन के अंदर सभी प्रवासियों को सुरक्षित और सम्मान के साथ मुफ्त में उनके घर तक पहुंचाया जाए। सरकार इनके लिए बसों और ट्रेनों की व्यवस्था करे। राज्य सरकारें स्टेशन से उन्हें घर तक छोड़ने का इंतजाम करें। जब तक इन्हें घर पहुंचाने की व्यवस्था न हो तब त इनके रहने, खाने का प्रबंध हो और फिर इन्हें स्टेशन तक पहुंचाने का इंतजाम हो
  • सभी ऐसे लोगों को जिनमें कोरोना के लक्षण नहीं हैं उनका मुफ्त में टेस्ट कराया जाए। मुफ्त में क्वारंटीन हो और जरूरत पड़ने पर आईसीयू बेड मुहैया कराया जाए। स्वास्थ्य सेवाओं में लगे लोगों और उनके परिवार को एक साल की चिकित्सीय और आर्थिक सहायता सुनिश्चित की जाए
  • अगले 6 महीने तक सभी को राशन मुहैया कराया जाए। जिसमें 10 किलों अनाज, डेढ़ किलो दाल, 800 मिली तेल और आधा किलो चीनी प्रति व्यक्ति दी जाए। अगर कोई कहे तो राशन कार्ड में नए व्यक्ति का नाम शामिल किया जाए। मिड डे मील के बराबर राशन घरों तक पहुंचाया जाए, सभी स्कूलों में कम्यूनिटी किचन चलाए जाएं।
  • मनरेगा के तहत 100 के बजाए 200 दिन का रोजगार सुनिश्चित हो और हर रोज उन्हें मजदूरी का भुगतान हो। शहरी क्षेत्रों को मजदूरों को 100 दिन का काम और 400 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दिहाड़ी मिले। वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगो के लिए भी काम की व्यवस्था की जाए
  • नौकरी जाने पर मुआवजा, कंपनियों को बिना ब्याज का कर्ज वेतन देने के लिए, फसल के दाम गिरने की स्थिति में किसानों को मुआवजा मिले। हॉकर्स और छोटे दुकानदरों को 10,000 रुपए काम दोबारा शुरु करने के लिए दिए जाएं।
  • पहली बार मकान खरीदने वालों को तीन महीने की किश्तों की छूट, मुद्रा शिशु और किशोर लोन में 6 महीने की किश्तों की छूट और फसल के लिए कर्ज मिले
  • इन सारे खर्चों को सरकार प्राथमिकता दे और बाकी खर्च बाद में करे। केंद्र सरकार तात्कालिक इसके लिए संसाधन जुटाए और जो भी आए उसे राज्यों के साथ आधा बांटे।

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इस सूची में जो भी मांगे उठाई गई हैं, अद्भुत हैं और किसी ने इनका विरोध नहीं किया है। देश के करोड़ों लोगों को अगले 6 महीने क्या चाहिए, इससे पूरा हो सकता है। 2021 कैसा होगा हमें नहीं पता, लेकिन हमें भारतीयों को आने वाले साल के लिए तैयार करना होगा। समाज में भरोसा बढ़ाना होगा क्योंकि कानून का राज आम तौर पर भरोसे से नहीं भय से कायम होता है। हमें देखना होगा कि किसी के बच्चे भूखे न रहें, हताश न रहे।

इतनी बड़ी तादाद में लोग मुसीबतों का शिकार हए हैं कि अब उनकी राहत में देरी करना ज्यादती ही होगी। अभी 28 मई को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार से मांग की कि गरीबों के खाते में अगले 6 महीने तक 7,500 रुपए डाले जाए। उन्होंने मरनेगा के काम के दिनों को भी बढ़ाकर 200 करने की मांग की। फिलहाल सरकार सिर्फ 100 दिन के काम की गारंटी देती है और ज्यादातर मामलों में यह काम भी लोगों को नहीं मिल पाता, क्योंकि केंद्र मजदूरी के पैसे ही राज्यों को समय से नहीं देता।

मेरा मानना है कि मिशन जय हिंद को सरकार माने और उस पर अमल करे।

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