विचार

आकार पटेल का लेख: बातें तो बहुत कीं मोदी ने, लेकिन आम लोगों से जुड़े मुद्दों और समस्याओं का हल सामने नहीं रखा !

मोदी ने लंबा भाषण दिया लेकिन नहीं बताया कि मंदी की मार झेल रहे लाखों लोगों पर गरीबी रेखा से नीचे जाने का खतरा है, उससे कैसे बचेंगे? नहीं बताया कि जब 16000 ट्रेनों के बजाए सिर्फ 260 स्पेशल ट्रेनें चल रही हैं तो प्रवासी मजदूरों शहरों में वापस कैसे आएंगे?

Photo by Vipin Kumar/Hindustan Times via Getty Images
Photo by Vipin Kumar/Hindustan Times via Getty Images 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर स्वतंत्रता दिवस पर भाषण दिया। मेरे विचार से यह एक अच्छा भाषण था, जैसा कि उनके समर्थक अपेक्षा कर रहे थे। लेकिन साथ ही यह एक लंबा भाषण था। मोदी कुछ लोगों के लिए एक मनोरंजक वक्ता हैं (मेरे लिए नहीं, क्योंकि मुझे कुछ गंभीर बातें सुनने की आदत है)। निश्चित रूप से वे बहुत बोलते हैं। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राजदूत वॉल्टर क्रोकर ने पंडित जवाहर लाल नेहरू की एक जीवनी लिखी है, जिसमें उनका मानना है कि नेहरू कई बार एक दिन में तीन-तीन बार बोलते थे। मोदी इस मायने में कुछ हद तक उनकी तरह हैं, हालांकि भाषण का सार एकदम अलग होता है। वैसे मैंने मोदी के भाषणों को सुनना काफी पहले बंद कर दिया था, लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें सुनना जरूरी लगा। आखिर क्या पाया मैंने उनके भाषण में:

मोदी ने झंडा फहराया और सैल्यूट किया, मेरा मानना है कि इसकी जरूरत नहीं थी। तिरंगे को सैल्यूट करना सैन्य परंपरा है और साधारण नागरिकों को ऐसा नहीं करना चाहिए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मोदी के साथ ही थे लेकिन उन्होंने तिरंगे को सैल्यूट नहीं किया, जोकि मेरा मानना है कि एकदम सही था।

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मोदी ने अपने भाषण में स्वतंत्रता आंदोलन का जिक्र किया, लेकिन सर्वविदित है कि उनका संघ परिवार इस आंदोलन से दूर रहा था। संभवत: वे दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों की बात कर रहे थे, हालांकि उहोंने कांग्रेस या इसके नेताओं का नाम नहीं लिया। स्वतंत्रता आंदोलन की व्याख्या करते हुए मोदी ने कुछ ऐतिहासिक गलतियां भी कीं, जिन्हें हम उनके लयात्मक लहजे में देखते रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वे कोविड वॉरियर यानी कोरोना योद्धाओं को सलाम करते हैं। लेकिन शायद मोदी को नहीं पता है कि 6 लाख आशा कार्यकर्ता महिलाएं सिर्फ 2000 रुपए महीना पगार दिए जाने और बिना पीपीआई किट कोरोना केसों की पड़ताल करने के खिलाफ हड़ताल पर हैं। दिल्ली में इन कार्यकर्ताओं के खिलाफ अमित शाह की पुलिस ने एफआईआर भी जर्ज की है, लेकिन न्यूज़ चैनलों ने यह खबर नहीं दिखाई क्योंकि वे तो एक फिल्म अभिनेता की आत्महत्या के राज ही सुलझाने में जुटे हुए हैं।

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मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की बात की, लेकिन वे यह बताना भूल गए कि इसका अर्थ क्या है और यह 1970 के दशक के लाइसेंस राज से कैसे अलग है जो आयात के विकल्प के तौर पर बुरी तरह नाकाम हुआ था। पूरी दुनिया आज एक दूसरे से जुड़ी हुई है और एकदूसरे पर निर्भर है, ऐसा वे खुद कई बार कह चुके हैं, और इसे आज भी दोहराया। उन्होंने तैयार सामान और उसे गुणवत्ता की बात की (जिसे सुनकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी कुछ हतप्रभ नजर आईं)। लेकिन इस बात में कोई गहराई नजर नहीं आई। लेकिन फिर मोदी से ऐसी अपेक्षा करना ही व्यर्थ है क्योंकि यही उनका स्टाइल है।

काश मोदी ने हमें बताया होता कि बीती 10 तिमाहियों से हमारी आर्थिक विकास दर क्यों गिर रही है और इस साल हमारी जीडीपी का क्या हश्र होने वाला है।

मोदी ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे पास प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है, लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि उनकी नई पर्यावरण नीति प्रकृति की रक्षा को खिलाफ है। पहले उन्होंने कहा था कि वे गेहूं आयात करेंगे, लेकिन यह बात अब बदल गई है। वे शायद नहीं जानते कि यह काम तो अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बरलॉग और उनकी रिसर्च का था जिसने छोटा गेहूं उगाया था और इससे हरित क्रांति आई थी।

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मोदी ने दावा किया कि वे कोरोना के खिलाफ युद्ध जीतकर रहेंगे। लेकिन इस विजय को कैसे हासिल किया जाएगा और क्या मंजर होगा, नहीं बताया। यह भी नहीं बताया कि आखिर 21 दिन में महाभारत युद्ध जीतने की किवदंती का क्या हुआ? 130 दिन बाद हम आज भी इस वायरस से लड़ रहे हैं, और हकीकत तो यह है कि हम दुनिया के सर्वाधिक संक्रमित देशों की सूची में शीर्ष की तरफ अग्रसर हैं। ऐसे में विजय एक खोखला शब्द लगता है।

इसके अलावा मोदी तमाम तरह की बातें करते रहे। बंदरगाह, हवाई अड्डे, जनधन खाते, हाईवे, ईएमआई, आरबीआई, मध्यवर्ग, जीएसटी, एमएसएमई सेक्टर, कार्बन न्यूट्रल मॉडल, नेशनल एजुकेशन पॉलिसी, दो तरह की डॉलफिन, इनोवेशन, ऑप्टिकल फाइबर, सैनिटरी पैड्स. गैस पाइपलाइन, कोविड वैक्सीन, प्रवासी मजदूरों के लिए घर आदि आदि। और इन सब पर कितना फोकस किया जाए।

मोदी ने एक बात कई बार कही कि ऐसा इससे पहले कभ किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। जबकि कहना तो यह चाहिए कि उन्होंने खुद कभी इसकी कल्पना नहीं की थी।

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आधार, पैन, वोटर आईडी कार्ड के अलावा मोदी ने एक और आईडी कार्ड की बात की और कहा कि इससे लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलेंगी। उन्होंने सीमांकन की बात करते हुए कहा कि इससे कश्मीर के मुख्यमंत्री और विधायकों को फायदा होगा, लेकिन मोदी यह कहते हुए भूल गए कि कश्मीर में न तो कोई मुख्यमंत्री है और नही कोई विधायक और न ही कश्मीर कोई राज्य है। बीते एक साल से अधिक समय से पाबंदियों में जकड़े कश्मीरियों पर मोदी ने कुछ नहीं कहा।

चीन का नाम लेने से फिर मोदी बचे। देश की एकता और संप्रभुता को लेकर उन्होंने अपनी आवाज कुछ ज्यादा ही ऊंची की। उन्होंने लद्दाख में बीस सैनिकों की शहादत का जिक्र तो किया लेकिन चीन का नाम नहीं लिया। उन्होंने सिर्फ इतना भर कहा कि एलएसी और एलओसी पर जो हुआ उसे दुनिया ने देखा, लेकिन वहां क्या हुआ हम भारतीयों को ही नहीं पता क्योंकि मोदी ने तो खुद कहा था कि वहां कुछ नहीं हुआ और हमारी भूमि पर कोई नहीं आया।

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कुल मिलाकर मोदी का भाषण एक शॉपिंग लिस्ट की तरह लगा जिसमें था तो बहुत कुछ लेकिन न तत्व था और न फोकस, लेकिन फिर भी वे डेढ़ घंटा बोलते रहे। उन्होंने नहीं बताया कि मंदी की मार झेल रहे लाखों लोगों पर गरीबी रेखा से नीचे जाने का खतरा है, उससे कैसे बचेंगे? उन्होंने नहीं बताया कि जब रोज चलने वाली 16000 ट्रेनों के बजाए सिर्फ 260 स्पेशल ट्रेनें चल रही हैं तो प्रवासी मजदूरों शहरों में वापस कैसे आएंगे? उन्होंने यह भी नहीं बताया कि आखिर नौकरी खो चुका मध्य वर्ग और शहरी लोग अपने बच्चों की स्कूल फीस और किराया-ईएमआई कैसे चुकाएगा?

अच्छा होता अगर मोदी इन मुद्दों पर अपना समय लगाते, न कि एक शॉपिंग लिस्ट लेकर भाषण देते। शायद उन्होंने यह सब अपने अगले भाषण के लिए बचा रखा हो, लेकिन पता नहीं मैं उस भाषण को सुनूंगा या नहीं।

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