विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः एशिया में सबसे भ्रष्ट देश बनने पर भी मोदी जी को फख्र, बस किसी चीज में नाम होना चाहिए!

हमें गर्व है कि कम से कम किसी चीज में तो हमारी पताका दुनिया भर में फहराती रहती है! अभी जैसे हमारे मोदी जी के निर्देश पर हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में किसानों का जिस तरह आंसू गैस, जलतोपों, लाठियों से ‘अभूतपूर्व स्वागत’ हुआ, वह भी विश्व में एक पताका है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

लो जी अब क्या ये विदेशी हमें यह बताएंगे कि हम एशिया के सबसे भ्रष्ट देश हैं! अरे रात के अंधेरे में देखने वाले के पट्ठों, तुमने ये बात सर्वे करके जानी है, मगर हमें तो यह बात बचपन से मालूम रहती है। जिस बात को हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा जानता है, उसे हमें ही बताकर तुम ऐसा कौन सा बड़ा तीर मार लोगे! बताना है तो दूसरों को बताओ! और भी सुनो, हमारे बच्चों को यह भी मालूम है कि अगले पचास साल तक किसी देश के किसी प्रेसिडेंट या प्राइम मिनिस्टर ही नहीं, उनके मम्मी-पापा में भी यह दम नहीं कि एशिया में हमसे यह अहम ओहदा छीनकर दिखा दे! कोई ऐसा माई का लाल अगर कहीं है तो सामने आए! हम भी तो उसे देखें!

हम तो भाई वो लोग हैं,जो चाहते हैं कि इस मामले में केवल एशिया में नहीं, विश्वभर में हमारी पताका फहराए। वैसे भी हमारे मोदी जी को पताका फहराने से मतलब होता है, इससे नहीं कि यह किसलिए फहराई जा रही है। तुम भ्रष्टाचार के मामले में हमारी पताका दुनिया भर में फहराना चाहते हो, तो खुशी-खुशी फहराओ, कुपोषण, गरीबी, अपराध, आर्थिक मंदी, बलात्कार, पुलिसिया दमन के मामले में फहराना चाहते हो, तो भी फहराओ, नो आब्जेक्शन फ्राम मोदी जी, मगर हमें आकर ज्ञान मत दो!

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हमें गर्व है कि विश्व भर में किसी भी मामले में कम से कम हमारी सरकार की पताका तो दुनिया भर में फहराती रहती है! अभी जैसे हमारे मोदी जी के निर्देश पर हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में किसानों का जिस प्रकार आंसू गैस, पानी की बौछारों, लाठियों, सीमेंट के बैरिकेडों, सड़क पर खोदे गए गड्ढों से 'अभूतपूर्व स्वागत ' किया गया, उससे भी हमें विश्व भर में अपनी पताका फहराने का स्वर्णिम अवसर मिला है।

जो देश चूजी होते हैं कि इस मामले में नहीं मगर उस मामले में हमारी पताका फहराई जानी चाहिए वे हमेशा घाटे में रहते हैं। उनकी पताका उस मामले में भी कोई नहीं फहराता, जिस मामले में वे चाहते हैं कि फहराई जाए, जबकि हमारे मोदीजी उदार हैं। दुनिया भर में भारत की पताका फहरा रही है, इससे वे खुश हैं, क्योंकि देश की पताका के आगे और उससे बड़ी उनकी अपनी पताका होती है। मोदीजी का खून रोज इसी से बढ़ता रहता है और विरोधियों का घटता रहता है!

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तुम विदेशियों ने हमारे बारे में एक और बात निंदा के अंदाज में कही है कि हम संबंधों का फायदा उठाने में माहिर हैं। हां जी हैं। छाती ठोक कर कहते हैं कि हैं। इसमें शर्म कैसी! जो संबंध बनाते नहीं, वे संबंधों की महत्ता भी क्या जानें! उन्हें क्या पता कि संबंध बनाना भी एक तरह का लांग टर्म इनवेस्टमेंट है। इस पर चक्रवृद्धि ब्याज मिलता है। हम तो इतने कुशल हैं कि किसी से भी, कहीं भी अपनी रिश्तेदारी जोड़ लेते हैं, संबंध बना लेते हैं। हमारे प्रधानमंत्री ट्रंप से मिलने गए तो ट्रंप सरकार का नारा दे आए। वह चुनाव हार गया, तो उसकी खबर तक नहीं ली कि मेरे यार तू हार गया। यह बहुत बुरा हुआ। तेरी तो तेरी, मेरी तक इज्जत का कचरा हो गया! इसके बजाय उन्होंने फोन करके जो बिडेन को शुभकामनाएं दींं। ट्रंप से एक झटके में दोस्ती खल्लास!

इसी तरह हम किसी को भी अपना वेरी शार्ट टर्म, शार्ट टर्म, मीडियम टर्म, मामा, चाचा, ताऊ, अम्मा, ताई, बुआ, बेटा, बेटी आदि कुछ भी बना लेते हैं। हमारे यहां चुनाव के समय आकर नजारा देखो।किसी भी पार्टी का उम्मीदवार किसी से भी बीस सेकंड के लिए अपनी रिश्तेदारी जोड़ लेता है।इक्कीसवें सेकंड इसे खत्म करके दूसरे, फिर तीसरे, फिर चौथे से यही रिश्ता जोड़ लेता है। इस मामले में गरज पड़ने पर गधे को भी बाप बनाने की मिसाल हमारे यहां इसीलिए मशहूर है। बस किसी से गरज होनी चाहिए। फिर तो रिश्तेदारी निकालने या बनाने में हम पीछे नहीं हटते, वरना तो हम भाई को भाई, बहन को बहन, मां और बाप को भी अपना मानने से इनकार कर देते हैं।

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हम सोच-समझकर संबंधों में इन्वेस्ट करते हैं। अगर किसी इनवेस्टमेंट से तत्काल लाभ नहीं मिलता या मिलते-मिलते अचानक रुक जाता है तो हम रिश्तों की अपनी पूंजी दूसरी जगह लगा देते हैं।मोदी जी का भी यही सिद्धांत है, मायावती जी का भी यही और बाकी बहुत सों का भी यही है और यही रहेगा। वैसे कुछ बेवकूफ हमारे यहां भी ऐसे हैं जो घाटे का ही सौदा करते हैं और ठनठन गोपाल होकर भी खुश रहते हैं। मगर बेवकूफ दुनिया में कहां नहीं होते? बेवकूफों की विश्व बिरादरी के ऐसे सदस्यों को हम सच्चा तो क्या झूठा तक भारतीय नहीं मानते!

इसलिए विदेशियों हमारी निंंदा करना फिजूल है। तुम अपने पैमाने से हमें जांचते हो और कभी क्या, कभी क्या हमारे बारे में राय बनाते रहते हो। तुम हमारे प्रधानमंत्री को नहीं जानते। उनके अपने अलग पैमाने हैं। वैसे वे लचीले भी हैं। तुम्हारे पैमाने से उन्हें लाभ मिलता है, तो उससे उठा लेते हैं, वरना लाभ उठाने के लिए उनके अपने पैमाने हैं। अचानक वह आत्मनिर्भर हो जाते हैं। चित भी मेरी, पट भी मेरी और अंटा मेरे पापाजी के शुद्ध स्वदेशी सिद्धांत के वह हैं। इसके बाद तो जयश्री राम कहना ही बचता है!

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