विचार

आकार पटेल / दुनिया से हमारे रिश्ते और 'न्यू इंडिया' में दिया जाता आत्मनिर्भरता का उपदेश!

भारत के इतिहास में ऐसा कोई पल नहीं आया जब वह दुनिया में इतना भटका हुआ हो, अपने पक्ष और विपक्ष को लेकर इतना भ्रमित हो और इतना अपमानित हुआ हो।

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Getty Images SAJJAD HUSSAIN

'ईश्वर अपने चमत्कार दिखाने के लिए कई तरीके अपनाता है,' ऐसा मेरे स्कूल में पढ़ाई जाने वाली एक प्रार्थना या भजन में कहा गया था। या शायद यह पीजी वोडहाउस की कोई पंक्ति थी, मुझे याद नहीं कौन सी। लेकिन कोई बात नहीं, बात यह है कि चमत्कार आमतौर पर हम नश्वर प्राणियों की जानकारी के बाहर होते हैं। जबकि उच्च शक्तियां काम कर रही होती हैं।

भारत की विदेश नीति में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। इस क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल हुई हैं, कम से कम सरकारी प्रचार और टेलीविज़न मीडिया (जो कि एक ही बात है) में तो ऐसा ही दिखता है, लेकिन पूरी जानकारी साफ-साफ सामने नहीं आती है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के आयोजन वाले इस हफ़्ते में हमारी उपलब्धियों को समझने के लिए, मैंने सोचा कि अपने (भारत के) मित्रों की एक सूची बनाना सही होगा। अगर आप चाहें तो इसे एक विदेश नीति पंचनामा भी कह सकते हैं, ताकि हम बेहतर ढंग से समझ सकें कि नया भारत दुनिया में कहां खड़ा है।

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अगर अपने पड़ोस से ही शुरु करें तो मैं बता सकता हूं कि पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते खराब हैं। दरअसल, हम उनके साथ 'युद्ध' की स्थिति में हैं क्योंकि उनके खिलाफ हमारा बेहद सफल सैन्य अभियान स्थगित तो है, लेकिन अभी खत्म नहीं हुआ है। और 'युद्ध' शब्द यूं ही नहीं इस्तेमाल होता है, क्योंकि हमने वास्तव में तो पाकिस्तान के साथ युद्ध की घोषणा नहीं की है। लेकिन अब तो यह सामान्य बात है।

बांग्लादेश को भी दोस्ती वाले बहीखाते में घाटे में ही लिखना होगा। वह अपनी प्रधानमंत्री को वापस भेजने की मांग कर रहा है ताकि उन पर मुकदमा चलाया जा सके, और हम अब तक इनकार करते रहे हैं। उसके नेता चाहते हैं कि सार्क को पुनर्जीवित किया जाए और उन्होंने भारत पर इसे खत्म करने की कोशिश करने का न सही, लेकिन निष्क्रिय ज़रूर बनाने का आरोप लगाया है। हमारी सरकार ने बांग्लादेशियों के खिलाफ जिस भाषा का इस्तेमाल किया है, वह जगजाहिर है, और हाल ही में हुए एशिया कप ने हमें यह समझने में मदद की है कि कितने भारतीय अपने खिलाड़ियों को किस नज़रिए से देखते हैं।

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इस सरकार ने अग्निपथ योजना के तहत 2022 में भारतीय सेना में नेपालियों की भागीदारी खत्म कर दी थी, जिससे नेपाल के साथ हमारा 200 साल पुराना नाता टूट गया। 2015 में भारत द्वारा नेपालियों के खिलाफ की गई नाकेबंदी आज भी खटकती है।

गाजा नरसंहार को रोकने की मांग में श्रीलंका ने हमसे ज़्यादा साहस दिखाया। सरकार के समर्थकों ने कुछ समय पहले मालदीव का बहिष्कार करने की मांग की थी क्योंकि हम उनसे नाराज़ थे (मुझे याद नहीं क्यों), और यह साफ नहीं है कि इस समय हमारा रिश्ता उनके साथ दोस्ती वाला है या नहीं।

अपने नेताओं के निर्देश पर अपने चीनी टेलीविज़न सेट तोड़ने के बाद, भारतीयों को इस बात के लिए माफ किया जा सकता है कि उन्हें नहीं पता कि मौजूदा समय में हमारे उनके साथ रिश्तों की स्थिति क्या है। किसी को नहीं पता है। हाल ही में हम अफ़ग़ानिस्तान के प्रति गर्मजोशी दिखाने लगे हैं, बिना यह बताए कि जिस तालिबान को हम कल तक शैतान समझते थे, वह आज स्वीकार्य क्यों है। ईरान से तेल खरीदना हमने लगभग आठ साल पहले ट्रंप के आदेश पर बंद कर दिया था, लेकिन ईरान अब भी मारे यहां से जाने वाले ज़ायरीन (तीर्थयात्रियों) को स्वीकार करता है।

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डोनाल्ड ट्रंप, जिनके लिए हमने दो बड़ी रैलियां आयोजित कीं, जिनके लिए हमने कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की, जिनके लिए हमने अमेरिकी चुनावों में दखल दिया, जिसने पाकिस्तान (19%) और बांग्लादेश (20%) से ज्यादा हम पर टैरिफ (25%) लगाया और फिर उस पर 25% का अतिरिक्त जुर्माना भी लगा दिया। इसके बाद ट्रंप ने H1B वीज़ा पर 1,00,000 डॉलर की फीस लगा दी। अब ट्रंप ने दवा कंपनियों पर एक और टैरिफ लगा दिया है। यह कहना सही होगा कि अमेरिका हमारा दोस्त नहीं है। लेकिन इज़राइल हमारा दोस्त है। बाकी दुनिया ने भले ही नेतन्याहू के नरसंहार को सही ठहराने वाले भाषण से किनारा कर लिया हो, लेकिन भारत ने तालियां बजाईं।

तुर्की और अज़रबैजान हमारे दुश्मन हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान के दोस्त हैं। पूरा अफ़्रीकी महाद्वीप (54 में से 53 देश, पुराने स्वाज़ीलैंड को छोड़कर) चीन के बेल्ट एंड रोड कार्यक्रम का हिस्सा हैं और यह कहना सही होगा कि अब हमारा उन पर ज़्यादा प्रभाव नहीं है और वे हमारे लिए ज़्यादा उपयोगी नहीं हैं। यही बात और उन्हीं कारणों से मध्य एशिया और आसियान देशों पर भी लागू होती है। आसियान के साथ भारत का व्यापार चीन के साथ उसके व्यापार का 10% है, और अफ़्रीका के साथ एक-चौथाई।

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हमने रूस के साथ एक लेन-देन वाला रिश्ता बनाया है, उसे सिर्फ़ हथियारों और अब तेल के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया है, और बदले में अब वे हमें एक ग्राहक के रूप में देखते हैं, न कि एक मित्र के रूप में और सहयोगी तो बिल्कुल नहीं। ज़बरदस्ती स्नेह जताने की कोई भी कोशिश, जिसमें हम माहिर हैं, इसमें कोई बदलाव नहीं ला पाएगी। अरब देशों की आबादी के नजरिए से देखें तो, इज़राइल को गले लगाने के कारण भारत ने उन देशों में अपनी ज़मीन खो दी है। इससे अरब देशों के साथ रिश्तों पर ज़्यादा असर नहीं पड़ सकता, लेकिन वैश्विक मामलों में एक हाशिए पर खड़े भागीदार के रूप में, अमेरिका और चीन द्वारा दबाव बनाए जाने और उस पर हमारी प्रतिक्रिया के बाद अरब तानाशाह भी अब हमें अलग नज़रिए से देखते हैं।

यूरोप का झुकाव इज़राइल की ओर हो गया है, और मूल्यों के ऐतबार से, हम उस धर्मनिरपेक्ष, उदारवादी व्यवस्था से दूर हो गए हैं जिसकी ओर यूरोप को अपनी युवावस्था के कारण लौटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। हार्डवेयर और पुर्जों के लिए रूस पर हमारी दीर्घकालिक निर्भरता का अर्थ यह भी है कि हम यूरोप के इस विश्वास का समर्थन नहीं कर सकते कि रूस पोलैंड और जर्मनी पर कब्ज़ा करने के लिए तत्पर है।

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हमारे ब्रिक्स सहयोगी ब्राज़ील ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देने में जो साहस दिखाया था, वैसा साहस अब हमारे पास नहीं है। 2014 के बाद के आत्म-प्रशंसा के दौर में हमें गले मिलने और बातें करने का मौका मिला था, ढेरों बातें, लेकिन अब लगता है कि ऐसा भी नहीं हो पा रहा है। भारत के इतिहास में ऐसा कोई पल नहीं आया जब वह दुनिया में इतना भटका हुआ हो, अपने पक्ष और विपक्ष को लेकर इतना भ्रमित हो और इतना अपमानित हुआ हो।

ये सबकुछ जानने-सुनने के बाद पाठकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि वर्षों तक वैश्वीकरण, जी-20 की अध्यक्षता, विश्वगुरु और अन्य तरह के जुमलों और बातों के बाद, आज हमें आत्मनिर्भरता का उपदेश क्यों दिया जा रहा है। शायद इसी स्थिति को हम न्यू इंडिया कह सकते हैं।

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