पहलगाम में हुए आतंकी हमले का भारत की जनता पर गहरा असर हुआ है। जहां प्रधानमंत्री मोदी डींगें हांकते रहे और गोदी मीडिया दावा करता रहा कि भारतीय सेनाएं पाकिस्तान में घुस गई हैं, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान ने भारत के कई विमानों को मार गिराने का दावा किया। संघर्ष विराम की घोषणा सबसे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने की और कहा कि यह उनकी मध्यस्थता से संभव हुआ है।
वहीं मोदी ने दावा किया कि इसका श्रेय उन्हें जाता है और सेना के प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने संघर्ष विराम का अनुरोध किया था जिसे भारत ने मंजूर किया जिससे दोनों ओर सैनिकों और नागरिकों का बड़े पैमाने पर संभावित रक्तपात रूक सका। सरकार ने अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कई प्रतिनिधिमंडल दुनिया के विभिन्न देशों में भेजे हैं, जिनमें विपक्षी दलों के कई सांसदों को भी शामिल किया गया है। शशि थरूर के नेतृत्व में ऐसा ही एक प्रतिनिधिमंडल अमेरिका पहुंचा। इन प्रतिनिधिमंडलों को क्या कहने की हिदायत और सलाह दी गई है, यह थरूर के अमेरिका में दिए गए वक्तव्य से स्पष्ट होता है।
Published: undefined
अमेरिका में थरूर ने कहा, "पहलगाम के आतंकी हमले का प्रयोजन लोगों को बांटना था लेकिन इससे भारत के लोग धर्म और अन्य विविधताओं से परे हटकर एक हो गए। धार्मिक और अन्य विभाजनों से दूर हटते हुए, भड़काने की कोशिशों के बावजूद उन्होंने असाधारण एकता प्रदर्शित की। संदेश साफ है कि इस कांड के प्रायोजकों का बहुत घातक इरादा था।‘‘
क्या सभी प्रतिनिधिमंडलों को इसी तरह की बातें कहने की हिदायत दी गई है? स्पष्टतः यह आख्यान काफी हद तक सही है क्योंकि सभी भारतीयों, हिंदुओं और मुस्लिमों ने एकजुट होकर पहलगाम की कायरतापूर्ण घटना की निंदा की। लेकिन इसके बावजूद, अंदर ही अंदर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का काम जारी है। पहलगाम की घटना के पहले भी मुसलमानों के प्रति नफरत लगातार बढ़ती जा रही थी, जो घटना के बाद तो तेजी से बढ़ते हुए शिखर पर पहुंच गई है।
Published: undefined
अपने पिछले लेख में मैंने इस अभागे समुदाय के प्रति नफरत फैलाने के लिए की गई हरकतों की आंशिक सूची प्रस्तुत की थी। इनका संकलन सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एन्ड सेकुलरिज्म, मुंबई द्वारा किया गया है। एक अन्य लेख में यह टिप्पणी की गई थी कि ‘‘जहां भारत आतंकी हमले में हुई मौतों का शोक मना रहा था, वहीं ऑनलाइन और ऑफलाइन एक समन्वित अभियान चलाया गया जिसका एक संदेश था कि मुसलमान हिंदुओं के लिए खतरा हैं, कभी न कभी सभी हिंदुओं का यही हाल होगा और मुसलमानों को हिंसा और बहिष्कार के जरिए दंडित किया जाना जरूरी है।
सबसे चिंताजनक घटना थी अशोका विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी। एक अत्यंत उपयुक्त पोस्ट में उन्होंने लिखा था, ‘‘मुझे यह देखकर बहुत खुशी हो रही है कि बहुत सारे दक्षिणपंथी लेखक कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं।" वे आगे लिखते हैं, "उन्हें यह मांग भी करनी चाहिए कि भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या किए जाने और मनमाने ढंग से घरों को ढहाए जाने और बीजेपी के घृणा अभियान की वजह से होने वाली अन्य घटनाओं के शिकारों को भी भारतीय नागरिकों की तरह सुरक्षा हासिल हो। कई मानवाधिकार समूहों ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है कि मुसलमानों के साथ होने वाली हिंसा और उनके खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए जाने की घटनाओं में पिछले एक दशक में काफी बढ़ोत्तरी हुई है‘‘।
इसे भी पढ़ेंः पहलगाम त्रासदी के बहाने नफरत की तेज होती आंधी, फिर निशाने पर मुसलमान
Published: undefined
इसके बाद हरियाणा राज्य महिला आयोग ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाते हुए कहा कि ‘‘मेहमूदाबाद के सोशल मीडिया पोस्ट से दोनों महिला सैन्य अधिकारियों का अपमान हुआ है और सुरक्षा बलों में उनकी भूमिका का अवमूल्यन हुआ है।‘‘ यह समझ के परे है कि इस पोस्ट से कैसे इन महिला सैन्य अधिकारियों का अपमान हुआ या भारतीय सेना में उनकी भूमिका का अवमूल्यन हुआ।
एक अन्य शिकायत बीजेपपी के एक युवा कार्यकर्ता द्वारा दर्ज कराई गई। इन शिकायतों पर कार्यवाही करते हुए अली खान को गिरफ्तार किया गया और बाद में उच्चतम न्यायालय ने उन्हें अस्थायी जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश भी दिया कि वे इस मुद्दे पर कुछ न लिखें और अपना पासपोर्ट जमा करें। आदेश में कहा गया कि अली खान का पोस्ट 'डॉग विस्सल' है और इससे दबे-छुपे ढंग से कोई गलत सन्देश जा सकता है।
हम जानते हैं कि "डॉग विस्सल" ऐसे सन्देश को कहा जाता है जिसमें विवाद पैदा करने वाली बातें परोक्ष ढंग से कही गई हों। न्यायाधीश ने इस पोस्ट को जारी किए जाने के समय और उसके पीछे क्या इरादा था इस पर शंका व्यक्त की। हालांकि जमानत देने का फैसला अत्यंत सराहनीय था।
Published: undefined
वहीं, बीजेपी के नेता और मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह के इस कथन के लिए भी न्यायालय ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई कि सोफिया कुरैशी आतंकवादियों की बहन हैं। बीजेपी नेता का यह कथन संभवतः इस असाधारण सैन्य अधिकारी पर की गई सबसे घृणित टिप्पणी थी। और यह तो निश्चित तौर पर 'डॉग विस्सल' की श्रेणी में आती है। हालांकि न्यायालय ने उनकी क्षमायाचना को खारिज कर दिया लेकिन उनकी गिरफ्तारी पर भी रोक लगा दी।
प्रोफेसर खान की पोस्ट तो निश्चित तौर पर डॉग विस्सल नहीं है। वह तो अल्पसंख्यक समुदाय की पीड़ा का इजहार है। इसके विपरीत विजय शाह की 'डॉग विस्सल' नफरत की अभिव्यक्ति है। प्रोफेसर अली खान ने अत्यंत संवेदनशील ढंग से हमें आईना दिखाया है कि देश में अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह का व्यवहार हो रहा है।
विजय शाह का भाषण इस बात को खुलकर प्रदर्शित करता है कि कैसे हर अवसर का उपयोग अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का बीज बोने के लिए किया जाता है। अल्पसंख्यक समुदाय के एक प्रोफेसर को इस बात पर फटकारा जाना एकदम अनुचित है कि उन्होंने बुलडोजरों और लिंचिंग के बारे में कुछ कहा। न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने के बावजूद कई राज्य सरकारों द्वारा बुलडोजरों का इस्तेमाल जारी है।
Published: undefined
इसी तरह दो व्यंग्यकारों नेहा सिंह राठौर और मदिरी काकोटी, जिन्हें इंटरनेट की दुनिया में डॉ मेडुसा के नाम से जाना जाता है, के खिलाफ भी उनके मोदी सरकार की आलोचना करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद जारी किए गए थे, को लेकर प्रकरण दर्ज किए गए।
विजय शाह को उनके आपत्तिजनक कथनों के लिए उनकी पार्टी ने क्षमा कर दिया है। न उन्हें पार्टी से निष्कासित या निलंबित किया गया है और ना ही गिरफ्तार किया गया है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर निचले स्तर तक के नेता जहर उगलते रहते हैं, जिसे न केवल मौन समर्थन दिया जाता है बल्कि यह उनके राजनैतिक करियर के उन्नयन में सहायक होता है।
हमें याद है कि 2019 में दिल्ली में हुई हिंसा के कुछ ही समय पहले शांति और सद्भाव की अपीलें करने वाले उमर खालिद और शरजील इमाम पांच सालों से जेल में सड़ रहे हैं और उनके प्रकरणों की सुनवाई तक शुरू नहीं हुई है। वहीं उस समय के राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर को ‘गोली मारो‘ का नारा लगवाने के बाद पदोन्नति देकर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया था।
हमारे सामाजिक एवं संवैधानिक प्रतिमानों को धर्म में रंगी राजनीति के माध्यम से धीरे-धीरे नष्ट किया जा रहा है। लोकतंत्र को अली खान, उमर खालिद, नेहा सिंह राठौर और हिमांशी नरवाल जैसे लोगों की जरूरत है जो सच्चे दिल से शांति का आव्हान कर रहे हैं और हमें हमारे समाज का आईना दिखा रहे हैं।
(लेख का अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined