दावोस में वर्ल्ड इकानामिक फोरम में प्रधानमंत्री का भाषण एक प्रवचन से अधिक कुछ नहीं था। प्रवचन देने वाला हमेशा खुद किसी चीज का पालन नहीं करता, बस संस्कृत के श्लोकों के साथ उपदेश देता जाता है। जिस पर्यावरण को बचाने और प्रौद्योगिकी के विकास की बात अंतराष्ट्रीय मंच से पीएम मोदी करते हैं, जरा पहले उसका हाल अपने देश में देख लिया होता तो अच्छा होता।
केवल गैर-परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों से बिजली पैदा करने से जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या का हल नहीं निकलता। यह सभी को मालूम है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण कार्बन डाईआक्साइड गैस है, और इसका सबसे बड़ा स्त्रोत कोयले पर आधारित बिजलीघर है। पिछले महीने ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इन बिजलीघरों पर जो दरियादिली दिखाई, उसके बाद शायद ही कोई पर्यावरण का जानकार यह मानने को तैयार हो कि भारत जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में रत्ती भर भी गंभीर है।
दिसम्बर 2015 में पर्यावरण मंत्रालय ने कोयले पर आधारित बिजलीघरों के लिये राजपत्रित अधिसूचना के माध्यम से उत्सर्जन के नये मानकों को प्रकाशित किया था। नये मानक पुराने मानकों की तुलना में बिजली घरों को उत्सर्जन में कमी लाने को बाध्य करने वाले थे। पुराने बिजलीघरों को मानकों के अनुपालन करने के लिये दो साल का समय दिया गया था, जो दिसम्बर 2017 में पूरा हो गया। अधिसूचना के बाद चालू होने वाले सभी बिजली घरों को मानकों का अनुपालन तत्काल करना था।
हालत यह है कि दिसम्बर 2015 के बाद चालू होने वाले किसी भी बिजलीघर ने मानकों का अनुपालन नहीं किया है। दूसरी तरफ, दिसम्बर 2017 में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी पुराने बिजलीघरों को एक पत्र के माध्यम से सूचित कर दिया कि मानकों के अनुपालन की समयसीमा पांच साल यानी दिसम्बर 2022 तक बढ़ा दी गई है। 3 महीने बाद इस पर फिर से विचार किया जाना है और जानकारों का मानना है कि यह समयसीमा और बढ़ाई जा सकती है।
यह कदम पर्यावरण के साथ ही कई वैधानिक प्रश्न भी उठाता है, पर इस सरकार को उद्योगों को लूट की खुली छूट देनी है और लगातार ऐसा ही हो रहा है। तापमान वृद्धि पर प्रवचन देना अच्छा हो सकता है, पर क्या कभी ने यह सुना है कि किसी रियायत की मौलिक अवधि बाद में बढ़ाई गई अवधि की तुलना में बहुत कम रही हो। पुराने बिजलीघरों को नये मानक के लिये तैयार करने के लिये दो साल का समय दिया गया था, जिसे दो साल बाद पांच साल के लिए और बढ़ा दिया गया है, और यह शायद और बढ़ जाये।
दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या किसी राजपत्रित अधिसूचना को एक साधारण पत्र के माध्यम से बदला जा सकता है?
प्रधानमंत्री बताते हैं कि मानव के सामने सबसे बड़ी चुनौती जलवायु परिवर्तन है और वसुधैव कुटुबंकम की बात भी करते हैं। हमने केवल मानव की बात करके यह समझ लिया है कि पूरी पृथ्वी केवल मानव की जागीर है और यही सभी समस्याओं की जड़ है। ऐसी सोच प्रकृति का और दोहन करेगी।
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