विचार

आकार पटेल का लेख: जनमत संग्रह नहीं है अच्छा विचार, यूरोपीय संघ से निकलने के ब्रिटेन के फैसले का सबक

दो साल पहले जून 2016 में इस सवाल पर मत डाले गए थे। लेकिन यूनाइडेट किंगडम अभी तक उन शर्तों को तय नहीं कर पाया है जो यूरोप से उसके नए रिश्ते का आधार होगा। इसमें सबसे बड़ा बिंदु उत्तरी आयरलैंड को लेकर है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया जनमत संग्रह नहीं है अच्छा विचार

राष्ट्र आमतौर पर सीधे फैसला नहीं लेते। लोकतांत्रिक राष्ट्र अपने चुने हुए प्रतिनिधियों यानी विधायकों-सांसदों के जरिये फैसला लेते हैं कि उन्हें क्या करना है। अमेरिका जैसी जगहों पर जहां कार्यपालिका का चुनाव सीधे तौर पर होता है, वहां संभावित निर्णायक उन चीजों की घोषणा करता है जिन्हें वह करना चाहता है और वही घोषणापत्र उन्हें चुने जाने का आधार बनता है।

एक बार वे चुन लिए गए तो उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने घोषणापत्र में किए वादों को पूरा करेंगे। अमेरिकी मतदाताओं से हम अक्सर यह शिकायतें सुनते हैं कि ‘वाशिंगटन’ नहीं बदलता है और उनकी सुनता भी नहीं है। उम्मीदवार वादा तो करते हैं लेकिन उन्हें पूरा नहीं करते।

इसकी वजह यह नहीं है कि नेता मतदाताओं की उपेक्षा करते हैं, बल्कि यह है कि जैसे ही वे चुन लिए जाते हैं, उनका घोषणापत्र हकीकत से टकराता है।

सिर्फ एक ही मौके पर राष्ट्र सीधे फैसला लेता है और वह जनमत संग्रह के जरिये होता है। जनमत संग्रह में किसी एक राजनीतिक सवाल पर मत पड़ते हैं, आमतौर पर इसका जवाब हां/नहीं में होता है जिसे राष्ट्र को लागू करना होता है। 2016 में यूनाइटेड किंगडम के नागरिकों (यानी इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के निवासी) ने जनमत संग्रह में हिस्सा लिया। उन्हें जिस सवाल का जवाब देना था वह यह था: “क्या यूनाइटेड किंगडम को यूरोपीय संघ का हिस्सा रहना चाहिए या नहीं?” मतदाताओं को विकल्पों के साथ दो बक्सों में से किसी एक पर निशान लगाने के लिए कहा गया: “यूरोपीय संघ में रहना है” और “यूरोपीय संघ को छोड़ना है”।

जैसा कि पाठक जानते होंगे कि ब्रिटेनवासियों ने 48 फीसदी के मुकाबले 52 फीसदी मतों के साथ यूरोपीय संघ छोड़ने का निर्णय लिया, जिसका वे 1973 से हिस्सा थे।

ब्रिटेनवासियों ने दो वजहों से यूरोपीय संघ से निकलने का फैसला किया। पहला, उनके ग्रामीण इलाकों में पूर्वी यूरोप से काफी विस्थापन हुआ, मुख्य रूप से पोलैंड से। यह कानूनी विस्थापन था। यूरोपीय संघ का विचार चार किस्म की आजादी के इर्द-गिर्द घूमता है। यह आजादियां हैं सामान, सेवा, लोगों और पूंजी की खुली आवाजाही।

यूरोपीय नागरिक बिना किसी बाधा के यूरोप के किसी भी हिस्से में रह सकते हैं, काम कर सकते हैं और निवेश कर सकते हैं, जहां भी वे चाहें। वे किसी भी यूरोपीय देश से बिना किसी सीमा शुल्क और रोक-टोक के आयात और निर्यात कर सकते हैं।

पोलैंड 2004 में यूरोपीय संघ का हिस्सा बना और आज यूनाइटेड किंगडम में 8 लाख पोलैंडवासी रहते और काम करते हैं। उनमें से ज्यादातर बिना किसी कौशल या अर्ध-कौशल वाले कामगार हैं जो खेतों में काम करते हैं। उन लोगों के प्रति थोड़ा विरोध था, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में जिन्होंने बाद में यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए जोरदार ढंग से मत डाला।

दूसरी वजह यह है कि ब्रिटेनवासियों को यह बात थोड़ी अपमानजनक लगी कि यूरोपीय संघ के कुछ खास तरह के कानून हैं जिन्हें सारे सदस्य राष्ट्रों को मानना होता है। उदाहरण के लिए मानवाधिकार को लें। मसलन, किसी यूरोपीय संघ के सदस्य देश में मृत्युदंड का प्रावधान नहीं हो सकता। व्यापार और वाणिज्य में भी यूरोपीय संघ ने सामन्य नियमावली बनाई है जिसे सभी सदस्य देश को लागू करना होता है।

इन चीजों को बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि यह फायदेमंद बातें हैं लेकिन कुछ ब्रिटेनवासियों को लगा कि यह उनकी संप्रभुता में हस्तक्षेप है। इन्हीं कारणों से ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए मत डाला।

दो साल पहले जून 2016 में इस सवाल पर मत डाले गए थे। लेकिन यूनाइडेट किंगडम अभी तक उन शर्तों को तय नहीं कर पाया है जो यूरोप से उसके नए रिश्ते का आधार होगा। इसमें सबसे बड़ा बिंदु उत्तरी आयरलैंड को लेकर है।

जैसा कि हम जानते हैं कि इंग्लैंड पश्चिमी यूरोप के बाईं ओर के तट पर एक द्वीप का हिस्सा है। इंग्लैंड के बाईं ओर एक और द्वीप है, आयरलैंड। यह दो भागों में विभाजित है। लगभग 80 फीसदी देश आयरलैंड गणतंत्र है जो एक स्वतंत्र देश है और यूरोपीय संघ का सदस्य है। करीब 20 फीसदी उत्तरी आयरलैंड है जो यूनाइटेड किंगडम का हिस्सा है। उत्तरी आयरलैंड में प्रोटस्टेंट और कैथोलिक ईसाइयों की मिश्रित आबादी है, जबकि आयरलैंड गणतंत्र लगभग पूरी तरह कैथोलिक है। यूनाइटेड किंगडम में (चर्च ऑफ इंग्लैंड के तहत) निश्चित रूप से ज्यादातर प्रोटेस्टेंट आबादी है। यह मुद्दा कई तरह से भारत, पाकिस्तान और कश्मीर की याद दिलाता है।

बहरहाल, 1998 में यानी लगभग 20 वर्षों पहले कई दशकों की लड़ाई और खून-खराबे के बाद तीनों हिस्से गुड फ्राइडे नाम के एक शांति समझौते के लिए राजी हुए। इसके तहत आयरलैंड गणतंत्र और उत्तरी आयरलैंड की सीमाओं को पूरी तरह खोल दिया गया और खुली आवाजाही शुरू हो गई। क्योंकि यूनाइटेड किंगडम और आयरलैंड गणतंत्र दोनों यूरोपीय संघ के सदस्य थे, तो इसका एक साफ मतलब था।

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20 सालों तक यह व्यवस्था चलती रही और शांति बनी रही। अब यूनाइटेड किंगडम यूरोपीय संघ और इसके इकलौते बाजार को छोड़ना चाहता है, तो यूनाइटेड किंगडम (उत्तरी आयरलैंड समेत) और यूरोपीय संघ (आयरलैंड गणतंत्र सहित) के बीच सीमा निर्धारण का सवाल फिर से उत्पन्न हो गया है।

जैसे ही यूनाइटेड किंगडम निकलता है, और यह 29 मार्च 2019 को 11 बजे सुबह होगा, इन दोनों हिस्सों के बीच वीजा और सीमा शुल्क के चेकपोस्ट होंगे। इससे अनिवार्य रूप से उसी किस्म का गुस्सा पैदा होगा जो अतीत में हिंसा का कारण बना था जब कुछ आयरिश लोगों को लगा कि उन्हें जानबूझकर अलग किया जा रहा है।

इस चीज के बारे में यूनाइटेड किंगडम के लोगों ने नहीं सोचा जब वे यूरोपीय संघ से निकलने के पक्ष में वोट करने गए। यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि कैसे यूनाइटेड किंगडम इस समस्या और दुनिया के सबसे बेहतर बाजार में अपनी पहुंच के सवाल को सुलझाता है जब अगले कुछ महीनों में वह दुनिया में अकेले अपना रास्ता चुनेगा।

एक राष्ट्र जोश और उत्साह में एक जल्दबाजी भरा निर्णय ले सकता है जो लंबे वक्त में उसी के लिए नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए, सामान्य तौर पर, मुझे लगता है कि जनमत संग्रह एक अच्छा विचार नहीं है।

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