विचार

1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका दुनिया के अधिकतर शहरों का औसत तापमान, अब इन शहरों को हरियाली का आसरा  

दुनिया के अधिकतर शहरों का औसत तापमान 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। इस रिपोर्ट में शहरों में हरियाली का दायरा बढाने, जल-संसाधनों के बेहतर प्रबंधन, छतों पर हरियाली और भवनों के बाहरी क्षेत्रों में हलके रंगों के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है।

फाइल फोटो
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दुनियाभर के शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक तेजी से गर्म हो रहे हैं और शहरी क्षेत्रों में हरियाली का दायरा बढ़ने पर बढ़ते तापमान का असर कुछ हद तक कम हो जाता है। यह निष्कर्ष हाल में ही चीन की नानजिंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र का है। इस अध्ययन के लिए भारत समेत दुनिया के 2000 से अधिक शहरों के सतही तापमान का आकलन सैटेलाइट द्वारा प्राप्त चित्रों और आंकड़ों द्वारा किया गया है। तापमान का यह आकलन वर्ष 2000 से 2021 तक किया गया। साथ ही इन शहरों के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के तापमान का भी आकलन किया गया है, जिससे शहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों के तापमान में अंतर को परखा जा सके। 

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इस अध्ययन के अनुसार दुनियाभर के शहरी क्षेत्रों में तापमान प्रति दशक औसतन 0.5 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। यह तापमान बृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 29 प्रतिशत से भी अधिक है। शहरी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते तापमान का कारण जलवायु परिवर्तन और शहरों में तेजी से बढ़ती आबादी का घनत्व है। यूरोप में शहरी क्षेत्रों में हरियाली का दायरा बढाने के बाद से शहरी क्षेत्रों में बढ़ने वाले कुल तापमान में से 0.13 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की भरपाई हो जाती है, यानि पेड़-पौधे तापमान बृद्धि के असर को कम कर रहे हैं। हरियाली का दायरा बढाने पर अलग-अलग शहरों में असर अलग होता है। अमेरिका के शिकागो में हरियाली के असर से तापमान बृद्धि में 0.084 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की कमी आंकी गयी है। इस अध्ययन के अनुसार शहर जितने बड़े होते जाते हैं, उनमें तापमान बृद्धि की समस्या उतनी अधिक गंभीर हो जाती है।  

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जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के कारण पूरी दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, पर शहरी क्षेत्रों में भूमि पर कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए भवन, बाजार, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं इसे अधिक गर्म करती हैं। दूसरी तरफ शहरी क्षेत्रों में तथाकथित विकास हरियाली वाले क्षेत्रों को उजाड़कर ही किया जाता है, और नदियों या दूसरे सतही जल-संसाधनों को लगातार छोटा किया जाता है। इस अध्ययन के अनुसार तापमान वृद्धि के कारण शहरी क्षेत्रों का तापमान औसतन 0.3 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ रहा है, दूसरी तरफ शहरों के बढ़ने के कारण और प्राकृतिक संसाधनों के विनाश के कारण तापमान औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। पर, भारत और चीन के शहरों की तेजी से बढ़ती आबादी के साथ ही श्री क्षेत्रों के विस्तार के कारण इन शहरों का तापमान औसतन 0.23 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है, जो वैश्विक औसत से अधिक है।  

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अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टिट्यूट द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार दक्षिण एशिया के शहरों की आबादी इन क्षेत्रों में बढ़ाते तापमान और आर्द्रता से सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। इसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान, भारत, चीन और म्यांमार सभी देश शामिल हैं। बढ़ते तापमान और आर्द्रता के कारण अनेक स्वास्थ्य समस्याए उत्पन्न होती हैं और मृत्यु भी हो सकती है।  

यूरोपियन कमीशन के जॉइंट रिसर्च सेंटर द्वारा कराये गए एक अध्ययन के अनुसार चरम गर्मी की स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों का तापमान 10 से 15 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है और इसका सबसे अधिक असर औद्योगिक क्षेत्रों के श्रमिकों, किसानों, बिना घर के लोगों और झुग्गी-झोपडी वाले क्षेत्रों की आबादी पर पड़ता है। दुनिया के अधिकतर शहरों का औसत तापमान वर्ष 2003 के बाद से 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। इस रिपोर्ट में शहरों में हरियाली का दायरा बढाने, जल-संसाधनों के बेहतर प्रबंधन, छतों पर हरियाली और भवनों के बाहरी क्षेत्रों में हलके रंगों के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है। 

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शहरों में प्रकृति से नजदीकी का एहसास केवल हरियाली वाले क्षेत्रों से होता है, पर अब यह क्षेत्र सिकुड़ते जा रहे हैं और बेतरतीब विकास की बलि चढ़ रहे हैं। शहरी हरे क्षेत्र बड़ी आबादी को तापमान बृद्धि के प्रभावों से बचाने के साथ ही साफ़ हवा और भूजल संरक्षण जैसी सुविधाएं देते हैं और उन्हें स्वस्थ्य रखने में सहयोग देते हैं, फिर भी शहरी क्षेत्रों की हरियाली का आधार स्थानीय अर्थव्यवस्था है। हाल में ही नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के शहरों में एक-तिहाई आबादी को ही हरे-भरे क्षेत्रों की सुविधा मिली है, और विकासशील देशों के शहरों में हरियाली का क्षेत्र आधे से भी कम है। हरियाली के विस्तार में यह अंतर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के ठीक विपरीत है – इसका असर विकासशील देशों पर अधिक पड़ रहा है।  

इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग, येल यूनिवर्सिटी और सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तौर पर किया है। इस अध्ययन के लिए वर्ष 2020 में दुनिया के 1028 शहरों की आबादी, शहरों के हरेभरे क्षेत्र और इन क्षेत्रों तक लोगों के पहुंचने की सुगमता का विश्लेषण किया गया है। यह अध्ययन इसी विषय पर पहले किये गए अध्ययनों से बहुत अलग है। इससे पहले इतना बड़ा अध्ययन नहीं किया गया और इस अध्ययन में शहरों को विकसित देश के शहर और विकासशील देशों के शहरों में विभाजित किया गया।  

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हरियाली केवल शहर को सुन्दर ही नहीं बनाती – तापमान बृद्धि का असर कम करती है, पानी बचाने में मदद करती हैं और वायु प्रदूषण से बचाती है, पर इसका लोगों के स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इसे शहरी और ग्रामीण नियोजकों को विकास के इस दौर में समझना पड़ेगा। पर, वास्तविकता यह है कि शहरों में हरियाली लगातार घटती जा रही है, और जनसंख्या के साथ कंक्रीट वाला विकास भी बढ़ रहा है। जाहिर है बीमारियां भी बढ़ रहीं हैं। इन अध्ययनों से इतना तो स्पष्ट है कि हरा-भरा माहौल स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है, पर क्या हमारे शहरी और ग्रामीण नियोजक इसपर कभी ध्यान देंगे।

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