विचार

खरी-खरी: ममता बनाम मोदी युद्ध में देश की लोकतांत्रिक प्रणाली की साख भी दांव पर है बंगाल चुनाव में

पश्चिम बंगाल अब यह तय करेगा कि इस देश में आने वाले समय में लोकतंत्र का स्वरूप क्या होगा। यही कारण है कि यूं तो चुनाव चार प्रदेशों और एक यूनियन टेरिटरी में हो रहे हैं परंतु सारे देश की निगाहें बंगाल पर लगी हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

‘खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी!’ लड़कपन में हम सब ने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्सों के साथ-साथ यह गीत भी खूब सुना और गुनगुनाया। परंतु हम किसी को उस समय यह आभास नहीं था कि 21वीं सदी में बंगाल में एक लक्ष्मीबाई द्वितीय भी जन्म लेंगी और वह उसी वीरता से अपने शत्रुओं का मुकाबला करेंगी जिस तरह से झांसी की रानी ने अंग्रेजों का मुकाबला किया था।

ममता बनर्जी बंगाल में चल रहे चुनाव में अकेली जान जैसी हिम्मत एवं निडरता से बीजेपी का मुकाबला कर रही हैं, उसको देखकर तो उनको लक्ष्मीबाई द्वितीय कहने का ही मन करता है। उनकी वीरता और हिम्मत का एक उदाहरण काफी है। पिछले सप्ताह जिस रोज नंदीग्राम में मतदान चल रहा था, एक अजीब घटना घटी। हुआ यह कि ममता बनर्जी को यकायक यह समाचार मिला कि बोयाल नामक मतदान केंद्र पर उनके प्रतिद्वंदी के समर्थकों ने वहां उनकी पार्टी के पोलिंग एजेंट को मार-पीट कर बाहर कर दिया है और उस बूथ पर खुलेआम धांधली चल रही है। यह खबर मिलते ही बंगाल की यह शेरनी इस बात की पुष्टि करने स्वयं दनदनाती हुई उस बूथ पर पहुंच गईं। उनके वहां पहुंचते ही बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेर लिया। बस, मिनटों में बीजेपी और ममता समर्थकों में मारपीट शुरू हो गई। इसी धक्का-मुक्की में ममता बनर्जी स्वयं आखिरी मिनट तक डटी रहीं। अंततः उन्होंने बंगाल के राज्यपाल से फोन पर बात की, तो सिक्योरिटी फोर्सेज ने उनको वहां से सुरक्षित बाहर निकाला। यह झांसी की रानी जैसी वीरता नहीं तो और फिर क्या है!

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नंदीग्राम से ममता बनर्जी स्वयं चुनाव लड़ रही हैं। अभी हाल तक उनके सबसे निकटतम साथी रहे सुवेंदु अधिकारी उनके खिलाफ बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। बंगाल में यह बात चर्चा में है कि सुवेंदु अधिकारी अंतिम समय में ममता को धोखा देकर बीजेपी के खेमे में वैसे ही चले गए जैसे 1757 में पलासी के युद्ध में मीर जाफर नवाब सिराजुद्दौला का साथ छोड़कर लॉर्ड क्लाइव के साथ चला गया था। परंतु जब ममता बनर्जी ने घोषणा की कि वह स्वयं नए मीर जाफर के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी तो बीजेपी खेमे में हड़कंप मच गया। केंद्र सरकार ने केंद्रीय सुरक्षाबलों और सारे देश से बीजेपी एवं संघ कार्यकर्ताओं की फौज नंदीग्राम में झोंक दी। उस पर से सितम यह कि चुनाव आयोग का भी रवैया ममता के प्रति शत्रुओं जैसा हो गया। आयोग ममता की किसी शिकायत पर कान धरने को तैयार ही नहीं है। हद यह है कि ऊपर जिस बूथ पर घटी घटना का वर्णन किया गया है, उस मामले में ममता बनर्जी ने जब आयोग को शिकायत की तो दो दिन बाद वह शिकायत रद्द कर दी गई जबकि हर समाचार पत्र ने उस घटना का समाचार वैसे ही दिया है जैसी ममता बनर्जी की शिकायत थी।

जहां तक बंगाल में चुनाव आयोग की भूमिका है तो वह तो अब सबके सामने स्पष्ट है। यदि यह कहा जाए कि बंगाल में ममता बनर्जी का मुकाबला केवल बीजेपी से ही नहीं बल्कि चुनाव आयोग से भी है तो निश्चय ही यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

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परंतु ममता हैं कि किसी भी रूप में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। लेकिन नंदीग्राम की घटना से यह स्पष्ट है कि बीजेपी बंगाल पर क्लाइव की तरह हर साधन का इस्तेमाल कर बंगाल पर अपना कब्जा जमाने को कमर कस चुकी है। बंगाल में इन दिनों चुनाव ही नहीं हो रहे हैं बल्कि सत्य तो यह है कि वहां इन दिनों भारत का लोकतंत्र दांव पर लगा हुआ है। लोकतंत्र का आधार निष्पक्ष, साफ-सुथरी और ईमानदार चुनाव प्रणाली पर आधारित होता है। यदि चुनाव ही निष्पक्ष नहीं होगा तो फिर कहां का लोकतंत्र और कैसी चुनाव प्रणाली!

एक नंदीग्राम से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बंगाल में चुनाव आयोग कितना निष्पक्ष है। केवल नंदीग्राम में अकेले ममता बनर्जी की पार्टी की ओर से साठ से अधिक चुनावी गड़बड़ियों की शिकायतें दर्ज की गईं लेकिन आयोग ने सब रद्द कर दीं। चुनाव आयोग के विरुद्ध तो ममता बनर्जी ने उसी रोज आवाज उठाई थी जब आयोग ने बंगाल में आठ चरणों में मतदान करवाने की घोषणा की थी। उनका कहना था कि आठ चरणों में मतदान बीजेपी की मदद के लिए आयोजित किया गया है। पता नहीं इस आरोप में कितना सत्य है। परंतु यह स्पष्ट है कि इस प्रकार आठ चरणों में मतदान से स्वयं प्रधानमंत्री को और बीजेपी कार्यकर्ताओं को एक चुनावी रणभूमि से दूसरी रणभूमि में चुनाव प्रचार का व्यापक समय मिल गया।

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इतना ही नहीं, स्वयं प्रधानमंत्री की ओर से चुनाव प्रचार को हर प्रकार से ध्रुवीकरण का रूप देने की खुली चेष्टा हो रही है। प्रधानमंत्री स्वयं जय श्रीराम का उदाहरण देकर हिंदू वोट बैंक को बीजेपी के पक्ष में एकजुट कर रहे हैं। उधर, जब ममता ने मुस्लिम वोट को बंटने से रोकने की बात की तो मोदी जी ने ममता पर मुस्लिम तुष्टीकरण का इलजाम लगाया। यह तो वही बात है कि मीठा-मीठा गप-गप, कड़वा-कड़वा थू-थू। अर्थात इस देश में हिंदू वोट बैंक की राजनीति तो हो सकती है परंतु मुसलमानों के पक्ष में एक वाक्य भी सांप्रदायिकता है।

आप इन बातों से स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि इस समय बीजेपी ने ममता बनर्जी को चारों ओर से एक चक्रव्यूह में घेर रखा है। एक तो स्वयं प्रधानमंत्री एवं उनके कमांडर अमित शाह बीजेपी एवं संघ की संपूर्ण सेना के साथ ममता बनर्जी के विरूद्ध चुनावी रणभूमि में पूरी शक्ति के साथ उतरे हुए हैं। बीजेपी की ओर से बंगाल में चुनाव में अपार धन पानी की तरह बहाया जा रहा है। फिर चुनाव से कोई एक माह पहले सुवेंदु अधिकारी जैसे ममता के सिपहसालारों को अमित शाह ने ईडी एवं सीबीआई के बल पर तोड़ा, उससे स्पष्ट है कि ममता के खिलाफ पूरा सरकारी तंत्र लगा दिया गया है। चुनाव आयोग के बारे में तो उल्लेख हो ही चुका है। फिर केंद्रीय सुरक्षा बलों का रोल भी संदिग्ध है। परंतु ममता बनर्जी केंद्र के हर वार का मुकाबला डटकर कर रही हैं। इतना ही नहीं, अपनी सद्बुद्धि से वह बीजेपी की रणनीति की बहुत सफल काट करने में भी सक्षम हैं।

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जैसा कि पिछले लेखों में लिख चुका हूं कि भाजपा की आक्रामक रणनीति एवं प्रधानमंत्री तथा अमित शाह के आक्रामक तेवरों को ममता बंगाल पर गुजरातियों के आक्रमण के स्वरूप को बंगाली अस्मिता पर एक आक्रमण का स्वरूप देने में सफल हैं। मोदी जी हर चुनाव को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का रूप देकर चुनाव जीतने की रणनीति का सफल प्रयोग करते हैं। ममता ने इस चुनावी रणनीति का पलटवार कर बंगाल चुनाव को बंगाली पहचान पर गुजराती आक्रमण का रूप देकर बंगाल में एक नया ध्रुवीकरण उत्पन्न कर दिया है। वह जय श्रीराम का नारा जिसका प्रयोग बीजेपी 1990 के दशक से कर रही है, तो ममता की पार्टी उसके खिलाफ जय दुर्गा का नारा लगाकर उसकी काट कर रही है। इसी प्रकार उन्होंने बीजेपी की आक्रामक हिंदुत्व रणनीति को बंगाली सभ्यता पर आक्रमण का रूप दे दिया है। इस ध्रुवीकरण में बंगाल का मारवाड़ी और बिहारी मतदाता तो बीजेपी के साथ लग रहा है परंतु बंगाल की अधिसंख्य जनसंख्या बढ़ते ध्रुवीकरण के बीच ममता को अपना कमांडर समझ उनकी पार्टी के पक्ष में एकजुट होती जा रही है। इस प्रकार बंगाल का चुनाव दो प्रकार के ध्रुवीकरण के बीच एक घमासान हो गया है और इस घमासान में ममता को बढ़त लग रही है।

परंतु जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया कि बंगाल में बीजेपी ने साम, दाम, दंड, भेद- यानी हर चीज का प्रयोग कर अपनी संपूर्ण ताकत झोंक दी है। ऐसे में बंगाल में मतगणना के रोज केवल चुनावी नतीजे ही सामने नहीं आएंगे बल्कि जाहिर है कि उस रोज देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के भविष्य का फैसला भी होगा। बंगाल अब यह तय करेगा कि इस देश में आने वाले समय में लोकतंत्र का स्वरूप क्या होगा। यही कारण है कि यूं तो चुनाव चार प्रदेशों और एक यूनियन टेरिटरी में हो रहे हैं परंतु सारे देश की निगाहें बंगाल पर लगी हैं। अब देखें कि मई के पहले हफ्ते में मोदी बनाम ममता घमासान का क्या नतीजा होता है।

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