विचार

बिना सोचे-समझे लिए गए फैसले मास्टरस्ट्रोक नहीं होते / आकार पटेल

किसी भी महत्वपूर्ण मामले पर फैसला लेने और योजना तैयार करने वाले लोगों को न केवल इसका अनुमान लगाना चाहिए था, बल्कि घबराने के बजाय इसके संभावित नतीजों का विस्तार से आंकलन भी करना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ, तो फिर यह कैसा मास्टरस्ट्रोक!

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अमेरिका कहता है कि कारोबार के मामले में दुनिया उसे लूट रही है और अब उसे इसका मुआवजा चाहिए। इस लूट का कारण है कि महंगे डॉलर के चलते अमेरिका दूसरे देशों को उतना माल निर्यात नहीं करता है जितना वह आयात करता है। और, डॉलर तो स्थाई तौर पर मजबूत ही है क्योंकि पूरी दुनिया इसी करेंसी का इस्तेमाल करती है और इसकी मांग लगातार बनी रहती है। ऐसे में अमेरिका अब अधिकांश देशों के साथ अपना कारोबार कम करने को मजबूर हुआ है, इनमें उसके सहयोगी देश भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी घरेलू कंपनियों को छूट दी है और अपनी करेंसी को जानबूझकर कृत्रिम तौर पर सस्ता रखा है।

इसके अलावा अमेरिका दुनिया की सुरक्षा के लिए विश्व भर में फैले अपने सैन्य ठिकानों के रखरखाव पर अरबों डॉलर खर्च करता है और युद्धों में शामिल रहता है। दुनिया को अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नए सीमा शुल्क को बिना किसी प्रतिशोध के स्वीकार करके और अमेरिका से रक्षा उपकरणों सहित अधिक चीज़ें खरीदकर अमेरिका को हिसाब चुकता करना चाहिए। उन्हें अमेरिकी कारखानों में भी निवेश करना चाहिए या वे सीधे अमेरिकी खजाने में पैसा भेज सकते हैं।

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मोटे तौर पर यही योजना है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया के सामने रखा है और कहा है कि हिसाब चुकता करो। यह सही है या नहीं, और सच या या नहीं, यह अलग मुद्दा है। अमेरिकी व्यापार घाटे को उसके बजट घाटे और बेतहाशा खर्च से जोड़ा जाता है, जिसके लिए दूसरे देशों से पूंजी की जरूरत होती है ताकि इस अंतर को कम किया।जा सके।

आखिर दुनिया ने तो अमेरिका से नहीं कहा था कि वह अपनी सीमाओं के बाहर अपने सैन्य ठिकाने स्थापित करे। अमेरिका किस पर हमला करे और किसकी हिफाजत करे, इसके लिए कोई वैश्विक जनमत संग्रह तो हुआ नहीं है। अमेरिका तो ये सब खुद ही करता है। लेकिन ये सब अलग मुद्दे हैं। जो मुद्दा है वह यह है कि : क्या किसी महत्वपूर्ण मामले पर एक सक्षम योजना को अक्षमतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सकता है?

और यह निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण मामला है। टैरिफ योजना का लक्ष्य विनिर्माण को फिर से अमेरिका में वापस लाना है; चीन पर निर्भरता से अलग करना या कम करना; साथ ही डॉलर के सापेक्ष मूल्य को कम करना, जबकि रिजर्व मुद्रा के रूप में इसकी स्थिति को बनाए रखना; टैरिफ से अरबों डॉलर इकट्ठा करना जो कर कटौती पर खर्च किए जाएंगे; और बजट को संतुलित करना। संक्षेप में अमेरिका को फिर से महान बनाना। यह एक गंभीर मामला है और इसके लिए गंभीर स्तर की योजना और क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

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अफसोस की बात है कि अमेरिकी टैरिफ योजना में कई रुकावटें, यू-टर्न और रियायतें सामने आई हैं - ये सभी ऐसी घटनाओं के कारण मजबूरी में लिए गए फैसले हैं जिनकी आलोचकों ने भविष्यवाणी की थी। इस सबका नतीजा अराजकता है। अमेरिकी व्यापार नेटवर्क को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी को भी वास्तव में यह पता नहीं है कि किसी भी दिन टैरिफ के साथ सटीक स्थिति क्या है।

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कांग्रेस में निर्वाचित सदस्यों के सामने पेश हो रहे हैं और उन्हें नहीं पता कि जिन मुद्दों पर वे सवाल उठा रहे हैं, उन्हीं मुद्दों पर व्हाइट हाउस में यू-टर्न हो चुका है। ट्रेजरी सेक्रेटरी (वित्त मंत्री) द्वारा दिए गए बयान वाणिज्य मंत्री के बयानों से अलग हैं। ट्रम्प ने टाइम पत्रिका को बताया कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्हें बातचीत के लिए बुलाया है, जाहिर तौर पर अस्थिरता से दो चार हो रहे बाजारों में माहौल शांत करने के लिए। लेकिन चीन ने तुरंत एक बयान जारी कर बताया कि यह झूठ है और बाजार फिर से लुढकने लगे।

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किसी भी सक्षम योजना में यह माना जाता है कि लक्षित राष्ट्र जवाबी कार्रवाई करेंगे। 24 अप्रैल को वाशिंगटन पोस्ट ने एक हेडलाइन छापी जिसमें लिखा था, 'चीन द्वारा दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंधों से अमेरिकी एजेंसियां ​​चिंतित।' रिपोर्ट में कहा गया है कि 'सैन्य ड्रोन, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक कार और बहुत कुछ बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दुर्लभ पृथ्वी निर्यात पर चीन के प्रतिबंधों ने संघीय एजेंसियों में चिंता पैदा कर दी है।'

निशाना बनाए जाने वाले लोगों की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई से किसी को क्यों ‘चिंता’ होनी चाहिए, जब तक कि वे अपने फैसलों के नतीजों के बारे में न सोचें? ऐसे महत्वपूर्ण मामले पर योजना तैयार करने वाले लोगों को न केवल इसका अनुमान लगाना चाहिए था, बल्कि घबराने के बजाय इसके संभावित नतीजों का विस्तार से आंकलन भी करना चाहिए था।

जैसे-जैसे पागलपन सामने आया है, यह भी स्पष्ट नहीं है कि अंतिम उद्देश्य क्या है। यदि उद्देश्य वास्तव में मुक्त व्यापार है, तो विनिर्माण कम लागत वाले देशों से अमेरिका में कैसे स्थानांतरित होगा? यदि आईफोन, जूते, कपड़े, स्टील और सेमी-कंडक्टर का विनिर्माण अमेरिका में वापस लाया जाता है और आयात कम किया जाता है, तो टैरिफ से बहुत अधिक कमाई नहीं होगी और घाटा बना रहेगा। इस दृष्टिकोण के माध्यम से दोनों समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता है। यदि उद्देश्य चीन से अलग होना है क्योंकि यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका से आगे निकलने के लिए तैयार है, तो बातचीत के लिए उसके सामने गिड़गिड़ाने का क्या मतलब है?

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ये ऐसे सवाल हैं जो ये सब शुरू होने से पहले ही पूछे जाने चाहिए थे। ये सवाल उन आलोचकों को छोड़कर किसी ने नहीं पूछे जिन्हें अमेरिका को फिर से महान बनने से रोकने के लिए नफरत करने वाले या राष्ट्र-विरोधी करार दिया गया।

जिस प्रश्न से हमने शुरुआत की थी, उस पर वापस आते हैं, तो इसका उत्तर है नहीं। किसी महत्वपूर्ण मामले पर सक्षम योजना का अक्षमतापूर्वक क्रियान्वयन संभव नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि गंभीरता से बनाई गई कोई भी योजना परिणामों, विशेष रूप से नकारात्मक परिणामों का पूर्वानुमान लगाती है और उसे पूर्वानुमानित भी करना चाहिए। अमेरिका जैसा लापरवाह रवैया न केवल क्रियान्वयन पर दिखता है, जो सभी मोर्चों पर घटिया ही दिखता है।

इसका मतलब है कि इसे बनाने में बहुत कम सोच-विचार किया गया है और इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया है कि यह उम्मीद के मुताबिक काम नहीं करेगा और शायद नाकाम भी हो सकता है।

यह घटिया काम और घटिया सोच है जो क्रियान्वयन की अव्यवस्था के माध्यम से वास्तविक समय में सामने आई है। क्या इसे मास्टरस्ट्रोक कहेंगे!

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