प्रधानसेवक जी को देश की चिंता रहती है और मुझे उनकी! मेरी चिंता यह है कि बेचारे दो लाख तैंतीस हजार रुपये की मामूली सी तनख्वाह में अपना अकेले का खर्च कैसे चलाते होंगे? गूगल जी बताते हैं कि प्रधानसेवक जी को मासिक वेतन और भत्ते के रूप में कुल 2.33 लाख रुपए मिलते हैं। एक आदमी जो 18-18 घंटे बिना थके, एक भी दिन अवकाश लिये बगैर पिछले ग्यारह साल से 'देश की सेवा' करता ही जा रहा है, मान ही नहीं रहा है, वह इतनी मामूली सी तनख्वाह से भी संतुष्ट है, जबकि वह चाहे तो पांच करोड़ रुपए महीना भी ले तो कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती मगर नहीं लेते क्योंकि वह झोलेवाला है, फकीर है!
उधर कॉरपोरेट की नौकरी करनेवाले एमबीए पास लड़के-लड़कियों को देखो, पहले साल से ही बीस-तीस लाख रुपये तक वार्षिक वेतन उठाने लगते हैं! अब आप कहोगे कि जितनी सुविधाएं प्रधानसेवक जी को मिलती हैं, इन्हें दिला दीजिए, तो ये दो लाख क्या एक लाख से भी कम वेतन लेंगे! ऐसे भी हैं, जो दस हजार रुपए मासिक वेतन पर भी तैयार हो जाएंगे और ऐसे भी हैं, जो एक पैसा नहीं लेंगे, उल्टे पांच लाख रुपए महीने देने को तैयार हो जाएंगे! और कुछ तो भैया ऐसे भी हैं कि इन सुविधाओं और इस पद के बदले पचास करोड़ रुपए महीने देने को तैयार हो जाएंगे! अगर ठीक से सौदेबाजी की जाए तो इस पद और इन सुविधाओं के बदले पांच सौ करोड़ रुपए मासिक देने को तैयार अरबपति भी मिल जाएंगे!
Published: undefined
बहरहाल हम आज की बात करें। यह वेतन प्रधान सेवक जी की जरूरतों को देखते हुए वास्तव में बहुत कम है, ऊपर से इस पर इनकम टैक्स भी लगता है। ठीक है कि बंगला फ्री है, हवाई यात्रा फ्री है, दवा-दारू फ्री है, बिजली-पानी फ्री है, मगर खर्चे और भी तो होते हैं! बताया जाता है कि प्रधान सेवक जी इस तनख्वाह में से अपने खाने का खर्च भी उठाते हैं! जो शख्स देश के 81 करोड़ लोगों के लिए पांच-पांच किलो अनाज का हर महीने प्रबंध करता है, जो इतना बड़ा दानी-महादानी है, उसे अपने खाने के पैसे खुद खर्च करने पडें, प्रभु यह कैसी विडंबना है!
सुनते हैं, प्रधानसेवक जी बहुत अच्छे मेहमाननवाज भी हैं। अगर यह खर्च भी उन्हें खुद अपनी जेब से उठाना पड़ता है, तब तो यह उनके साथ सरासर अन्याय है। चलो मान लो उनके साथ यह अन्याय नहीं होता होगा, देश यह अन्याय सह लेता होगा, मगर प्रधानसेवक जी को देश की सेहत की रक्षा के लिए अपनी सेहत का पल-पल पर खयाल रखना पड़ता है। तगड़ी खुराक लेनी पड़ती है। सूखे मेवे, फल, जूस और न जाने क्या-क्या खाना-पीना पड़ता है! कहते हैं कि देश के हित में उन्हें तीस हजार रुपए किलो का मशरूम खाने का व्रत भी लेना पड़ा है। मान लो, वे हर रोज केवल सौ ग्राम भी खाते होंगे तो 90 हजार रुपए तो हर महीने मशरूम पर ही खर्च हो जाते हैं।बीस-तीस हजार और कुछ खाने-पीने पर भी! एक लाख दस-बीस हजार तो खाने पर ही खर्च हो जाते हैं!
Published: undefined
फेशियल आदि का खर्च फिलहाल छोड़ दें तो उनके कपड़ों का खर्च बहुत भारी है। प्रधानमंत्री नहीं, प्रधान सेवक होने के नाते उन्हें दिन में पांच से छह बार कपड़े बदलने पड़ते हैं और एक बार पहना हुआ कपड़ा उनसे दुबारा नहीं पहना जाता। चलिए सुविधा के लिए रोज छह ड्रेस के औसत को हम पांच और पांच के औसत को भी घटाकर चार कर देते हैं। उनकी सादी से सादी ड्रेस भी पचास हजार रुपए से कम में क्या आती होगी!
तो दिन की चार ड्रेस के हिसाब से केवल उनके कपड़ों का दैनिक खर्च दो लाख रुपए है यानी साठ लाख रुपए महीना है और महीने में अगर इकतीस दिन हुए तो खर्च दो लाख रुपए और बढ़ जाता होगा! चूंकि वह अपने को ईमानदार आदमी मनवाते हैं, तो इतना खर्च बेचारे कहां से करते होंगे? मान लिया कि वह आज प्रधानमंत्री हैं तो उधार देने वाले भी तैयार रहते होंगे, मगर किसी दिन वह झोला उठाकर चल दिए (जिसकी अफवाह आजकल उड़ रही है) तो उधार देने वाले सावधान हो जाएंगे। उनके गले पड़ जाएंगे कि साहेब जी झोला उठाकर तो हम आपको तब जाने देंगे, जब आप पहले हमारा हिसाब साफ करो। उसके बाद आप चाहे कहीं जाओ- हिमालय जाओ या केदारनाथ की गुफा में वास करो या जहन्नुम में जाओ मगर उधार लौटाए बगैर आप यहां से हिल भी नहीं सकते!
Published: undefined
एक संभावना यह भी है कि उधार न लेते हों, उनका अपना कोई व्यवसाय हो, जिससे हर महीने लाखों की आमदनी होती हो! प्रधानमंत्री तो खुली किताब हैं, जिसमें यह पन्ना नहीं मिलता! लगता यही है कि उनका एक ही व्यवसाय है और वह है- प्रधानमंत्रीगीरी करना। आमदनी तो इससे भी अरबों-खरबों की हो सकती है, मगर आदमी ईमानदार टाइप के दिखना चाहते हैं। वे अडानी को तो ठेके पर ठेके दे सकते हैं मगर अपना भला नहीं कर सकते! बांड या म्यूचुअल फंड खरीदने के लिए भी कुछ बचत चाहिए मगर वह होती नहीं!
तो फिर क्या उनकी पार्टी उनका यह शौक पूरा करती है? वह कर सकती है क्योंकि पिछले 11 साल में वह इसे देश की सबसे बड़ी और सबसे अमीर पार्टी बना चुके हैं मगर चूंकि संघ से आए हैं, चाल, चरित्र और चेहरे वाले हैं तो पार्टी के पैसे को छूना भी पाप समझते होंगे! एक संभावना यह है कि उनका यह खर्च अडानी-अंबानी उठाते होंगे। वे उठा तो सकते हैं मगर ये बेचारे तो खुद भी बार-बार कपड़े नहीं बदलते तो ये क्यों देते होंगे हर महीने इतना पैसा!
Published: undefined
फिर क्या, कैसे करते होंगे बेचारे? अभी तो फिर भी लोकतंत्र सा कुछ-कुछ है तो इसका संतोषजनक उत्तर सेवक जी दे सकते है, ताकि उनके 'उज्जवल चरित्र' पर कोई ऊंगली न उठाए। जिसकी छाती छप्पन इंच की है, उसके लिए यह कठिन नहीं होना चाहिए मगर कोई उनकी छाती के इंच मापे तो!
एक और नन्हा सा प्रश्न है कि पिछले ग्यारह वर्षों से कुछ अधिक समय में इकट्ठा हो चुकी हजारों पोशाकों का आखिर क्या हुआ? ये प्रधानमंत्री निवास में कहीं जमा हैं या बेच दी गई हैं? थोड़ा सा प्रकाश इस पर भी पड़ जाए तो लोकतंत्र का दस ग्राम खून बढ़ जाएगा!
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined