संसद में अमित शाह ने बताया, बताया क्या फरमाया और फरमाया भी क्या, फैसला सुनाया और फैसला भी क्या सुनाया, नफरत की आग लगाई कि शरणार्थी कौन है और घुसपैठिया कौन? मोदी-शाह-संघ एंड कंपनी की बहुत सीधी-सरल-एकरेखीय परिभाषा है कि जो हिंदू पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से यहां बसने आए, वे शरणार्थी हैं और मुसलमान, दुनिया में कहीं से आएं, वे घुसपैठिये हैं।
भाजपाई-संघी किसी भी तरह की जटिलता-फटिलता, संविधान-फंविधान के चक्कर में नहीं पड़ते, भगवत-कृपा से बस दो दूनी, चार और चार दूनी, आठ होते हैं, इतना जानते हैं। आठ दूनी, सोलह होते हैं, यह जानने का कष्ट भी नहीं उठाते। गुरुजी इनसे कह गए हैं कि बच्चों, चार दूनी आठ जिसने सीख लिया, समझो, वह सच्चा हिंदू बन गया। इससे ज्यादा जिसने सीखा, बर्बाद हो गया- गांधी, नेहरू, अंबेडकर, मौलाना आजाद बन गया ! इसलिए समय बर्बाद मत करो, हिंदुत्व की सेवा करो, मुसलमानों से नफरत करना सीखो और सिखाओ। ऐसा न करना हिंदू राष्ट्र के मार्ग को बाधित करने के षड़यंत्र में शामिल होना है।
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इनके पास न ज्यादा दिमाग है, न इसकी इन्हें जरूरत है। इन्होंने विद्यार्थी काल में नकल मारकर परीक्षा पास की है या अपने सर्वोच्च नेता के अनुकरण-अनुसरण में फर्जी डिग्री ली है। इसलिए बात ये वेद- पुराण की करेंगे मगर इनकी शक्ल तक इन्होंने नहीं देखी। बात गीता की करेंगे, मगर परीक्षा पास करने के लिए जिन्होंने गाइडबुक तक पढ़ना 'हिंदू गौरव' के विरुद्ध माना, वे गीता कैसे और क्यों पढ़ेंगे? इसके अलावा दुनिया में इनके पढ़ने के लिए कुछ है भी नहीं। इसलिए इनकी बुद्धि उनहत्तर साल की उम्र में भी चौथी फेल छात्र जितनी है। यही वजह है कि दुनिया की हर समस्या के हल का इनके पास एक ही फार्मूला है- हिंदू -मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान! अब कुछ 'विकास' करके ये भारत-बांग्लादेश, भारत-अफगानिस्तान तक भी पहुंचे हैं।
मोदीजी जिस 'विकास' की बात करते हैं, वह विकास यही है।अब कोई इसे देखने से इनकार करे और कहे कि मोदीजी ने कोई विकास नहीं किया तो इसमें न मोदीजी की गलती है, न विकास की।वह सच कहते हैं कि (इस दिशा में) इतनी त्वरित गति से विकास 70 साल में भी नहीं हुआ! और तो छोड़ो, अटलजी भी नहीं कर पाए वरना मोदीजी को हाथ पर हाथ और पैर पर पैर रखे बैठे रहना पड़ता। उनकी सारी ड्रेसें बर्बाद हो जातीं! उनकी भाषणकला का कचरा हो जाता, प्रधानमंत्री होना अर्थहीन हो जाता, अब कम से कम अर्थव्यवस्था समेत देश में बर्बाद करने के लिए बहुत कुछ है!बर्बाद करने का भी अपना एक आनंद है, जो ये कश्मीर के बाद अब असम में उठा रहे हैं। खुद गाय का दूध पी रहे हैं और जनता को अपनी मूर्खता का गोबर परोस रहे हैं।
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1925 से आज तक दुनिया भले मानती हो कि वह कहां से कहां पहुंच गई है, भले बड़े-बड़े बुद्धिजीवी कहते हों कि उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा मगर इन्हें अंग्रेजकृत हिंदू-मुस्लिम नफरत फार्मूले से सब समझ में आ जाता है। आर्थिक मंदी हो, बेरोजगारी हो, किसानों की आत्महत्या हो, पर्यावरण प्रदूषण हो, फार्मूला एक है- हिंदू -मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान!
घुसपैठियों की खोज करने का प्रयास पहले असम में हुआ, अब असम सहित पूरे देश में करना चाहते हैं, जबकि घुसपैठिये ये खुद हैं। कहींं जाने की जरूरत नहीं थी, संविधान-कानून में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं थी, किसी नागरिकता रजिस्टर की जरूरत नहीं थी। हमारी मेहनत की कमाई का एक पैसा खर्च करने की अनिवार्यता नहीं थी, किसी का कोई दस्तावेज खंगालने, किसी का धर्म, जाति, देश, नागरिकता प्रमाणपत्र जांचने की आवश्यकता नहीं थी।
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आज असली घुसपैठिये ही शरणार्थी और घुसपैठिये की धर्म के आधार पर नई परिभाषा लेकर सामने आए हैं और बहुमत लेकर संसद में बैठे हैं और देश जला रहे हैं। मंत्री-मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बनने के लिए ये शपथ लेते हैं कि “मैं संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं बिना भय और पक्षपात, अनुराग और द्वेष के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुरूप न्याय करूंगा”, मगर कर वही रहे हैं, जो संविधान के विपरीत है। अंबेडकर पूजनीय हैं, उनका बनाया संविधान हत्या-योग्य है। गांधी की समाधि पर गमगीन चेहरा लेकर जाएंगे और गोडसे की भक्तन को संसद में बैठाएंगे।
संविधान में घुसपैठ करने वाले, स्वतंत्रता संग्राम का विरोध करने वाले, अब शरणार्थी और घुसपैठिया का अंतर बता रहे हैं! इनकी तरफ कहीं हमारा ध्यान न चला जाए, इसलिए ये शोर मचा रहे हैं। वह कहानी तो आपने सुनी ही होगी, जब चोर ही चोर पकड़ने वालों की भीड़ में घुसकर चोर-चोर कह रहा था। ये उसी के असली वंशज हैं। भले डीएनए परीक्षण करके देख लो!
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