विचार

ट्रंप ने मोदी को सौगात नहीं, कई टास्क सौंपकर विदा किया

मीडिया को बयान देने का समय आया तो टेलीप्रॉम्प्टर की जरूरत पड़ी, मोदी ने ट्रंप के प्रति आभार जताया, हालांकि उसमें चापलूसी का भाव ज्यादा दिखा। इस दौरान उन्होंने 2030 तक भारत-अमेरिका व्यापार कारोबार दोगुना कर 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का भी वादा किया।

ट्रंप ने मोदी को सौगात नहीं, कई टास्क सौंपकर विदा किया
ट्रंप ने मोदी को सौगात नहीं, कई टास्क सौंपकर विदा किया फोटोः सोशल मीडिया

नरेन्द्र मोदी की टीम जब व्हाइट हाउस में दाखिल हुई, वाशिंगटन के मानकों के अनुसार तापमान 9 डिग्री सेल्सियस था। प्रधानमंत्री मोदी के साथ विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल भी मौजूद थे जिन्हें शायद अब अमेरिका प्रवेश की अनुमति मिल गई है। एनएसए को कनाडाई-अमेरिकी वकील और खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नून पर भारतीय एजेंटों द्वारा कथित हत्या के प्रयास के लिए न्यूयॉर्क अदालत से सम्मन का सामना करना पड़ रहा था।

20 जनवरी को पद की शपथ लेने के बाद से पिछले तीन उदाहरणों के विपरीत- जब इजरायल और जापान के प्रधानमंत्रियों और जॉर्डन के शाह ने उनसे मुलाकात की थी- डॉनल्ड ट्रंप मोदी की अगवानी के लिए पोर्टिको में नहीं थे, जब उनकी काली, बुलेट-प्रूफ लिमोजिन वहां पहुंची। वह उनसे एक हॉल में मिले जहां- सहज माना जा सकता है कि मोदी अपने ‘प्रिय मित्र’ को गले लगाने से खुद को नहीं रोक सके।

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हाथ मिलाने, गले मिलने, ओढ़ी हुई खुशियों और तारीफों के साथ वे राष्ट्रपति के ड्राइंग रूम की एक चिमनी के सामने बैठ गए। आगे क्या होने वाला है, इसका एकमात्र संकेत ट्रंप की टिप्पणी से मिला कि “हमारे पास बात करने के लिए कुछ बड़ी चीजें हैं। वे (भारत) हमारा बहुत सारा तेल और गैस खरीदने जा रहे हैं... हम व्यापार के बारे में बात करने जा रहे हैं; हम कई चीजों के बारे में बात करेंगे।”

इस वार्ता से पहले ट्रंप ने सभी व्यापारिक साझेदारों पर पारस्परिक आयात शुल्क की घोषणा की। उन्होंने कहा, “मैं पारस्परिक शुल्क लगाऊंगा, यानी जो भी देश संयुक्त राज्य अमेरिका पर शुल्क लगाते हैं, हम उनसे शुल्क लेंगे- जो दुनिया के सबसे अमीर देश से ‘युद्धोत्तर परोपकार’ के समापन का संकेत है।

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भारत एशिया में अमेरिका के शीर्ष पांच व्यापारिक साझेदारों में से भले नहीं है, उसे दिक्कत तो महसूस होगी; पारस्परिक रूप से स्वीकार्य व्यवस्थाओं पर बातचीत करने के लिए उसके पास 1 अप्रैल तक का समय है। ‘रॉयटर्स’ के अनुसार, विश्व व्यापार संगठन के हवाले से अमेरिकी व्यापार-भारित औसत टैरिफ दर लगभग 2.2 प्रतिशत रही है जबकि भारत की 12 प्रतिशत है; ट्रंप की पारस्परिकता की धमकी यह असंतुलन रद्द करने का संकेत भी है।

अपनी बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में ट्रंप ने भारत को “सर्वाधिक टैरिफ चार्ज करने वाला” और “व्यापार करने के नजरिये से एक मुश्किल स्थान” बताया। उनकी किताब में, भारत को व्यापार अधिशेष का आनंद लेने का कोई अधिकार नहीं है जो 2024 में लगभग 46 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। उन्होंने संकेत दिया कि भारत द्वारा “कई अरब डॉलर” के एफ-35 स्टील्थ लड़ाकू विमानों सहित अमेरिकी रक्षा उपकरणों के खरीदने से यह कम हो जाएगा।

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उन्होंने भारतीयों के टैरिफ में कटौती और एक “समान अवसर” की मांग की, भले ही मोदी सरकार अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करके पहले ही झुक गई दिख रही हो। टैरिफ कटौती की घोषणा 1 फरवरी को पेश किए गए 2025-26 के केन्द्रीय बजट में की गई थी।

ट्रंप ने यह भी खुलासा किया कि अमेरिकी कंपनियां छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर बेचेंगी- जो कि मोदी शासन द्वारा भारत के परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 के लिए नागरिक दायित्व में संशोधन द्वारा सुविधा प्रदान की जाएगी- और दोनों देश कृत्रिम बुद्धिमत्ता और भारत मध्य पूर्व यूरोप कॉरिडोर (आईएमईईसी) जैसे क्षेत्रों में सहयोग करेंगे।

पश्चिम एशिया में मौजूदा अस्थिरता को देखते हुए, इसकी आर्थिक व्यवहार्यता का सवाल तो छोड़ ही दें, आईएमईईसी के जल्द क्रियान्वयन की संभावना नहीं है। विशेष रूप से तब, जबकि ट्रंप और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस महीने की शुरुआत में व्हाइट हाउस में मिले चुके हैं, जब वे ईरान के प्रति हमलावर रुख अपनाए हुए थे। सच तो यह है कि ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत की भागीदारी अमेरिकी प्रतिबंधों को न्योता देने का कारण बन सकती है।

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चीन के सवाल पर ट्रंप का कहना था कि उसके साथ उनके देश के रिश्ते “बहुत अच्छे” हैं और वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के “बहुत करीब” हैं। अब ट्रंप भारतीय हितों की अनदेखी करते हुए अगर चीन के साथ कोई समझौता करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से नई दिल्ली में इसे चिंता के तौर पर देखा जाएगा लेकिन मोदी को ट्रंप से यह आश्वासन भी मिला कि वह ‘क्वाड’ (चीन को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका-जापान-भारत-ऑस्ट्रेलिया गठजोड़) से मुंह नहीं मोड़ेंगे। इस वर्ष के अंत में भारत में आयोजित क्वाड शिखर सम्मेलन में भी उनका भाग लेने का कार्यक्रम है।

मीडिया को बयान देने का समय आया तो टेलीप्रॉम्प्टर की जरूरत पड़ी, मोदी ने ट्रंप के प्रति आभार जताया, हालांकि उसमें चापलूसी का भाव ज्यादा दिखा कि वह ट्रंप के नारे ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (एमएजीए) से कितने प्रेरित थे, उन्होंने अनायास ही ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ (एमआईजीए) का संकल्प दिखाया और एमएजीए और एमआईजीए के बीच ‘मेगा साझेदारी’ बनाने की कल्पना की। उन्होंने 2030 तक भारत-अमेरिका व्यापार कारोबार दोगुना कर 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का भी वादा किया।

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प्रकृति के विपरीत मोदी ने पत्रकारों के कुछ सवालों के जवाब भी दिए। अमेरिका में भारत के अवैध प्रवासियों के सवाल पर तो उन्होंने फैसलाकुन अंदाज में कहा कि “उन्हें अमेरिका में रहने का कतई कोई अधिकार नहीं है”। उन्होंने आगे कहा, “हम उन्हें वापस लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।” उन्होंने इस समस्या के लिए मानव तस्करी में लिप्त गिरोहों को जिम्मेदार ठहराया। अमेरिकी अधिकारियों द्वारा निर्वासित लोगों की पहली खेप को हथकड़ी और जंजीरों में जकड़कर वापस भेजने के मसले पर नाराजगी जताने जैसा कोई संकेत भी उनकी बातों में नहीं दिखा।

तमाम लोगों की उम्मीदों के विपरीत ट्रंप ने घाव पर नमक भले नहीं छिड़का लेकिन अमेरिकी सैनिक विमान से वापस भेजे गए भारतीयों की तस्वीरें उनके ‘अमेरिका फर्स्ट’ वाले आधार के साथ खड़ी दिखाई दीं। यह देखना अभी बाकी है कि निर्वासितों की भारत वापसी के खेल में आगे भी उनका वैसा ही रवैया कायम रहता है या नहीं। जब मोदी से पूछा गया कि क्या उन्होंने अपने मित्र और व्यवसायी गौतम अडानी जो अमेरिका में रिश्वतखोरी के आरोपों का सामना कर रहे हैं, का मामला (अपने दूसरे मित्र) ट्रंप के सामने उठाया है, तो वह भड़क गए। उन्होंने गुस्से में जवाब दिया, “कोई चर्चा नहीं हुई।”

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मोदी की यात्रा के पूर्वावलोकन में, यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. डैनियल मार्की ने कहा कि ट्रंप ने मोदी को आमंत्रित नहीं किया; मोदी ने एक बैठक की मांग की थी और जिसे हरी झंडी मिल गई। वाशिंगटन के कूटनीतिक हलकों में इस पर कुछ इस तरह चर्चा हो रही है, मानो मोदी चीन की एक दुकान में एक उग्र सांड के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके उस दावे से कोसों दूर की बात है कि ‘डोलैंड’ उनके एक ‘प्यारे दोस्त’ हैं।

ट्रंप भारत के रूस के साथ गैर-डॉलर मूल्यवर्ग के व्यापार पर नाखुश दिखे तो ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) द्वारा अपनी विस्तारित सदस्यता के साथ समूहिकता दिखाने पर भी खासी नाखुशी दिखाई। दरअसल वह ब्रिक्स को ‘बंद’ होते देखना चाहते हैं और धमकी दी है कि “अगर उसने (ब्रिक्स) कोई खेल खेला तो” 100 प्रतिशत टैरिफ थोप देंगे।

इरादे यहीं खत्म नहीं होते। ट्रंप चाहेंगे कि मोदी आई2यू2 (इजरायल-भारत-अमेरिका-संयुक्त अरब अमीरात) गठबंधन पर अपनी लाइन पर रहें और अपने पसंदीदा अब्राहम समझौते (इजरायल और अरब देशों के बीच) का विस्तार करने में सक्रिय भूमिका निभाएं जिसमें सऊदी अरब को इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने को प्राथमिकता दी जाए। अब तक, सउदी ने फिलिस्तीनी राज्य की पूर्ति के आधार पर तेल अवीव के साथ संबंधों को सामान्य बना लिया है।

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‘अमेरिका फर्स्ट’ रखने की अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप, ट्रंप को इसकी कोई परवाह नहीं है कि उच्च प्रौद्योगिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर सहयोग से भारत को सीमित लाभ होगा; उनका मतलब सिर्फ उस भूमिका से है जो अमेरिका को चीन से प्रतिस्पर्धा में मदद करने के लिए भारत निभाने वाला है।

साफ है कि भारत को जो टास्क अमेरिका ने सौंपे हैं, उन्हें पूरा किए जाने की उसे उम्मीद है। वैसे, ट्रंप ने पाकिस्तानी-कनाडाई तहव्वुर राणा पर मुकदमा चलाने के लिए उसके भारत प्रत्यर्पण की पुष्टि कर दी है। राणा 24/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के सिलसिले में वांछित है और उस पर पाकिस्तानी-अमेरिकी लश्कर-ए-तैयबा कार्यकर्ता डेविड कोलमैन हेडली का सहयोगी होने का आरोप है।

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