विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: पीएम मोदी ने देश सेवा का जो विश्व रिकॉर्ड कायम किया है, उसे टूटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है!

वैसे प्रधानमंत्री जी का हर काम देश की सेवा की श्रेणी में आता है। सुबह-सुबह जागना। नित्यकर्म करना। नाश्ता करना, लंच और डिनर करना। रोज छह बार कपड़े पहनना-उतारना। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

एक दिन घर में पड़े-पड़े ठंड को कोसते हुए यह ख्याल आया कि हमारा देश बहुत बड़ा है तो क्या हुआ, देश की सेवा करनेवाले भी कितने सारे और कितने बड़े- बड़े लोग हैं! ठंड हो या गर्मी, खुशी हो या गम, मां मरे या बाप, देश की सेवा से एक घंटे भी मुंह नहीं मोड़ते‌‌! शायद ही किसी देश में इतने और ऐसे सेवाभावी उपलब्ध हों! उनके जीवन का बस एक ही लक्ष्य है - अहर्निश सेवा! किसी न किसी की, किसी न किसी बहाने सेवा! सेवा ही उनका कर्म है, सेवा ही धर्म, सेवा ही मर्म। सेवा के सिवाय कुछ नहीं! 

इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो स्वयं हमारे माननीय प्रधानमंत्री  हैं! उन्हें कुछ और सूझता ही नहीं। वह अपनी सेवा करवाते हैं ताकि देश की सेवा जोर-शोर से कर सकें! वे एक साल में कम से कम भी सेवा करते हैं तो आफिशियली 20×365=7300 घंटे करते हैं! मानते ही नहीं। एक बार तो ममता बनर्जी को सलाह देनी पड़ी कि आज तो महोदय, आपको उद्घाटन स्थगित कर आराम कर  लेना चाहिए था मगर जिसके सामने, देशसेवा का लक्ष्य हो, वह आराम करके देश को शर्मिंदा नहीं कर सकता!

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इस  तरह उन्होंने देश सेवा का जो विश्व रिकॉर्ड कायम किया है, वह इक्कीसवीं सदी में तो शायद ही कोई तोड़ पाए! कुछ विशेषज्ञों का कहना है, बाइसवीं और तेइसवीं सदी तक तो तोड़ा ही नहीं जा सकेगा! चौबीसवीं सदी की गारंटी लेने को वे तैयार नहीं मगर मैं तैयार हूं!

वैसे प्रधानमंत्री जी का हर काम देश की सेवा की श्रेणी में आता है। सुबह- सुबह जागना। नित्यकर्म करना। नाश्ता करना, लंच और डिनर करना। रोज छह बार कपड़े पहनना-उतारना ।रोज नए कपड़ों का आर्डर देना, फैशन डिजाइनर से प्रतिदिन और आवश्यक हो तो प्रतिक्षण विचार- विमर्श करना। हवाई जहाज तक जाना, उसमें बैठना, स्वयं सीट बेल्ट बांधना। सिर पीछे करना। मन हो तो लेटना। भाषण देना, शिलान्यास करना। नफ़रत की मिकदार बढ़वाना, धनवानों का धन बढ़वाना। चार घंटे सोना। एक जान, एक देश, फिर भी सेवा करने की ऐसी चिंता! गजब भाई, गजब!

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कुछ लोगों की राय है कि अगर वे दिन में कम से कम आठ घंटे सोया करें तो इससे बड़ी सेवा देश की कुछ और हो नहीं सकती। और अगर बीस घंटे सो सकें और बाकी दो घंटे आलस्य दूर करने में व्यतीत कर सकें और शेष दो घंटे बाकी नैसर्गिक काम करने में खर्च करें तो उनका नाम देशसेवा के मामले में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा! मैं इससे असहमत नहीं, बशर्ते कि अमित शाह जी भी इस काम में उनका पूरा -पूरा सहयोग करें। और वे बेचारे करते भी हैं। वैसे भले ही उनके पीछे चलें मगर मोदी जी का सहयोग करने में वे कभी पीछे नहीं रहते! अगर आदित्यनाथ भी देश की सेवा के लिए यही कठिन व्रत ले लें तो बाकी से तो देश की जनता स्वयं निबट लेगी!

 अब ये तो हुए प्रधानमंत्री यानी हमारे प्रधान सेवक द्वारा देश की जा रही देश सेवा की एक झलक, ट्रेलर। फिर न जाने कितने उनके मंत्री हैं। हो सकता है, सबके नाम वे भी नहीं जानते हों!नाम जानते होंगे तो उनका मंत्रालय नहीं जानते होंगे। हो सकता है कुछ के बारे में वह यह निश्चित रूप से नहीं जानते होंगे कि ये पिछले मंत्रिमंडल में थे या इस मंत्रिमंडल में हैं! इन मंत्रियों को मौका नहीं मिलता होगा, तो भी ये सेवा करते होंगे क्योंकि जो एक बार बीजेपी की राजनीति आ जाता है, वह चाहे नफ़रत की सेवा करे मगर करता अवश्य है! सेवा के अलावा वह कोई और काम कर ही नहीं सकता!

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फिर इतने सारे भाजपाई मुख्यमंत्री हैं और उनके इतने सारे मंत्री भी हैं! फिर सांसदों और विधायकों की पूरी फौज है। अगर इस फौज को चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर तैनात कर दिया जाए तो ये चीन को बीजिंग तक और पाकिस्तान को इस्लामाबाद तक पीछे हटाकर आ जाएं और प्रधानमंत्री इजाज़त दें तो वहां भी सेवा कार्य आरंभ कर दें!

फिर भूतपूर्व सांसद, विधायक और मंत्री भी हैं। हार गए इसका मतलब ये तो नहीं कि ये देश सेवा करना भूल चुके हैं। इनमें देशसेवा का ऐसा भयंकर जज्बा है कि इनमें से हरेक प्रधानमंत्री बन कर ही देश की सेवा करना चाहता  है! फिर स्थानीय निकाय हैं। पंचायतें हैं। उनके जीते और हारे हुए सदस्य हैं। 

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राजनीति से बाहर भी देश सेवक ही देश सेवक हैं। अफसर, अफसरी करके देश सेवा करते हैं और उसमें कोई कमी रह जाती है तो फिर राजनीति में आकर  सेवाकार्य आरंभ कर देते हैं। हर अंबानी-अडाणी देश का सेवक है क्योंकि वह देश का 'विकास' कर रहा है। हर छोटा-मोटा व्यापारी भी 'समाज सेवक' है। हर धर्म, हर जाति, हर संप्रदाय, हर पंथ, हर उपजाति के अपने सेवक हैं, जो इस कारण देशसेवक भी हैं। फिर माफिया भी नेताओं और अफसरों के पूर्ण सहयोग से देशसेवा करते हैं। बल्कि माफिया ही अब नेता हैं, मंत्री हैं‌। रेत माफिया की सेवाओं का लाभ आज  हर पार्टी की हर सरकार उठाती है। प्रधानमंत्री भी जानते हैं कि रेत माफिया खत्म हो गया तो समझो देश का विकास रुक गया, देशसेवा का मार्ग बाधित हो गया! 

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मैं जानबूझकर किसानों-मजदूरों आदि की बात नहीं कर रहा हूं क्योंकि ये देश सेवा कैसे कर सकते हैं, ये तो पेट सेवा ही करते हैं! अधिक से अधिक ये किसी योग्य हो सकते हैं तो आतंकी, नक्सली, खालिस्तानी हो सकते हैं! अधिकतर किसानों-मजदूरों को तो पता भी नहीं कि देशसेवा कुछ होती है और वे जो कर रहे हैं, खेती या मजदूरी, पेट भरने के अलावा भी कुछ है। इसलिए मैं सेवकों की श्रेणी में इन्हें शामिल नहीं कर रहा हूं। वैसे भी जिस देश में राजनीति, धर्म, समाज आदि की सेवा करने वाले टाप टू बाटम सभी हों, वहां किसानों-मजदूरों द्वारा की जा रही सेवा का महत्व भी क्या?

 ‌‌जिस देश में हर दूसरा-तीसरा आदमी सेवक है, उस देश के हर नागरिक को तो इतना अधिक आराम मिलना चाहिए था कि उसे ऊंगली हिलाने की जरूरत भी पड़नी नहीं चाहिए थी पर पता नहीं क्यों लोग आदत से लाचार हैं , दिनभर मजदूरी-किसानी करते रहते हैं!

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