आज 2 अक्टूबर है-गांधी जयंती। ड्रामेबाज जी आज सुबह से शुरू हो गए होंगे। शायद चरखा चलाकर दिखाएं और बड़ा मार्मिक टाइप भाषण भी दें! जो आज तक नहीं किया, शायद ऐसा भी कुछ करें! ड्रामे को जमाए रखने के लिए ऐसे टोटके वे करते रहते हैं। उनके बहुत से 'भक्त' ऊपर से संकेत पाकर गोडसे की जय- जयकार भी कर रहे होंगे। कुछ श्रद्धालु जीव, हाय-हाय कर रहे होंगे कि आज गांधी होते तो ये होता और ये नहीं होता!
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पहली बात तो यह है कि फलां हो और फलां न हो, इसके लिए कोई अनंत काल तक जिंदा नहीं रह सकता! चाहे बकरी का दूध पिए या ऊंटनी का! और मान लो, गांधी जी आज होते तो भी कुछ नहीं होता। उनकी सुनता कौन, छापता कौन, टीवी चैनल दिखाता कौन? वे डायरी लिखते, तो जब्त कर ली जाती! वैसे गांधी जैसा दुनियाभर की चिंता करने वाला आदमी इतने साल जिंदा रहना चाहता तो भी जिंदा नहीं रह सकता था! नाथूराम गोडसे नामक हत्यारा उन्हें मार नहीं पाता तो शायद कुछ साल और जी जाते। सवा सौ साल जीने की उनकी इच्छा तो पहले ही मर चुकी थी!
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और जी जाते, तो बस इतना होता कि वे आज 153 वर्ष के हो जाते। उनका सारा ध्यान सेहत पर होता। 150 वां वर्ष पार कर चुकने पर पौने दो सौ वर्ष जीने की इच्छा उनमें जागती! पौने दो सौ वर्ष के हो जाते तो दो सौ का स्कोर बनाने पर उनकी निगाह होती! वे बेमतलब जीते चले जाते! हो सकता है, हालात इतने ख़राब हो चुके होते कि उन्हें सरकारी पेंशन पर गुजारा करना पड़ता मगर पिछले आठ वर्षों में वह भी बंद हो चुकी होती! उनके बनाए आश्रम, उनकी पहुंच से दूर हो चुके होते। वहां उनका प्रवेश निषिद्ध होता! यह भी संभव था कि सरकार गांधी- मंदिर बना देती, जहां लोग महात्मा गांधी को नहीं, 153 साल के अजूबे को देखने जाते! दस हजार की टिकट लेने पर गर्भगृह में जाकर उनके दर्शन और चरण स्पर्श की सुविधा होती। पांच हजार में ठीक बाहर से और एक हजार में उनके दर्शन दूर से सुलभ होते। जब मोदी जैसा प्रधानमंत्री हो, तो गांधी जी को इस ज़लालत से बचाने का कोई उपाय न होता। जो इसके विरुद्ध अदालत जाता, उसे न्यायालय का कीमती समय बर्बाद करने की सजा मिलती। तगड़ा जुर्माना लगता। वह देने मना करता तो जेल जाता!
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गांधी के पुराने प्रशंसक भी उनका साथ छोड़ देते। कहते कि यह हमारा महात्मा गांधी नहीं है।वह तो लगता है कभी का मर चुका है। यह तो गांधी की चलती-फिरती लाश है। इससे बेहतर तो वे तभी मर जाते तो आज दुनिया उन्हें याद तो करती! लोग उन्हें राष्ट्रपिता उनके प्रति आदरभाव के कारण नहीं बल्कि उनका मज़ाक उड़ाने के लिए कहते! युवाओं को वे कहीं दिख जाते तो वे कहते कि देखो, देखो, राष्ट्रपिता जी आ रहे हैं। नमस्कार राष्ट्रपिता जी! अरे, महाराज आप तो जीते ही चले जा रहे हो! बहुत हो चुकी आपकी यह राष्ट्रपिताई, इसे अब सरसंघचालक जी को सौंपकर परलोक रवाना होओ! गांधीजी मुस्कुरा देते। कोई-कोई उनसे यह कहता कि ऐ बुढ़ऊ, यह लंगोट टाइप धोती क्या पहने हुए हो, क्या तुम्हारा कोई नहीं, जो तुम्हें ढंग की एक धोती भी खरीद कर दे सके? और ये क्या फालतू- सा पुराने ढंग का चश्मा पहन रखा है? फेंको इसे। इतना कह कर वे खुद इसे फेंक देते! ऊपर से यह कहते, देश को बदनाम करने का यह षड़यंत्र अब सहन नहीं होगा! सुधर जाओ वरना पाकिस्तान से तुम्हें बहुत प्रेम है न, वहां टिकट कटा कर भेज देंगे। कोई उनकी लाठी खींच कर उन्हें गिरा देता। कोई दया दिखाकर उन्हें उठाकर, सड़क किनारे बैठा देता, रिक्शावाले को बुला देता तो घर चले जाते वरना अगले दिन खबर छपती कि एक बुजुर्ग की सड़क दुर्घटना में मृत्यु! उसे अभी तक पहचान नहीं जा सका है! लगता है मुसीबत का मारा कोई गरीब है। उसके शरीर पर मात्र एक लंगोटी है और चोर बाजार से खरीदी एक प्राचीन सी कमर घड़ी! सिर गंजा और पैरों में सस्ती चप्पल है।
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यह भी संभव है कि यह जान कर कि यहां गांधी रहते हैं, नये गोडसे उनके घर में घुस जाते और छाती में गोलियां दाग कर चले जाते और उन हत्यारों का कभी पता नहीं चलता या कहें कि चलने नहीं दिया जाता। यह भी हो सकता है कि हत्यारे खुद इसका विडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देते। फिर भी उन्हें पकड़ा नहीं जाता!
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गांधी जी को मारा नहीं जा सका होता तो संभव है अर्बन नक्सल होने के आरोप में वह जेल काट रहे होते। चार दिन हल्ला मचता, फिर सब शांत हो जाता! किसी सुबह जेल से उनकी मौत की खबर आती। चार लोग उन्हें कंधा देने के लिए आगे आते तो उन्हें भी नक्सली होने के आरोप में बंद कर दिया जाता। आधी रात को पुलिस के पहरे में उनकी अंत्येष्टि कर दी जाती। उनकी राख-हड्डियों तक छूने नहीं दी जातीं! उन्हें गायब कर दिया जाता!
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अच्छा हुआ कि वे हैं नहीं आज। समय से कूच कर गए, करा दिए गए। कम से कम उनके हत्यारे का नाम तो हमें मालूम है,यह तो ज्ञात है कि किसने 'गांधी-वध' कहकर उस हत्या का जश्न मनाया था और वे आज कहां से कहां पहुंच चुके हैं! और आज खुशी भी वही मना रहे हैं, श्रद्धांजलि भी वही दे रहे हैं !
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