विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: जब एक दिन अचानक 'भारत माता की जय' वाले हमारे घर आए

'दोपहर का वक्त है। बाहर चिलचिलाती धूप है। हम आपको अपना समझ थोड़ी देर के लिए यहां आये हैं। पसीने से तरबतर हैं। थके हुए हैं। सोचा आपके घर कुछ देर विश्राम कर लें, फिर आगे बढ़ें। एतराज हो तो चले जाएं!' पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर  फोटो: सोशल मीडिया

भारत माता की जय वाले एक दिन अकस्मात हमारे घर आए। उन्होंने नमस्ते किया। हमने भी किया। उन्होंने मुसकुरा कर पूछा- 'आप कैसे हैं? पहचाना आपने? हम फलां के फलां के फलां के फलां लगते हैं। याद आया कुछ? लगता है भूल गए। खैर, कोई बात नहीं। शहरी आदमी ऐसे ही होते हैं। समय आने पर अपने बाप को भी नहीं पहचानते। मैं आपकी बात नहीं कर रहा हूं। आप तो बेहद भले और प्यारे इंसान हैं। भूल गये होंगे। हो जाता है कभी-कभी। अच्छा एक निवेदन है। दोपहर का वक्त है। बाहर चिलचिलाती धूप है। हम आपको अपना समझ थोड़ी देर के लिए यहाँ आये हैं। पसीने से तरबतर हैं। थके हुए हैं। सोचा आपके घर कुछ देर विश्राम कर लें, फिर आगे बढ़ें। एतराज हो तो चले जाएं!'

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मन में दुविधा थी मगर सोचा कि  वाकई किसी के कुछ होंगे। थोड़ी देर आराम की ही तो बात है! हम कहते हैं, 'ठीक है। आप आराम कीजिए। चाय-वाय, ठंडा-वंडा कुछ लेंगे?' वह कहते हैं- 'नहीं। तकलीफ़ क्यों करते हैं? पीया न, पानी, अभी। फिर भी आपका आग्रह है तो कुछ ठंडा ले लेंगे। वैसे हम तो इस तरह के इनसान हैं कि प्रेम से कोई जहर भी पिला दे तो पी लेते हैं। हमसे मना नहीं किया जाता। आप भोजन करने की कहेंगे तो भी हम मना नहीं कर पाएंगे। किसी का दिल दुखाना हमें आता नहीं। आप तो जानते हैं, हम फकीर आदमी हैं। जहाँ जाते हैं, झोली फैला देते हैं। दो तो भला, न दो तो भी भला!

घंटे भर बात करके और दो घंटे आराम करने के बाद वह कहते हैं, 'अच्छा आपका धन्यवाद। अब हम चलते हैं। आज यहां आए हैं तो बहुत से काम  निबटाने हैं। आज रात ही लौटना भी है। आपकी अनुमति हो तो अपना सामान यहां रख दें? कहां लिये-लिये घूमेंगे? शाम को आकर ले जाएंगे। देर हो गई और भोजन तैयार हुआ और आपने अनुरोध किया तो कर लेंगे वरना हमारा क्या है? झोला उठाकर चल देंगे। कोई तो भूखे को रोटी खिला ही देगा। ठीक है, अब जाते हैं। नमस्कार।'

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शाम को वह फिर आते हैं। खाना खाते हैं। आराम की मुद्रा अपनाते हुए कहते हैं, क्षमा करें आप, इतने काम थे कि निबट नहीं पाए। आज जाने का सिलसिला बन नहीं रहा। इस शहर में आपके अलावा हमें कोई जानता भी नहीं। आप अनुमति दें तो बाहर के कमरे में मतलब आपके ड्राइंग रूम में रात्रि विश्राम कर लें? संकोच हो तो साफ बता दें। सुबह सामान लेकर निकल जाएंगे। काम हो न हो, चले ही जाएंगे।

 इजाजत लेने के चक्कर में न पड़कर अगली सुबह वे नाश्ता लेकर, सामान फिर वहीं छोड़कर चले गए। शाम को आए। कहा- 'क्या बताएं, आज भी काम नहीं हुआ। पता नहीं कैसे लोग हैं यहाँ के। काम करके देते ही नहीं। अगर आपको कठिनाई न हो तो एक रात की बात और है। हम तो आपके ड्राइंग रूम में सो जाते मगर सोफे पर सोने की हमारी आदत नहीं रही और जमीन पर सोया नहीं जाता। गेस्ट रूम जैसा कुछ हो तो वहाँ पड़ रहेंगे। कल तक तो काम हो ही जाएगा। तकलीफ़ तो होगी आपको मगर एक दिन और हमें बर्दाश्त कर लीजिए, प्लीज़। सुबह नाश्ता करके फौरन यहां से निकल जाएंगे।'

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शाम को आते हैं। कहते हैं, 'हम तो फंस गए भाई आपके शहर में। हम सीधे सादे, साधु आदमी। दंदफंद जानते नहीं। हरामखोर, हमारा छोटा सा काम करके भी राजी नहीं। अब एक दिन और रुकना पड़ जाएगा। शर्म तो आ रही है आपको तकलीफ़ देते हुए। पैसा होता तो कहीं ठहर जाते- होटल या धर्मशाला में। आज और रुक जाएं तो चलेगा न? प्लीज़। आपका गेस्ट रूम कुछ जम नहीं रहा। पता नहीं क्यों वहाँ ठीक से नींद आई नहीं। आपके बेडरूम में आज सो जाएं,  तो चलेगा?'

उनकी नीयत पर शक  होता है। फिर भी सोचते हैं, चलो हो जाता है कभी -कभी। नहीं आई होगी नींद। उधर काम भी अटक गया होगा, बेचारे का। इतना सहा है तो एक दिन और सही मगर बेडरूम नहीं देंगे। सोयें या जाएं। इतने में वह बोल पड़ते हैं: 'वैसे आपकी बीवी या बिटिया, उसी कमरे में, उसी पलंग पर  सोना चाहें तो हमें आपत्ति नहीं। हमसे दूसरों का कष्ट नहीं देखा जाता। खासतौर से नारी जाति का। हम तो ब्रह्मचारी आदमी ठहरे। हम तो हर स्त्री को माता का रूप देखते हैं। चाहे वह किसी की पत्नी हो, माँ हो, बहन हो, बेटी हो। हमसे कभी किसी को कोई खतरा नहीं रहा।'

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 यह तो हद हो गई। गुस्से से हम कांप रहे थे पर हमसे पहले हमारी बीवी और बेटियां चीख उठीं: 'निकल हरामजादे। दया करके तुझे शरण दी तो तू अब हमारे बेडरूम तक बढ़ आया है? अब हमारी बगल में सोना चाहता है? हमें अपने साथ सुलाना चाहता है? तेरी ये हिम्मत? निकल अभी यहां से। नहीं तो हम तुझे इतने जूते मारेंगी कि तेरे सिर में एक बाल भी नहीं बचेगा। हाथ-टाँग सब तोड़कर तेरे हाथ में दे देंगी। भाग कमीने।'

अपनी यह गत बनते देख और लोगों को इधर आता देख, वह जोर-जोर से 'भारत माता की जय, भारत माता की जय' का नारा लगाने लगा। जो शोर सुनकर आए, उनसे भी कहा- 'बोलिए, भारत माता की जय'। इतने लोग, इतनी तरह से 'भारत माता की जय' बोलने लगे कि हमारी चीख-पुकार उसमें दब गई। किसी ने नहीं सोचा कि यह कौन और क्या है, जो रात के समय इनके घर में 'भारत माता की जय' बुलवा रहा है? इस प्रकार भारत माता को जय दिलाकर वह दरिंदा V का निशाना बनाते हुए  खिसकने लगा। इसी बीच कह गया कि फिर से भारत माँ की जय कराने आऊंगा। चार और लोगों को साथ लाऊंगा। आसुरी शक्तियों से निबटने के लिए हम 'भारत माता की ऐसी जय जयकार ' करेंगे कि तुम जैसे देशद्रोही, अपने आप पाकिस्तान चले जाओगे। इस घर में 'भारत माता की जय 'बोलना तक मना है! हद है! बोलो सब ,फिर से 'भारत माता की जय'। और जोर से बोलो, 'भारत माता की जय'। पाकिस्तान तक 'भारत माता की जय ' की आवाज जानी चाहिए, उनके कान फट जाने चाहिए!'

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