विचार

डिजिटल इंडिया और डिजिटल भुगतान के नारे के बीच इंटरनेट बंदी के विश्वगुरु

हमारे, प्रजातंत्र की माँ वाले और अमृतकाल में डूबे देश में सरकारी तौर पर किस कदर अभिव्यक्ति की आवाज और विरोधियों के स्वर कुचलने के लिए इंटरनेट बंदी को घातक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, इसका सटीक आकलन इस रिपोर्ट से होता है।

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

प्रधानमंत्री मोदी भले ही भारत को प्रजातंत्र की माँ बताते हों, सबका साथ सबका विकास की बातें करते हों, विकसित भारत का नारा देते हों – पर सच तो यह है कि बहुत सारे मामलों में हम हरेक निरंकुश, तानाशाह और सैन्य सत्ता के समकक्ष नजर आते हैं। इंटरनेट बंदी के मामले में भारत लगातार 6 वर्षों तक पहले स्थान पर रहने के बाद वर्ष 2024 में पहली बार म्यांमार के बाद दूसरे स्थान पर रहा है। इस संदर्भ में हम वाकई विश्वगुरु हैं और कोई भी प्रजातंत्र हमारे आसपास भी नहीं पहुंचता। हाल में ही इंटरनेट के सभी मामलों पर पैनी नजर रखने वाली न्यूयॉर्क स्थित संस्था, एसेस नाउ, के अनुसार वर्ष 2024 के दौरान दुनिया के कुल 54 देशों में इंटरनेट बंदी के 296 मामले दर्ज किए गए। इसमें से इंटरनेट बंदी के सर्वाधिक, 85 मामले, सैन्य सत्ता वाले म्यांमार में दर्ज किए गए, जबकि दूसरे स्थान पर 84 मामलों के साथ भारत है। भारत में कुल 16 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में इंटरनेट बंदी की गई। इसमें से सर्वाधिक यानि 21 मामले मणिपुर में दर्ज किए गए, जहां की खबरों को सत्ता किसी भी कीमत पर दबाना चाहती है। इसके बाद हरियाणा और जम्मू और कश्मीर का स्थान है जहां 12-12 मामले दर्ज किए गए।

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भारत में इंटरनेट बंदी के 41 मामले सत्ता के विरोध की आवाज को दबाने के लिए और 23 मामले धार्मिक हिंसा को रोकने के नाम पर किए गए। हमारे, प्रजातंत्र की माँ वाले और अमृतकाल में डूबे देश में सरकारी तौर पर किस कदर अभिव्यक्ति की आवाज और विरोधियों के स्वर कुचलने के लिए इंटरनेट बंदी को घातक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, इसका सटीक आकलन इस रिपोर्ट से होता है। वर्ष 2024 में कुल 84 इंटरनेट बंदी के साथ दूसरे स्थान पर भारत के बाद महज 21 इंटरनेटबंदी के मामलों के साथ तीसरे स्थान पर पाकिस्तान है, जो पिछले वर्ष लगातार दमनकारी नीतियों के कारण चर्चित रहा। चौथे स्थान पर तानाशाह शासन वाला देश रूस है, जहां इंटरनेटबंदी महज 13 बार की गई।

वर्ष 2024 में इंटरनेटबंदी कुल 54 देशों में की गई, देशों की यह संख्या वर्ष 2016 के बाद से सबसे अधिक है। एसेस नाउ, वर्ष 2016 से लगातार वैश्विक स्तर पर इंटरनेटबंदी का लेखा-जोखा प्रकाशित करता रहा है। इंटरनेटबंदी का मुख्य कारण निरंकुश सत्ता द्वारा विरोध के स्वर दबाने, मानवाधिकार हनन और जनता के दमन को छुपाने और आन्दोलनों को कुचलने के लिए किया जाता है। कभी-कभी चुनावों के समय की खबरों को छुपाने के लिए और परीक्षाओं के समय भी इसका उपयोग किया जाता है। एसेस नाउ के अनुसार वर्ष 2024 के दौरान भारत समेत कुल 8 देशों ने ही चुनावों के दौरान इंटरनेटबंदी की। ऐसे देशों में आज़रबाइजान, कोमोरोस, भारत, मॉरिटानिया, मोज़ाम्बिक, पाकिस्तान, युगांडा और वेनेजुएला शामिल हैं।

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एक विचित्र तथ्य यह है कि वर्ष 2014 के बाद से सत्ता में काबिज बीजेपी सरकार हरेक सरकारी सुविधा और योजनाएं ऑनलाइन कर चुकी है, या फिर करने की प्रक्रिया में है और यही सरकार इंटरनेट बंदी के सन्दर्भ में भारत को विश्वगुरु बना चुकी है। हमारे प्रधानमंत्री जी इंटरनेट की 5-जी सेवा बड़े तमाशे से शुरू करते हैं, इसे देश की उपलब्धि बताते हैं, बताते है कि इससे फ़िल्में कितने सेकंड में अपलोड हो जाएंगी – पर इंटरनेट सेवा बंद करने का ख़याल भी सबसे अधिक उन्हीं को आता है। हमारे देश में न्यायालयों के आदेशों की धज्जियां कैसे खुले आम उड़ाई जाती हैं यह उसका सबसे बड़ा उदाहरण भी है। सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2020 में कहा था कि इंटरनेट सेवा नागरिकों का मौलिक अधिकार है और बिना किसी उचित कारण के इसे ठप्प नहीं किया जा सकता है, और ना ही अनिश्चित काल के लिए यह सेवा कहीं प्रतिबंधित की जा सकती है। पर, सरकारें लगातार ऐसा ही कर रही हैं।

हमारा देश दुनिया के उन चुनिंदा 35 देशों में शामिल है जो मोबाइल इंटरनेट सेवा भी प्रतिबंधित करते हैं। हमारे देश में वर्ष 2012 से 2022 के बीच 683 बार इंटरनेट बंदी की गई है जो दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। वर्ष 2022 के पहले 6 महीनों के दौरान पूरी दुनिया में किए गए इंटरनेट बंदी के मामलों में से 85 प्रतिशत से अधिक अकेले भारत में थे।

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इंटरनेट बंदी से सबसे अधिक प्रभावित समाज का सबसे गरीब वर्ग होता है। इससे रोजगार की सभावनाएं धूमिल पड़ जाती हैं, बैंकिंग सुविधा में व्यवधान पड़ता है, राशन की सुविधा प्रभावित होती है और बुनियादी सुविधाएं जनता की पहुँच से दूर हो जाती हैं। हमारे देश में किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे अधिक इंटरनेट बंदी की जाती है, जिसे अधिकतर विशेषज्ञ गैर-कानूनी बताते हैं और एक खतरनाक परम्परा भी। इंटरनेट बंदी को भारत में पुलिस तंत्र का एक अभिन्न अंग बना दिया गया है, जिसका सरकार के विरोध या प्रदर्शन की आशंका के समय सबसे पहले इस्तेमाल किया जाता है। भारत को छोड़कर पूरी दुनिया में इंटरनेट बंदी किसी भी सरकार के लिए सबसे अंतिम कदम होता है।

हमारे देश में इंटरनेट बंदी चुनावों, आंदोलनों, धार्मिक त्योहारों और यहाँ तक कि परीक्षाओं के नाम पर भी की जाती है। पर, आज तक कोई भी अध्ययन यह नहीं बता पाया है कि इंटरनेट बंदी का कोई भी असर क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर पड़ता है। जाहिर है इंटरनेट बंदी का उपयोग हमारे देश में सत्ता द्वारा जनता के विरुद्ध एक हथियार के तौर पर किया जा रहा है, एक ऐसा हथियार जिसकी आवाज नहीं है पर निशाना अचूक है। भारत में इंटरनेट बंदी के 41 मामले सत्ता के विरोध की आवाज को दबाने के लिए और 23 मामले धार्मिक हिंसा को रोकने के नाम पर किए गए। हमारे, प्रजातंत्र की माँ वाले और अमृतकाल में डूबे देश में सरकारी तौर पर किस कदर अभिव्यक्ति की आवाज और विरोधियों के स्वर कुचलने के लिए इन्टरनेट बंदी को घातक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, इसका सटीक आकलन इस रिपोर्ट से होता है। वर्ष 2024 में कुल 84 इंटरनेट बंदी के साथ दूसरे स्थान पर भारत के बाद महज 21 इन्टरनेटबंदी के मामलों के साथ तीसरे स्थान पर पाकिस्तान है, जो पिछले वर्ष लगातार दमनकारी नीतियों के कारण चर्चित रहा। चौथे स्थान पर तानाशाह शासन वाला देश रूस है, जहां इन्टरनेटबंदी महज 13 बार की गई।

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वर्ष 2024 में इन्टरनेटबंदी कुल 54 देशों में की गई, देशों की यह संख्या वर्ष 2016 के बाद से सबसे अधिक है। एसेस नाउ, वर्ष 2016 से लगातार वैश्विक स्तर पर इन्टरनेटबंदी का लेखा-जोखा प्रकाशित करता रहा है। इन्टरनेटबंदी का मुख्य कारण निरंकुश सत्ता द्वारा विरोध के स्वर दबाने, मानवाधिकार हनन और जनता के दमन को छुपाने और आन्दोलनों को कुचलने के लिए किया जाता है। कभी-कभी चुनावों के समय की खबरों को छुपाने के लिए और परीक्षाओं के समय भी इसका उपयोग किया जाता है। एसेस नाउ के अनुसार वर्ष 2024 के दौरान भारत समेत कुल 8 देशों ने ही चुनावों के दौरान इन्टरनेटबंदी की। ऐसे देशों में आज़रबाइजान, कोमोरोस, भारत, मॉरिटानिया, मोज़ाम्बिक, पाकिस्तान, युगांडा और वेनेजुएला शामिल हैं।

एक विचित्र तथ्य यह है कि वर्ष 2014 के बाद से सत्ता में काबिज बीजेपी सरकार हरेक सरकारी सुविधा और योजनाएं ऑनलाइन कर चुकी है, या फिर करने की प्रक्रिया में है और यही सरकार इंटरनेट बंदी के सन्दर्भ में भारत को विश्वगुरु बना चुकी है। हमारे प्रधानमंत्री जी इन्टरनेट की 5-जी सेवा बड़े तमाशे से शुरू करते हैं, इसे देश की उपलब्धि बताते हैं, बताते है कि इससे फ़िल्में कितने सेकंड में अपलोड हो जाएंगी – पर इंटरनेट सेवा बंद करने का ख़याल भी सबसे अधिक उन्हीं को आता है। हमारे देश में न्यायालयों के आदेशों की धज्जियां कैसे खुले आम उड़ाई जाती हैं यह उसका सबसे बड़ा उदाहरण भी है। सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2020 में कहा था कि इंटरनेट सेवा नागरिकों का मौलिक अधिकार है और बिना किसी उचित कारण के इसे ठप्प नहीं किया जा सकता है, और ना ही अनिश्चित काल के लिए यह सेवा कहीं प्रतिबंधित की जा सकती है। पर, सरकारें लगातार ऐसा ही कर रही हैं।

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हमारा देश दुनिया के उन चुनिंदा 35 देशों में शामिल है जो मोबाइल इंटरनेट सेवा भी प्रतिबंधित करते हैं। हमारे देश में वर्ष 2012 से 2022 के बीच 683 बार इंटरनेट बंदी की गयी है जो दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। वर्ष 2022 के पहले 6 महीनों के दौरान पूरी दुनिया में किए गए इंटरनेट बंदी के मामलों में से 85 प्रतिशत से अधिक अकेले भारत में थे।

इंटरनेट बंदी से सबसे अधिक प्रभावित समाज का सबसे गरीब वर्ग होता है। इससे रोजगार की सभावनाएं धूमिल पड़ जाती हैं, बैंकिंग सुविधा में व्यवधान पड़ता है, राशन की सुविधा प्रभावित होती है और बुनियादी सुविधाएं जनता की पहुँच से दूर हो जाती हैं। हमारे देश में किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे अधिक इंटरनेट बंदी की जाती है, जिसे अधिकतर विशेषज्ञ गैर-कानूनी बताते हैं और एक खतरनाक परम्परा भी। इंटरनेट बंदी को भारत में पुलिस तंत्र का एक अभिन्न अंग बना दिया गया है, जिसका सरकार के विरोध या प्रदर्शन की आशंका के समय सबसे पहले इस्तेमाल किया जाता है। भारत को छोड़कर पूरी दुनिया में इंटरनेट बंदी किसी भी सरकार के लिए सबसे अंतिम कदम होता है।

हमारे देश में इंटरनेट बंदी चुनावों, आंदोलनों, धार्मिक त्योहारों और यहाँ तक कि परीक्षाओं के नाम पर भी की जाती है। पर, आज तक कोई भी अध्ययन यह नहीं बता पाया है कि इंटरनेट बंदी का कोई भी असर क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर पड़ता है। जाहिर है इंटरनेट बंदी का उपयोग हमारे देश में सत्ता द्वारा जनता के विरुद्ध एक हथियार के तौर पर किया जा रहा है, एक ऐसा हथियार जिसकी आवाज नहीं है पर निशाना अचूक है।

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