चुनाव संपन्न कराना कोई आसान काम नहीं है, और इसमें कोई शक नहीं कि वह शानदार काम करता है, और इसके बदले उसे कोई पुरस्कार भी नहीं चाहिए, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि बहुत बार इससे गंभीर गलतियां होती हैं, और आयोग उन्हें मानने तक को तैयार नहीं होता।
बीते एक सप्ताह के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए और सोशल मीडिया पर वायरल हुए जिससे चुनाव आयोग और चुनावों की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा हुआ है। कुछ मामले के तो वीडियो उपलब्ध हैं जिन्हें आम लोगों ने अपने स्मार्ट फोन में रिकॉर्ड किया है। ऐसे ही कुछ मामले थे:
ये तो कुछ मामले हैं जो सामने आए, हो सकता और भी बहुत सारे मामले हों, जिनकी खबर सामने ही नहीं आ पाई हो। लेकिन, चुनाव आयोग इन सबसे बेपरवाह नजर आया वर्ना सामने आकर उसे कम से कम यह तो बताना ही था कि आखिर ये सब कैसे हुआ? क्या यह महज़ लापरवाही थी या फिर जानबूझकर गड़बड़ी करने की कोशिश?
हो सकता है चुनाव आयोग तर्क दे कि ये तो इक्का-दुक्का मामले हैं और इनसे चुनाव नतीजों पर असर नहीं पड़ने वाला। इनसे चिंता करने की जरूरत ही नहीं है। ठीक है, मान लिया कि इक्का-दुक्का मामले हो सकते हैं, लेकिन कम से कम चुनाव आयोग को इन सब पर सफाई तो देनी ही चाहिए, यह जिम्मेदारी तो उसी की है। इतना ही नहीं, उसे इन सब के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों या अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के बारे में बताना चाहिए। कम से कम इतना तो आम लोग उससे उम्मीद तो कर ही सकते हैं?
मान लिया कि चुनाव आयोग के बाद कोई जादुई शक्तियां नहीं है और न ही ऐसा कुछ जिसके आधार पर वह कहे कि वह तो एकमात्र विश्वसनीय संस्था है, और उससे गलतियां हो ही नहीं सकती।
ध्यान रखना होगा कि चुनाव आयोग को पैसे, चुनाव अधिकारिंयों-कर्मचारियों, चुनाव पर्यवेक्षकों, सुरक्षा, परिहवन, स्टोर, यानी लगभग हर चीज़ के लिए सरकार पर ही निर्भर रहना होता है। लेकिन फिर भी चुनाव आयोग यह मानने को तैयार नहीं है कि उसका सारा सिस्टम दोष रहित है, सरकार से जो भी लोग उसके लिए काम करने को दिए जाते हैं वे अक्षम, बेईमान और लापरवाह भी हो सकते हैं। आयोग यह मानने से भी इनकार करता है कि गलितयां तो हो ही सकती हैं। वह तो बार-बार एक ही बात कहता है कि उसने जो तौर-तरीके अपनाए हैं वह बिना किसी त्रुटि के अपनाए जाते हैं और इनमें कोई दोष है ही नहीं।
आंधी के दौरान रेत में सिर छिपा लेने वाले शतुर्मुर्ग जैसा यही रवैया है जिसके आधार पर चुनाव आयोग उन शंकाओं को खारिज करता रहा है कि चुनावों की विश्वसनीयता के साथ कुछ खास जगहों पर, कुछ खास चुनावों में और कुछ खास लोगों या गुटों द्वारा दांव पर लगाई जा सकती है।
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चुनाव आयोग तो यह भी बताने को तैयार नहीं है कि आखिर किसी विधानसभा क्षेत्र में यह सिर्फ एक बूथ पर ही ईवीएम को वीवीपैट से मिलाता है। आंकड़ों के हिसाब से देखें, तो इसका कोई अर्थ ही नहीं है। अगर वीवीपैट का मकसद पारदर्शिता सुनिश्चित करना और विश्वसनीयता कायम करना है, तो फिर कम से एक चौथाई बूथों पर तो ऐसा होना ही चाहिए, ताकि किसी को कोई शक न रहे।
लेकिन, चुनाव आयोग चाहता है कि बाकी सारी सरकारी संस्थाएं गलतियां करती हैं, लेकिन आयोग में तो किसी गलती की संभावना है ही नहीं। मानवीय गलतियां और लापरवाही या भ्रष्टाचार के मामले बैंकों, रेलवे या दूसरे सरकारी दफ्तरों से ज्यादा सामने नहीं आते। लेकिन, चुनाव आयोग तो इन सबसे अलग है, और यह तो कोई गलती या गड़बड़ी कर ही नहीं सकता।
कोई इस बात पर शक नहीं कर रहा है कि चुनाव आयोग का पूरा सिस्टम त्रुटि रहित है और सारे कामकाज के बेहतर मानकों को अपनाया जाता है। लेकिन चुनाव आयोग यह कैसे कह सकता है कि उसके सिस्टम में सेंध नहीं लग सकती? और अगर सेंध लगने की जानकारी मिलती है, तो चुनाव आयोग को ऐसे लोगों की पहचान सामने रख उनके खिलाफ जरूरी कार्रवाई करनी ही चाहिए।
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