लगता है कि हम दिल्ली के वोटर बीजेपी को लोकसभा में इसीलिए जिताते हैं कि इसे महिलाओं की दृष्टि से सबसे असुरक्षित महानगर का जो दर्जा मिला हुआ है, कहीं वह छिन न जाए! यह गौरव किसी और महानगर को न मिल जाए! दिल्ली को 2012 की भारत की 'बलात्कार राजधानी' ( रेप कैपिटल) का जो स्थान 'मेहनत 'से हासिल हुआ था, वह कायम रहे! दिल्ली में अपराध का ग्राफ ऊपर ही ऊपर रहे। नीचे न आ जाए! क्या पता किसी दिन दिल्ली 'विश्व की बलात्कार राजधानी 'बनकर दिखा दे और 'मन की बात' में इसका गौरवपूर्ण बखान हो! हो सकता है कि दिल्ली की सरकार इसका उत्सव मनाए! फलाने जी हैं तो मुमकिन है। 'अच्छे दिन' आने में देर नहीं लगती! देर हमेशा लगती है- 'बुरे दिन' आने में!
यह उस महानगर की कथा है, भाइयों-बहनों, जो देश की राजधानी भी है। यहां प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और तमाम मंत्री, उपराज्यपाल और बड़े-बड़े अफसर आदि रहते हैं। इसी शहर में उनके बड़े-बड़े बंगले हैं, यहीं उनका वह मालमत्ता है, जो अभी बाहर नहीं गया है। ये सुरक्षित हैं, इनका मालमत्ता और इनका परिवार सुरक्षित है। ये सभी महाजन-गुणीजन और सभी महामानव स्वयं को और भी अधिक सुरक्षित करने के जुगाड़ में लगे रहते हैं।
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दूसरी ओर यहां की महिलाएं, यहां की बच्चियां, यहां के जवान और बूढ़े किसी भी और महानगर की अपेक्षा सबसे असुरक्षित हैं। उनके साथ कब, कहां, कैसे, क्या हो जाए, कुछ पता नहीं। दिन में क्या हो जाए, पता नहीं, रात में क्या हो जाए, पता नहीं। जिस घर से केवल 20 मीटर दूर पुलिस थाना है, वहां के लोग भी उतने ही असुरक्षित हैं, जितने वहां से एक किलोमीटर दूर रहने वाले! यहां का मध्य वर्ग यहां की पुलिस पर भरोसा नहीं करता, अपनी सुरक्षा के लिए अपने सुरक्षा गार्ड रखता है। और गरीब तो यहां के भी भगवान भरोसे हैं! कब उनकी झुग्गी, उनके घर अवैध घोषित करके, सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा दिखाकर बुलडोजरग्रस्त कर दिए जाएं, इसका भरोसा नहीं। जीने का भरोसा नहीं, मरने का भरोसा नहीं! मरने के बाद कफन-दफन का भरोसा नहीं!
एक ही शहर है, एक ही पुलिस व्यवस्था है, एक ही गृहमंत्री है, एक ही उपराज्यपाल है और एक ही पुलिस आयुक्त है मगर कुछ इतने अधिक सुरक्षित हैं कि उनसे ज्यादा सुरक्षित दुनिया में शायद ही कोई और हो और अधिकांश इतने अधिक असुरक्षित हैं कि काम पर गई स्त्री शाम होने तक वापस न लौट पाए तो मन घबराया-घबराया सा रहता है।
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और प्रिय मित्रों, भाइयों-बहनों, यह कहानी अकेले दिल्ली की नहीं है, पूरे देश की है और पूरे देश में भी अधिकांश उन राज्यों की है, जहां बीजेपी या उसकी समर्थित सरकारें हैं। और यह कहानी किसी मोदी-विरोधी पत्रकार की रची हुई नहीं है, यह खुद सरकार ने अपने कंप्यूटर से लिखी है।यह कहानी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने अपनी 2023 की रिपोर्ट में कही है। उसी ने बताया है कि हत्या, अपहरण, दहेज़ हत्या और महिला असुरक्षा के मामले में सबसे आगे उत्तर प्रदेश है, ऩंबर दो पर बिहार है, तीसरे पर महाराष्ट्र है, चौथे पर मध्य प्रदेश है और पांचवें पर राजस्थान है और क्या आप सुधी पाठकों को यह बताने की जरूरत है कि यहां किस दल या किस गठबंधन की सरकार है? ये सब डबल-ट्रिपल इंजनों की सरकारें हैं।
सबसे दिलचस्प यह है कि जो मुख्यमंत्री लाल आंखें दिखाने में, कानून- व्यवस्था के बारे में बड़ी- बड़ी डींगें हांकने में, अपशब्दों के निरंतर प्रसार-प्रचार में सबसे आगे है, वह राज्य चलाने में सबसे गया बीता है। उसका राज्य दुर्दशा की रेस में सबसे आगे है। साइबर अपराधों में भी उसके राज्य की परफार्मेंस भी काफी 'सराहनीय' है। रेलवे में चोरी, छीना-झपटी में भी वह राज्य अग्रणी है। यह वही राज्य है, जहां फर्जी मुठभेड़ें आमतौर पर होती हैं और जहां 'बुलडोजर न्याय' सर्वसुलभ है।
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कहीं यह राज्य आगे है तो कहीं उसी पार्टी की किसी और सरकार का राज्य आगे है। जैसे बच्चों पर यौन अपराध के मामले में मोहन यादव का मध्य प्रदेश आगे है तो किसानों की आत्महत्या में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस का महाराष्ट्र का रिकार्ड काफी उज्जवल है। उत्तराखंड अपराध में तो आगे नहीं है मगर तथाकथित विकास के कारण भूस्खलन में आगे है। इतना अधिक आगे है कि उसके एक-दो जिले नहीं बल्कि पूरा का पूरा राज्य आगे है। कोई जिला रेस में सबसे आगे है तो कोई उसके ठीक पीछे है। सब एक ही लाइन लगे हुए हैं लेकिन कब कौन लाइन तोड़ कर सबसे आगे जाए पता नहीं क्योंकि मोदी सरकार को 'विकास' करना है और जब तक विनाश न हो, 'विकास' कैसे हो सकता है?
और ऐसा क्यों न हो, जब देश का प्रधानमंत्री दिन-रात अपना गुणगान करने और करवाने में व्यस्त रहता है। 18 घंटे या तो वह अपने गुण स्वयं गाता है या दूसरों द्वारा गाये गये गीतों की रिकार्डिंग सुनता है। दिन में छह बार कपड़े बदलते समय भी यही करता है। लगता है, वह इस बात का रिकार्ड भी रखता है कि आज किस मंत्री, किस मुख्यमंत्री, किस सांसद, किस विधायक ने उसकी अनुपस्थिति में उसका कितनी बार कितनी तरह से गुणगान किया। कौन आगे रहा और कौन पीछे! इसके आधार पर मंत्री आदि की योग्यता का आकलन होता है! टिकट का निर्धारण होता है!
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जो जुबान हिलाकर सरकार चलाता हो। जो इतने हजार करोड़ दूं कि उतने हजार करोड़ दूं, अच्छा चलो सवा लाख करोड़ देता हूं, इस तरह विकास की बोली लगाता हो, उसके शासन में और क्या हो सकता है? जिसका गृहमंत्री जब भी अपना मुंह खोलता है, प्रधानमंत्री की किसी न किसी ऐसी विशेषता का ज्ञान करवाता है, जिससे हास्यास्पद का कोई नया पहलू उजागर होता है। ऐसे शासन में देश इसी तरह चल सकता है और इसी तरह किसी दिन चलते-चलते बैठ भी सकता है!
जिस सरकार के मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों को सबसे ज्यादा सतर्क इसलिए रहना पड़ता है कि कहीं वे प्रधानमंत्री के बराबर या उनसे एक कदम आगे चलने की हिमाकत न कर बैठें, वहां इसके अलावा और क्या हो सकता है? जहां गालियों की बरसात करना योग्यता का सबसे बड़ा पैमाना हो, जहां वोट चोरी करना लोकतांत्रिक अधिकार हो, वहां किसे इसकी परवाह है कि जमीन पर दरअसल क्या हो रहा है?
खूब पैसा है पार्टी के पास, सरकारी खजाना भी अपना है और पूंजीपतियों की तिजोरियां भी खुली हुई हैं। चुनाव जीतने में समस्या होगी तो ये सभी थैलियां एकसाथ खुल जाएंगी। चुनाव से पहले दस-दस हजार रुपए की सौगात बांटी जाएगी और वोटर को खरीदने की कोशिश की जाएगी! जिनकी लोकतांत्रिक निष्ठा इतनी प्रबल हो, वह देश किसी भी दिन चलते-चलते बैठे सकता है।जिसे इच्छा हो, उस दिन का खुशी-खुशी इंतजार करे! शुभकामनाएं।
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