विचार

हमास ने कुछ हद तक मान तो लिया है ट्रम्प का प्रस्ताव, लेकिन क्या यह कामयाब हो पाएगा!

फिलिस्तीन के लिए ट्रम्प के शांति प्रस्ताव के केन्द्र में है पूर्ण विसैन्यीकरण और हमास को सत्ता से हटाना। कई फिलिस्तीनियों के लिए ये शर्तें आत्मसमर्पण की तरह हैं। हालांकि हमास ने इसे आंशिक तौर पर स्वीकार कर लिया है, फिर भी इसकी कामयाबी पर संदेह बना रहेगा।

3 अक्टूबर, 2025 को गाजा के उमर अल-मुख्तार स्ट्रीट पर इजरायली हमले के बाद विनाश का दृश्य। (फोटो: सईद एम. एम. टी. जरास/अनाडोलू, गेटी इमेजेज के माध्यम से)
3 अक्टूबर, 2025 को गाजा के उमर अल-मुख्तार स्ट्रीट पर इजरायली हमले के बाद विनाश का दृश्य। (फोटो: सईद एम. एम. टी. जरास/अनाडोलू, गेटी इमेजेज के माध्यम से) 

गाजा में मरने वालों की तादाद रोजाना बढ़ रही है। बेशक गाजा का स्वास्थ्य मंत्रालय उस खौफनाक आंकड़े का लेखा-जोखा रख रहा है, हम अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसी स्थिति में आधिकारिक आंकड़े हकीकत से काफी कम होते हैं। दुनिया नैतिक लकवे के शिकार इस कत्लेआम को देख रही है और नरसंहार के असली अपराधी ‘शांति योजना’ की आड़ में अल्टीमेटम जारी कर रहे हैं। फिर भी, यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि गाजा में जो लोग बच गए हैं, वे इन सबका क्या मतलब निकाल रहे होंगे। 

दुनिया आवाज उठा रही है। 12-13 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 142 के मुकाबले 10 मतों से द्वि-राष्ट्र समाधान के लिए न्यूयॉर्क घोषणापत्र का समर्थन किया, जबकि पश्चिमी देशों के एक बड़े समूह ने एक काल्पनिक फिलिस्तीन देश को ‘मान्यता’ दी। कई दशकों के दौरान ऐसा पहली बार हो रहा है जब फिलिस्तीनी देश के लिए दुनिया एक स्वर में बोल रही है। फिर भी, जब तमाम नेता इजराइल की लानत-मलामत कर रहे थे और कुछ फिलिस्तीन देश को मान्यता दे रहे थे, तब भी गाजा पर हमले बदस्तूर जारी रहे। नेतन्याहू के संबोधन के दौरान जब कई प्रतिनिधि हॉल से बाहर जा रहे थे, तब भी इजराइली नेता का रुख नरम नहीं हुआ और उन्होंने गाजा में ‘काम पूरा करने’ का इरादा जताया। 

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फिलहाल, अमेरिकी राष्ट्रपति ‘शांति योजना’ लेकर आए हैं जिसकी मंशा गाजा के शासन, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को नया रूप देना बताया जा रहा है। नेतन्याहू ने इस योजना में अहम बदलाव किए ताकि इजराइली सैनिकों की वापसी की रफ्तार धीमी रहे और सेना को गाजा पट्टी के बड़े हिस्से पर अपना कब्जा बनाए रखने में मदद मिल सके। इस योजना का मसौदा तैयार करते समय किसी भी फिलिस्तीनी, यहां तक कि किसी डमी फिलिस्तीनी से भी सलाह लेने की औपचारिकता नहीं की गई। इस योजना में गाजा के अंतरिम प्रशासन को चलाने के लिए एक ‘शांति बोर्ड’ बनाने का प्रस्ताव है, जिसके अध्यक्ष खुद ट्रंप होंगे और जिसमें पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी शामिल होंगे। इस 20-सूत्रीय योजना में एक बल की तैनाती का भी प्रावधान है जो वहां माहौल सामान्य होने तक रहेगा, हालांकि इसका विवरण अभी अस्पष्ट है।

प्रस्ताव के केन्द्र में है पूर्ण विसैन्यीकरण और हमास को सत्ता से हटाना। कई फिलिस्तीनियों के लिए ये शर्तें आत्मसमर्पण की तरह हैं। अगर हमास इस योजना को स्वीकार कर लेता है, तो भी पिछली पहलों के हश्र को देखते हुए, इसकी कामयाबी पर संदेह बना रहेगा। जमीनी स्तर पर तो संदेह और भी गहरा है। सबसे पहले इजराइली बंधकों को रिहा किया जाना है, और खास तौर पर ट्रंप की बातों की ‘विश्वसनीयता’ को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि उनकी रिहाई के बाद क्या होगा। दूसरी बात, योजना के अमल की निगरानी कैसे होगी, यह भी साफ नहीं जो यकीन पैदा करे। 

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मार्च के मध्य में जनवरी 2025 के युद्धविराम को एकतरफा खत्म करने के बाद से इजराइल की सेना ने गाजा में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है और अब गाजा शहर के आधे से ज्यादा हिस्से और गाजा पट्टी के तीन-चौथाई से अधिक भाग पर उसका नियंत्रण है। उपग्रह चित्रों और जमीनी रिपोर्टों से पता चलता है कि बफर जोन और गलियारा बनाने के लिए कैसे पट्टी के बड़े हिस्से को समतल कर दिया गया है। जो कुछ बचा है, वह है खंडहर जहां लाखों लोग अब भी फंसे हुए हैं।

खास तौर पर युद्धविराम के बाद का दौर बेहद खौफनाक रहा है। हाल के महीनों में हजारों लोग मारे गए हैं जिनमें से कई तो रसद वगैरह लेने के लिए कतार में खड़े थे। संयुक्त राष्ट्र राहत की जगह लेने के लिए शुरू किया गया सैन्यीकृत गाजा मानवतावादी फाउंडेशन (जीएचएफ) मौत का जाल है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसका दस्तावेजीकरण किया है कि कैसे सहायता काफिलों और वितरण केन्द्रों के आसपास हताश परिवारों को निशाना बनाया जाता है। एमनेस्टी ने इसे ‘शिकार को फांसने वाला फंदा’ करार दिया है।

संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग अब इस नतीजे पर पहुंचा है कि इजराइल गाजा में नरसंहार कर रहा है। 1948 के जेनोसाइड कन्वेंशन के मुताबिक, नरसंहार के जो पांच लक्षण हैं, उनमें से चार गाजा में मौजूद हैं-हत्या, गंभीर नुकसान पहुंचाना, जानबूझकर समुदाय को खत्म करने वाले हालात थोपना, और जन्म रोकने के उपाय। इजराइली नेताओं द्वारा फिलिस्तीनियों को ‘मानव पशु’ कहना और गाजा का नाम-ओ-निशान मिटा देने का आह्वान करना, नरसंहार की मंशा का सीधा सबूत माना गया। 

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ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी ऐसी ही बात दोहराई है। उसने दस्तावेजीकरण किया है कि कैसे इजराइल ने जानबूझकर फिलिस्तीनियों को पानी से वंचित रखा जिसकी वजह से हजारों लोगों की जान चली गई। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल भुखमरी को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना जारी रखे हुए है, और वह जानबूझकर तबाही लाने वाले हालात थोप रहा है। प्रमुख नरसंहार विद्वान, जिनमें से कुछ पहले इस शब्द का विरोध करते थे, अब इसपर सहमत हैं कि इजराइल नरसंहार कर रहा है। दो इजराइली मानवाधिकार समूहों ने भी यही भाषा इस्तेमाल की है, जैसा कि स्पेन सहित कई सरकारों ने की है।

इजराइल इन आरोपों को नकारता है। नेतन्याहू ने यहां तक दावा किया कि अगर इजराइल का इरादा नरसंहार का होता, तो ‘वह इसे एक ही दोपहर में कर सकता था।’ करीब दो साल से इजराइल बेखौफ होकर अंतरराष्ट्रीय कानून को हाशिये पर रख रहा है। उसने मानवीय राहत सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के बाध्यकारी आदेशों की अनदेखी की है। उसने नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के लिए आईसीसी के गिरफ्तारी वारंट को नजरअंदाज किया है; वारंट में उन पर भुखमरी का युद्ध में हथियार की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया है।  

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जहां संयुक्त राष्ट्र आयोग समेत ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय संगठन कह रहे हैं कि इजराइल नरसंहार कर रहा है, उसकी संसद ने युद्ध प्रयासों को अपने राष्ट्रीय बजट में और प्रमुखता से जगह दी है। 29 सितंबर को नेसेट ने रक्षा खर्च के लिए अतिरिक्त 9.3 अरब डॉलर को मंजूरी दी, जिससे 2025 का रक्षा बजट बढ़कर 42 अरब डॉलर हो गया। धुर दक्षिणपंथी वित्त मंत्री बेजेलेल स्मोट्रिच ने घोषणा की कि युद्ध के दौरान सेना और उसकी जरूरतों को सभी विवादों से ऊपर रखा जाना चाहिए। इजराइल उस युद्ध में अरबों डॉलर झोंक रहा है और उसने पहले ही गाजा को मलबे में तब्दील कर दिया है, बच्चों को भूखा मार दिया है, और लगभग पूरी आबादी को विस्थापित कर दिया है।

इजराइल जोर देकर कहता है कि उसकी गाजा पर कब्जे की कोई योजना नहीं, बल्कि वह अनिश्चितकालीन सुरक्षा नियंत्रण बनाए रखना चाहता है और नागरिक प्रबंधन का काम दूसरों को सौंपना चाहता है। यह छद्म कब्जा ही है! उसका असली मकसद साफ है: गाजा की जनसांख्यिकी को हमेशा-हमेशा के लिए बदल देना, फिलिस्तीनी क्षेत्र को टुकड़े करना और फिलिस्तीनी संप्रभुता को दूर की कौड़ी बना देना।

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इस बीच, पश्चिमी तट पर इजराइल ने बस्तियां बनाने के काम को दोगुना तेज कर दिया है और प्रतिबंध कड़े कर दिए हैं, जिससे क्षेत्र प्रभावी रूप से दो हिस्सों में बंट गया है। एलेनबी क्रॉसिंग, जो फिलिस्तीनियों के लिए बाहरी दुनिया से जुड़ने का अकेला जमीनी रास्ता था, अगली सूचना तक बंद कर दिया गया है।

गाजा में जो हो रहा है, उस पर अब बहस नहीं हो सकती। दुनिया इसी नतीजे पर पहुंची है कि: यह भूखा मारने, तबाह कर देने की एक योजनाबद्ध परियोजना है, यह एक नरसंहार है। और नरसंहार संधि के तहत इसके सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों का दायित्व है कि वे इसे रोकने के लिए जो कर सकते हैं, करें। 

  • अशोक स्वैन स्वीडन के उप्सला विश्वविद्यालय में पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रिसर्च के प्रोफेसर हैं।

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